सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विकलांग या दिव्यांग





Handicapped के लिए हिंदी में #विकलांग शब्द अरसे से चल रहा है और वांछित अर्थ का काफी हद तक यह ठीक संकेत करता है कि विकलांग जन के किसी अंग में कोई विकलता या अक्षमता है: विकल+अंग। किंतु इधर कुछ समर्थ स्रोतों ने उसके लिए एक नया शब्द गढ़ा है #दिव्यांग। क्योंकि देश के प्रधानमंत्री ने इस शब्द का उल्लेख कर दिया, इसलिए मीडिया इसे ले उड़ा; बिना इस बात की चिंता किए हुए के इस शब्द से वह विकलांग जन का न केवल मजाक उड़ा रहा है बल्कि उन्हें अपमानित भी कर रहा है।

निस्संदेह यह शब्द सुन्दर, कर्णप्रिय और एक सीमा तक सम्मान-द्योतक भी लगता है, परंतु जिस विषय पर बात की जा रही है उसके संदर्भ में अर्थपूर्ण नहीं लगता है। इससे वह अर्थ नहीं ध्वनित होता जो शारीरिक अक्षमता को दर्शाता हो। √दिव् धातु कई अर्थों में प्रयुक्त होती है, किंतु इससे व्युत्पन्न विशेषण दिव्य में इसका अर्थ स्पष्टतः चमकना या उज्ज्वल होना है। तदनुसार इस विशेषण शब्द के अर्थ हैं दैवी, स्वर्गीय, अलौकिक, उज्ज्वल, मनोहर, सुन्दर इत्यादि। कुल मिलाकर दिव्य उस विशिष्ठता को व्यक्त करता है जिसकी केवल कामना की जा सकती है, ऐसी विशिष्ठता जो देवताओं को उपलब्ध है, और जो सामान्यतः मनुष्य के लिए अप्राप्य है।  यह उस दोष का संकेतक नहीं हो सकता है जिससे मनुष्य मुक्त रहना चाहेगा, परंतु जिसका सामना उसे दुर्भाग्य से करना पड़ सकता है।

अर्थ प्रभाव की दृष्टि से भी यह दिव्यांग बड़ा अटपटा शब्द है। क्योंकि विकलांगता तो किसी अंग विशेष की होती है। उसके स्थान पर संभवत: क्षतिपूर्ति के लिए विकलांग व्यक्ति के अन्य अंग अधिक सक्षम और समर्थ होते हैं। इसलिए उन्हें "अन्यथा सक्षम" तो कहा जा सकता है किंतु दिव्यांग कहना व्यंग्यात्मक है। सामान्य मनुष्य में दैवी गुणों की बलात प्रतिष्ठा - सा। लगता है कि हम किसी सक्षम व्यक्ति की हँसी उड़ा रहे हैं। किसी सामान्य किंतु विकल अंग को दिव्य अंग कहना ऐसा ही है जैसे किसी दरिद्र को सेठजी कहना।

 कोई अंग विकल होने का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि वह व्यक्ति ही निश्शक्त (शक्तिहीन), निर्बल या अक्षम है। ऐसे जन कई मामलों में सक्षम लोगों से भी अधिक सक्षम साबित होते हैं। बीठोवन, स्टीवन हॉकिंग या अरुणिमा सिन्हा और प्रांजल पाटील जैसे बेशुमार उदाहरण दिए जा सकते हैं। जायसी भी, और पौराणिक कथाओं के प्रसिद्ध विद्वान अष्टावक्र भी।

विकलांग में दिव्यता का दर्शन और दिव्य-पुरुष, दिव्य-चक्षु, दिव्य-दृष्टि या दिव्य-मूर्ति जैसे प्रयोग हमारे धर्म और भारतीय संस्कृति का बोध तो देते हैं, किंतु विकलांगता का किसी धर्म या समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है। तो फिर दिव्यांग शब्द उन लोगों पर क्यों थोपा जाय जो अपनी आंगिक चुनौतियों के बावजूद संघर्षरत हैं, सक्रिय हैं? दिव्यांग कहकर उन्हें सहानुभूति का पात्र इस प्रकार बनाया जाता है जैसे उनमें बेचारगी हो जिसे नाम-परिवर्तन से दूर कर दिया जाएगा।

इसी प्रकार गांधीवादी दौर में भी एक शब्द "हरिजन" चला था। हरिजन अर्थात भगवान का जन। इसका बाद में बहुत विरोध हुआ और सही विरोध हुआ। हरिजन कह कर भी आप एक वर्ग विशेष का मजाक उड़ाते हैं। दलित, शोषित, वंचित, पिछड़े ये सब हरिजन जैसे साफ-सुथरे रेशमी चादर में लपेट लिए गए। उन्हें आदरणीय विशेषण दे दिया गया और हरि भजने को छोड़ दिया गया। भाषा की कम समझ वाले लोग जब भाषा में भी दखल देने लगते हैं तो ऐसा ही होता है।

 अपाहिज व्यक्तियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की समिति (सीआरपीडी) ने भी ‘दिव्यांगजन’ शब्द को उतना ही अपमानजनक बताया है, जितना किसी को मानसिक रूप से बीमार कहना है। विकलांगों ने तमाम बाधाओं पर काबू पा कर अपनी क्षमताएं सिद्ध की है और ये किसी दिव्य शक्ति का नतीजा है कहना ग़लत होगा. बल्कि इस तरह की रचनाशीलता केवल भ्रम पैदा करेगी. यही नहीं इससे विकलंगों के मुद्दों का समाधान भी नहीं होगा

दिव्यांग शब्द अमरकोश, बृहद शब्दकोश, शब्दसागर आदि प्रामाणिक कोशग्रंथ में प्राप्त नहीं होता। संभव है आगे किसी कोश में स्थान पा जाए, क्योंकि अब तो कुछ वर्षों से मंत्रालयों में भी इसके विधिवत प्रयोग मार्ग साफ़ कर दिया गया है।


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्