गू, गुएन और पू
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मानव मल के लिए संस्कृत में अनेक शब्द हैं - विष्ठा, पुरीष, गू, गूथ, उच्चार, अवस्कर, शमल, शकृत्, पुरीष, वर्चस्क, विश्, कर्पर, कीकस, कुल्य। इनमें से कुछ तो संस्कृत के संस्कृत बनने से भी पहले से प्रचलित मिट्टी के शब्द रहे होंगे या द्रविड़, ऑस्ट्रिक मूल के भी। जैसे कीकस के समान तमिल में शब्द है कक्कुसु।
हिंदी, उर्दू में जो शब्द प्रचलित हैं उनमें एकमात्र मूल शब्द गू (संस्कृत गूथ, गू:) है, जिसे ग्रामीण मानकर इसके प्रयोग से बचा जाता है। अन्य हैं - टट्टी, झाड़ा, हग्गा, छिच्छी। इनमें टट्टी को भी अब ग्राम्य प्रयोग समझ कर शिष्ट भाषा में स्थान नहीं दिया जाता। लोक में झाड़ा भी है जो बहुत कम प्रचलित है, कहिए कि लुप्त हो चला है। हग्गा, छिच्छी बाल भाषा के शब्द हैं, आम भाषा के नहीं।
टट्टी मल त्याग की क्रिया के लिए लक्षणा से बना अनुनाम (metonym) है। पहले टाट और बाँस की सहायता से बने एक बाड़े को टट्टी कहा जाता था जो मल त्याग के लिए निर्धारित स्थान पर लोकलाज से बचने के लिए एक प्रकार की आड़ का काम देता था। कालांतर में यही टट्टी गू का पर्याय बन गया और टट्टी जाना यौगिक क्रिया। जंगल जाना, शौच जाना, दिशा-मैदान, हाजत होना, पखाना करना ये सब लक्षणा से बनी ऐसी ही यौगिक क्रियाएँ हैं । संस्कृत गुवति की तरह हिंदी में गुवना तो नहीं, हगना क्रिया है जो संस्कृत हदन से विकसित हुई है। गू-गंध के लिए कुमाउँनी में एक शब्द है - गुएन। मनोहर श्याम जोशी के "कसप" उपन्यास की 'गुएन' शायद आपको याद हो, जिसे अनुभव करते हुए बटरोही ने अपनी किसी रचना में कटाक्ष किया था।
लघुशंका और दीर्घशंका शब्द संभवतः निवृत्त होने में लगने वाले कम या अधिक समय को ध्यान में रखकर बने होंगे, जो अति औपचारिक भाषा में प्रयुक्त होते हैं, आम बोलचाल में नहीं ।
कथित सुविधाओं के लिए हिंदी-उर्दू में परंपरागत शब्द संडास, गुसलखाना, पाखाना थे। इन्हें भी हीनार्थ माना गया तो शिष्ट प्रयोग का आधुनिक शब्द आया शौचालय। शौच शब्द में शुचिता का भाव है, इसलिए इसका अर्थ व्यापक और बहुआयामी है। यह अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रचलित है, किंतु अब 'सरकारी' शब्द माना जाने लगा है। शौचालय के संकेतक विशेषण के रूप में आवश्यकतानुसार पुरुष, महिला, विकलांग, सार्वजनिक जोड़ा जाता है।
अधिक संभ्रांतता के लिए शब्द अंग्रेजी से आए। लू, लवेटरी, WC, टॉयलेट, लैट्रिन आदि पहली खेप में अंग्रेजी से आए हुए शब्द हैं। एक वर्ग टॉयलेट को कन्वीनियंस कहता है। अमेरिका, कनाडा में वॉशरूम और रेस्ट रूम या लेडीज़ रूम, जेंट्स रूम प्रचलित हैं। तो अपने यहाँ संभ्रांत (?) अनुवाद बने: सुविधाएँ, स्नानगृह, प्रक्षालन कक्ष, प्रसाधन कक्ष आदि। अभी रेस्ट रूम के लिए विश्राम कक्ष नहीं बना!
अंग्रेज़ी का शब्द "लट्रीन", जो फ़्रांसीसी से अंग्रेज़ी में आया, और अंग्रेज़ी से प्रारूपित शब्द (calque) के रूप में हिंदी में "लाटरीन" भी बना। इसका एक दिलचस्प पहलू यह है कि अंग्रेज़ी में इसकी गिनती संभ्रांत (posh) शब्दों में होती थी, लेकिन इसका हिंदी रूपांतर लगभग अशिष्ट ही माना जाता है!
अब क्योंकि अंग्रेजी पर शिष्टता के मोहर लग चुकी है, इसलिए दूसरी खेप में शिट्, पॉटी, पी भी शिष्ट भाषा में पधार चुके हैं। इन्हें बोलते हुए लोग न नाक मुँह बिचकाते हैं, न नाक पर रुमाल रखते हैं; जब कि टट्टी, गू, गुएन जैसे शब्द यदि भूल से भी मुँह से निकल जाएँ तो सुनने वाला मुँह फेर लेता है।
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