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चिड़िया का बहुवचन

जानकारी न होने के कारण स्त्रीलिंग बहुवचन शब्दों में अशुद्धियाँ मिलती हैं। जैसे चिड़िया के तीन रूप-  1. चिड़ियें (क्योंकि गाय > गायें, बहन >बहनें) 2. चिडियाएँ (क्योंकि कथा > कथाएँ, सेना > सेनाएँ) 3. चिड़ियाँ (क्योंकि??) नियम यह है। जिन स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के अंत में या/इया आ रहा हो उनके साथ स्त्रीलिंग के लिए आँ प्रत्यय जुड़ता है। मूल शब्द के अंत में भी आ होने से दीर्घ संधि हो जाती है और स्वर की अनुनासिकता बनी रहती है। जैसे  बुढ़िया >बुढ़ियाँ चिड़िया> चिड़ियाँ गुड़िया> गुड़ियाँ बचपन में दूरदर्शन से सुना हुआ वह गीत याद रखिए— "एक चिड़िया, अनेक चिड़ियाँ.." अप्रत्यक्ष/तिर्यक (oblique) बहुवचन के लिए सभी प्रकार की संज्ञओं के साथ सर्वत्र ओं जुड़ता है। लताओं, बेलों, कुर्सियों, नदियों , चप्पलों इत्यादि। दुनिया आकारांत है, कन्याओं, भार्याओं की तरह दुनियाओं होगा । व्यवहार में 'दुनियाओं' का उपयोग कम ही होता है।  चिड़िया, गुड़िया आदि में ओं प्रत्यय आ के स्थान पर आता है। इसलिए  चिड़ियों को दाना डालें। प्रबंधन गुड़ियों का खेल नहीं है। बूढ़ियों, बुढ़ियाओं दोन...
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हिंदियाँ ...!

कहते हैं किसी के संस्कार या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि देखनी हो तो यह देखिए की वह तू और आप सर्वनामों का प्रयोग कैसे करता है। भाषा के मृदु या कठोर होने का पैमाना भी इन्हीं दो सर्वनामों को मानते हैं। यह बात और है कि कुछ भाषाओं में आप का अभाव है। वे आप के बदले तुम से काम चला लेते हैं। पंजाबी में आदरार्थक 'आप' सर्वनाम चाहे न हो, लेकिन परंपरा से पंजाबी को मीठी ही माना गया है। विभाजन से पूर्व पंजाब की भाषा के लिए चंद्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी 'उसने कहा था' को याद कर सकते हैं। कहानी की शुरूआत में ही अमृतसर के इक्केवालों की ज़ुबान सुनाई पड़ती है—-"हट जा जीणे जोगिए; हट जा करमाँ वालिए; हट जा पुत्ताँ प्यारिए; बच जा लंबी वालिए।" समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्यों वाली है, पुत्रों को प्यारी है, लंबी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिए के नीचे आना चाहती है? कितनी मिठास! तहज़ीब-ओ-नज़ाकत वाले शहर लखनऊ के बारे में सुना जाता है कि गुस्से में भी वे तहज़ीब नहीं भूलते। आप सर्वनाम और -इए प्रत्यय वाली क्रियाएँ उन्हें बहुत प्रिय हैं। थप्पड़ मारने से पह...

कट्टी-बट्टी और सल्ला

"कट्टी तो कट्टी  बारह बजे बट्टी  मैं खाऊँ आइस्क्रीम  तू खाए मिट्टी ...... हा-हा , हा-हा-हा !!!" आजकल बुढ़ा रही पीढ़ी जब बिला जाएगी तो कट्टी-बट्टी का नाम भी इतिहास हो जाएगा। अब कट्टी-बट्टी का समय नहीं रहा। देसी खेल खेल नहीं रहे। अब कट्टी नहीं होती, 'ब्रेकअप' हो जाता है। कौन समझाए कि ब्रेकअप बहुत डरावना हुआ करता है। उन्हें कौन बताए कि बच्चो! तुम्हारी उम्र ब्रेकअप की नहीं, कट्टी की है। ईश्वर न करे बड़े होकर भी किसी को ब्रेकअप का सामना करना पड़े। संबंधों में ब्रेकअप से नरक हो जाती है ज़िंदगी। और बच्चों को ब्रेकअप से क्या ही लेना-देना। ब्रेकअप टूटने के लिए होता है, और कट्टी थोड़ी देर रूठ कर फिर से जुड़ने के लिए। रूठने और मानने-मनाने का खेल ’कट्टी’ और ‘बट्टी' (अब्बा) छोटी उम्र के बच्चों में लगभग रोज़ाना होता रहता है। असल में तो यह खेल भी नहीं है। खेल-खेल में रूठने का और फिर जब चाहो तब वापस दोस्तों के पाले में आ जाने का खेल है। न किसी के मन में क्लेश, न किसी से दुश्मनी। इस पल कट्टी, तो अगले पल बट्टी। मामला थोड़ा-सा उलझा हुआ हो तो घूसखोरी भी चलती है— दो-तीन खट्टी गोलियाँ, ...

हैं और हूँ

हैं? हैं! •••••••• 'हैं' वर्तमान काल की द्योतक सहायक क्रिया है— 'होना' से विकसित 'है' का अन्य पुरुष, बहुवचन रूप । लड़का आया है। लड़के आए हैं। लड़कियाँ आई हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 'हैं' क्रिया ही नहीं, अव्यय भी है। अव्यय, अर्थात जिसका रूप लिंग, वचन, काल, कारक आदि के कारण नहीं बदलता।  दो स्थितियाँ हैं जब 'हैं' अव्यय बन जाता है। i ) आप किसी से बात कर रहे हैं और आपकी बात यदि सुनने वाले के लिए अधसुनी या अनसुनी रह जाती है अथवा सुनकर भी समझ में नहीं आती है तो वह कहता है- 'हैं?' और आप अपनी बात दोहराते हैं या और स्पष्ट करके कहते हैं। यह 'हैं' अव्यय है। i) इसी प्रकार विस्मय या अविश्वास प्रकट करने के लिए आपके मुँह से निकला 'हैं!' विस्मयसूचक अव्यय है। ~सुनो, भाभी आ रही हैं। ~हैं! कब? (अच्छा! आश्चर्य है) हूँ 'होना' क्रिया का ही वर्तमान काल, उत्तम पुरुष रूप 'हूँ' भी सहमति, अन्यमनस्कता, आश्चर्य इत्यादि को व्यक्त करने वाले अव्यय के रूप में प्रयुक्त हो सकता है। आप सुन रहे हैं? हूँ। (सहमति)  2:00 बजे तक लौट आओगे?  हूँ...

निरोग - नीरोग

निरोगी और नीरोगी •••••• उपसर्ग अव्यय होते हैं फिर भी दोनों में कुछ मूल रूप से अंतर है। अव्ययों का स्वतंत्र प्रयोग हो सकता है किंतु उपसर्गों का नहीं। उपसर्ग किसी न किसी धातु या निष्पन्न शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द का निर्माण करते हैं। अव्ययों के कुछ निश्चित अर्थ होते हैं उपसर्ग के नहीं। कहा भी गया है कि उपसर्ग लगा देने से धातु का अर्थ अन्यत्र लिया जा सकता है जैसे एक 'हार' शब्द के साथ कुछ उपसर्ग प्रहार, संहार, आहार इत्यादि भिन्न-भिन्न शब्दों का निर्माण करते हैं जिनके अर्थ में भी विविधता है। संस्कृत में निर् उपसर्ग का एक अर्थ संकेत निषेध, अभाव, रहितता ओर है। निर्द्वन्द= द्वंद्व रहित, निरभिमान अभिमान रहित। संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार निर् + विघ्न = निर्विघ्न होगा किंतु अगले शब्द का आदि वर्ण 'र्' होने से निर्+ रुज - नीरुज, नीरव, नीरस बनेंगे (कुछ अपवाद भी हैं)। नीरोग भी (नि:> निस्/निर् + रोग) संस्कृत में विसर्ग संधि का उदाहरण है। विसर्ग संधि के बारे में संस्कृत का एक नियम है, 'रोरि'। रोरि के अनुसार यदि पहले शब्द के अन्त में ‘र्’ आए तथा दूसरे शब्द के पूर्व ...

नौमी या नवमी

नौमी या नवमी ?! ••••••••• यह अच्छा है कि तिथियों या पर्वों के बहाने हम लोग कभी-कभी भाषा के प्रति सजग-सचेत हो जाते हैं। बात चल निकलती है - पर्व का नाम यह कहना शुद्ध है, या वह? यह लिखना सही है, या वह सही है? अबकी बार हमारे एक मित्र ने पूछा है—  रामनवमी कहा जाए या रामनौमी? नौमी और नवमी दोनों शुद्ध हैं। तिथियों के क्रम में नौमी अर्थात नौवीं तिथि। पूनो (पूर्णिमा ) के आठ दिन बाद आने वाली तिथि को कृष्णपक्ष की नवमी कहा जाता है और अमावस के आठ दिन बाद आने वाली तिथि को शुक्लपक्ष की। इस प्रकार पूनो और अमावस को छोड़कर कोई भी तिथि महीने में दो बार आती है- एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।  नवमी तत्सम है और नौमी तद्भव। इसकी उत्पत्ति संस्कृत नव > नौ (९) से है। नव से क्रमसूचक विशेषण-  नवम > नौवाँ। नवम का स्त्रीलिंग - नवमी > नौमी > नौवीं। जैसे नौवाँ जन्मदिन, नौवीं वर्षगाँठ। परंपरानुसार चैत के महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान राम का जन्म उत्सव मनाया जाता है।  तुलसीदास के अनुसार- "नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकलपच्छ अभिजित हरि प्रीता॥ मध्य दिवस अति सीत न ...

फड़ और फड़नवीस

उत्तरी भारत में 'फड़' एक देसी शब्द मानाा जाता है जिसका अर्थ है जुए का अड्डा। (पुलिस ने फड़ पर छापा मारकर जुआरियों को धर दबोचा)। सामान बेचने की छोटी कच्ची दुकान, सड़क के किनारे लगी अस्थायी दुकान भी फड़ कहलाती है। (यह कपड़ा मैंने एक साधारण-सी फड़ से खरीदा था, लेकिन बहुत अच्छा निकला)।इन अर्थों में फड़ शब्द को संस्कृत पण से भी विकसित माना जा सकता है। अमरकोश के अनुसार, "पणो द्यूतादिषूत्सृष्टे भृतौ मूल्ये धनेऽपि च ।" अर्थात पण शब्द द्यूत (जुआ) के लिए, दाँव पर लगाए जाने वाले धन के लिए हैं। वाचस्पत्यम् के अनुसार पण: व्यवहारे (क्रयविक्रयादौ) स्तुतौ च। पण क्रय विक्रय आदि व्यवहार के लिए है। नवीस शब्दों के अंत में जुड़ने वाला एक फ़ारसी प्रत्यय है जिसका अर्थ है, लिखने वाला, हिसाब-किताब का लेखा-जोखा रखने वाला। हिंदी-उर्दू में आज भी नवीस से बने अनेक शब्द प्रचलित हैं—अर्ज़ी नवीस (अरायज़-नवीस), अख़बार-नवीस, नक्शा-नवीस, ख़बर-नवीस आदि। इस आधार पर फड़नवीस का अर्थ होगा जुए का अड्डा (फड़) चलाने वाला या किसी फड़ में छुटपुट सामान बेचने वाला। मराठी में फड़नवीस फ़ारसी फ़र्दनवीस से माना जाता ह...