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अम्रित काल और अम्रुत काल

अमृत काल को amrit kāl कहें या amrut kāl /ऋ/ स्वर का उच्चारण उत्तरी भारत में /रि/ और गुजरात, महाराष्ट्र सहित दक्षिणी भारत में /रु/ है और दोनों ठीक हैं।  मुंबई में बैंक "ग्रुह रुण" देते हैं और दिल्ली में "ग्रिह रिण", दोनों "गृह ऋण" लिखते हैं। एक भाषा के दो या अधिक क्षेत्रों में एक शब्द के दो उच्चारण संभव हैं। एक सही उच्चारण की धारणा ही ग़लत है। हिंदी के बारे में तो यह और भी अधिक संगत है क्योंकि हिंदी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है और हिंदी अनेक उपभाषाओं और बोलियों का समेकित रूप है। इसलिए 'अम्रित' काल कहें या 'अम्रुत' काल, सुनने वाला जानता है कि आपका तात्पर्य " अमृत काल" से है। *****

अस्नान स्नान

इस्कूल से सटेशन  •••••• कुछ अंचलों के हिंदी बोलने वाले अपनी मातृ बोली के प्रभाव के कारण शब्द के प्रारंभ में /स/के संयुक्ताक्षर का स्पष्ट उच्चारण स्वर के बिना नहीं कर पाते। इसलिए शब्द के प्रारंभ में /अ/ या /इ/ का सहारा लेते हैं अथवा स्वर रहित व्यंजन (स्) को स्वर सहित बनाकर उच्चारण करते हैं; जैसे– ‌ इस्कूल/सकूल/अस्कूल (स्कूल),  ‌अस्खलन/इस्खलन/सखलन (स्खलन) ‌इस्टोर/सटोर/अस्टोर (स्टोर),  ‌अस्तंभ/इस्तंभ/सतंभ (स्तंभ),  ‌इस्टॉल/अस्टाल/सटौल (स्टॉल)  ‌अस्पेस/इस्पेस/सपेस (स्पेस),  ‌इस्फटिक/अस्फटिक/सफटिक (स्फटिक), अस्नान/इस्नान/सनान (स्नान)। यदि य अथवा व से /स्/जुड़ता है तो उसके उच्चारण में कठिनाई नहीं होती क्योंकि य और व अर्धस्वर हैं; जैसे स्वीकार, स्याही, स्वाद आदि का उच्चारण शुद्ध किया जाता है। उपर्वियुक्त विशेषता के कारण कभी-कभी शब्दों में अर्थ भ्रम हो जाता है, जैसे स्थायी को अस्थायी, स्पष्ट को अस्पष्ट या स्थिर को अस्थिर कहना। प्रसंग के बिना बात समझ नहीं आती या विपरीत अर्थ ग्रहण के संभावना रहती है। ‌ सर, आपने एकदम अस्पष्ट कर दिया।  ‌अस्थायी और अंतरा में कुछ अं...