~संन्यास, सन्यास या सन्न्यास? ~ सन्यास (न्यास सहित) होड़ में नहीं है। उसे हटा लीजिए। शेष दो समान हैं। उच्चारण एक ही है, अर्थ भी। हिंदी में संन्यास अधिक चलता है, और सही है। ~ कुछ लोग सन्न्यास लिखते हैं। संस्कृत में सन्न्यास है, इसलिए हिंदी में भी सन्न्यास होना चाहिए। – आवश्यक नहीं कि जो संस्कृत में है, वही हिंदी में भी होना चाहिए। अनेक भारतीय भाषाओं की भाँति हिंदी भी संस्कृत से बहुत आगे निकल आई है। उसका अपना व्याकरण है। ~संस्कृत से विच्छेद तो नहीं हुआ न। ~विच्छेद नहीं, लोक स्वीकृत मार्ग से विकास हुआ है। हिंदी ने संस्कृत के साथ-साथ सभी समकालीन बोलियों से प्राण तत्त्व ग्रहण किया है। ~ फिर भी सन्न्यास अधिक शुद्ध हुआ तो संन्यास क्यों? ~ अगर शुद्ध होने से आपका आशय संस्कृत का होना है तो सन्न्यास, संन्यास दोनों संस्कृत के हैं। ~ कैसे? ~ "मोऽनुस्वारः" सूत्र से (सम् + न्यास) के पदान्त (म्) को अनुस्वार होकर संन्यास होगा, जबकि "वा पदान्तस्य" सूत्र से संन्यास के पदान्त अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण होने से संन्यास तथा सन्न्यास होगा। ~ हम तो सन्न्यास लिखेंगे। ~ रोका किसने है?
एक शिक्षक का प्रश्न मिला— "आज बच्चों को ऋतुएँ पढ़ाते हुए "हेमंत" पर अटक गया। अगर यह हिम का अंत है तो यह सर्दी का प्रारंभ कैसे हुआ?" हमारी समझ में यह अच्छा प्रश्न है। पहले तो यह समझना होगा कि हेमंत हिम का अंत नहीं है, प्रारंभ है। शब्द की बनावट की दृष्टि से इसे यों समझ सकते हैं– हेमंत में हन् (मारना) धातु मानी गई है। शब्दकल्पद्रुम के अनुसार। हेमन्तः – (हन्ति लोकान् शैत्येन इति) हन् + उणादि सूत्र से म आगम। इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो जाड़े-पाले के प्रकोप से लोगों को मारे, वह हेमंत। स्पष्ट है कि यह व्युत्पत्ति समाज के गरीबों, मजदूरों, किसानों के संघर्षों का प्रतिबिंब है, जिनके लिए जाड़ा काटना और मौत का सामना करना एक समान है। एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार "हन्ति सन्तापम् इति", जो संताप (दुख) को मार दे (दूर करे), वह हेमंत। यह दृष्टिकोण समाज के खाते-पीते वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। उनके लिए जाड़ा आनंद मनाने का मौसम है। मेवे, मिष्ठान्न, घी आदि का सेवन स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है। अच्छा पहनने-ओढ़ने का आनंददायक मौसम। और एक संतुलित दृष्टिकोण की व्युत्पत्ति यह भ...