कोई भला-बुरा संवाद जब तक 'समाचार' था तो 'सम्यक् आचरण' का नियम पालन करता था और तटस्थ रहकर सच बताता था क्योंकि सत्य बताए बिना सम्यक आचरण नहीं हो सकता। समाचार (सम्यक आचरण) है जो नए संवाद, घटनाक्रम की सच्ची जानकारी को सम्यक रूप से यथातथ्य प्रस्तुत करता है। फिर सच बताना असुविधा जनक होता चला गया तो 'प्रेस' कहलाया। अंग्रेजी में प्रेस का अर्थ ही है दबाना। यथा नाम तथा गुण के अनुसार प्रेस में सच को 'दबाने' का गुण आना ही था। अब 'मीडिया' है। मीडिया PIE के प्रकल्पित मूल *medhyo से बना है जिसका संबंध संस्कृत के मध्य (बीच) से है। शब्दकोश के अनुसार मीडिया का व्युत्पत्तिपरक मूल अर्थ है– विज्ञापन के 'बिचौलिये', माध्यम, सौदे आदि को पटाने में मध्यस्थता करने वाले। किसी वस्तु, विषय अथवा घटना को सायास दबाने वाला तंत्र, उपकरण भी मीडिया कहलाया। समाचारों के लिए अंग्रेजी में एक शब्द 'न्यूज़' (news) भी है। न्यूज़ अर्थात north -east-south-west से खोज-बीन कर नई जानकारी प्रदान करना। यह और बात है कि अब न्यूज़ भटकाने, भड़काने वाली अधिक बनती है। जैसे — नेताजी ...
~संन्यास, सन्यास या सन्न्यास? ~ सन्यास (न्यास सहित) होड़ में नहीं है। उसे हटा लीजिए। शेष दो समान हैं। उच्चारण एक ही है, अर्थ भी। हिंदी में संन्यास अधिक चलता है, और सही है। ~ कुछ लोग सन्न्यास लिखते हैं। संस्कृत में सन्न्यास है, इसलिए हिंदी में भी सन्न्यास होना चाहिए। – आवश्यक नहीं कि जो संस्कृत में है, वही हिंदी में भी होना चाहिए। अनेक भारतीय भाषाओं की भाँति हिंदी भी संस्कृत से बहुत आगे निकल आई है। उसका अपना व्याकरण है। ~संस्कृत से विच्छेद तो नहीं हुआ न। ~विच्छेद नहीं, लोक स्वीकृत मार्ग से विकास हुआ है। हिंदी ने संस्कृत के साथ-साथ सभी समकालीन बोलियों से प्राण तत्त्व ग्रहण किया है। ~ फिर भी सन्न्यास अधिक शुद्ध हुआ तो संन्यास क्यों? ~ अगर शुद्ध होने से आपका आशय संस्कृत का होना है तो सन्न्यास, संन्यास दोनों संस्कृत के हैं। ~ कैसे? ~ "मोऽनुस्वारः" सूत्र से (सम् + न्यास) के पदान्त (म्) को अनुस्वार होकर संन्यास होगा, जबकि "वा पदान्तस्य" सूत्र से संन्यास के पदान्त अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण होने से संन्यास तथा सन्न्यास होगा। ~ हम तो सन्न्यास लिखेंगे। ~ रोका किसने है?