शाकाहार, मांसाहार और वीगन
आहार (आङ् + हृ + घञ्) भोजन, जेमन, खाना-पीना आहार के अंतर्गत आता है। यह संस्कृत शब्द है जो अनेक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त हो रहा है। आहार से बने अनेक शब्द भी व्यवहार में है जैसे फलाहार, शाकाहार, मांसाहार, दुग्धाहार, निराहार, अल्पाहार , स्वल्पाहार। इनसे विशेषण बनाए जा सकते हैं- फलाहारी, शाकाहारी, मांसाहारी, स्वल्पाहारी।
भोजन के घटक, प्रभाव, प्रवृत्ति, प्रकृति, पाकविधि आदि के आधार पर भारतीय परंपरा से आहार तीन प्रकार का माना गया है। श्रीमद् भगवद्गीता और चरक आदि के आयुर्वेदिक ग्रंथों में इनका उल्लेख है।
सात्विक - पवित्रता से निर्मित, आयु और बलवर्धक, स्वादिष्ट होता है। यह आहार मानसिक शांति और सात्विकता को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। इसमें फल, सब्जियाँ, अनाज, दूध, दही, मेवे, घानी के वानस्पतिक तेल, गाय का घी आदि शामिल होते हैं।
राजसिक- तला हुआ भोजन, मिठाई, तीखे स्वाद का, बहुत अधिक मसालों और नमक वाला, मांस-मदिरा आदि राजसी भोजन के अंतर्गत आते हैं। यह भारी होता है, देर से पचता है और आलसी बनाता है।
तामसिक- सड़ी-गली वस्तुओं का बना, बासी, बचा हुआ, रसहीन, तीखे स्वाद और अधिक मसाले का, मांस-मदिरा, भारी और दुष्पाच्य भोजन तामसी आहार में आता है और निम्न श्रेणी का माना जाता है क्योंकि आध्यात्मिक प्रगति के लिए बाधक है।
आहार का उपर्युक्त वर्गीकरण भारतीय परंपरा से है और इन आहारों का संबंध शारीरिक स्वास्थ्य के अतिरिक्त मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से भी है।
आज विश्व भर में आहार को लेकर जो बहस हो रही है वह मूलतः शाकाहार और मांसाहार की बहस है। शाकाहार अपने आप में भ्रामक अर्थ देता है। शाकाहारी केवल साग-पात (शाक) ही नहीं खाते, मांस-मछली को छोड़कर सभी प्रकार के फल, मेवे, अन्न, कंद आदि भी खाते हैं। इनमें कुछ अंडे भी नहीं खाते और कुछ यह कहकर खा लिया करते हैं कि अब ऐसे अंडे उपलब्ध हैं जिनमें निषेचन नहीं होता अर्थात् जिनसे चूजे-बच्चे नहीं बनते। इसलिए उन्हें दूध या फल के समकक्ष ही माना जा सकता है। इस वर्ग को शाकाहारी कहने की अपेक्षा निरामिष भोजी या निर्मांसी कहना अधिक तर्कसंगत होगा। लेकिन नाम तो नाम है और नाम तर्कों से नहीं लोक के अपनाने से चलेगा और लोक में शाकाहारी ही चल रहा है।
मांसाहारी या सामिष भोजी एक प्रकार से सर्वाहारी हैं। वे शाकाहारी और फलाहारियों वाला भोजन भी करते हैं और मांस, मछली, अंडे, समुद्री खाद्य ( सी फूड) आदि भी । अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण कुछ वर्ग किसी पशु विशेष के मांस से परहेज करते हैं।
शाकाहारियों में एक वर्ग धीरे-धीरे बढ़ रहा है जो अपने आप को विशिष्ट शाकाहारी या वीगन कहता है। वीगन आज उस समाज के लिए प्रचलित है जो दूध और उससे बने हुए पदार्थों का भी सेवन नहीं करते। शुद्ध शाकाहार से भी बढ़कर विशिष्ट शाकाहार। वीगन के लिए हिंदी शब्द बनाया गया है 'निरवद्य' (निर् +अवद्य) आहार। अवद्य का अर्थ है अधम, निकृष्ट, निंदनीय। निर् उपसर्ग लगने पर निरवद्य का शब्दार्थ होगा - जिसे कोई बुरा न कहे, अनिंद्य, निर्दोंष, जिसमें कोई बुराई न हो। हमें यह नाम तर्कसंगत नहीं लगता क्योंकि निरवद्य कहने का एक भाव यह भी हुआ कि निरवद्य से भिन्न प्रकार का आहार करने वाले अर्थात दूध से बने पदार्थों सहित शाकाहार करने वाले अथवा मांसाहार का सेवन करने वाले निरवद्य नहीं हैं, उनका आहार 'अवद्य', निंदनीय या सदोष है। इस धारणा में स्पष्टतः अपने आप को श्रेष्ठ मानने का भ्रम है। आप अपने आहार के लिए जो भी विशेषण चाहें प्रयोग कर सकते हैं लेकिन दूसरे के आहार को निंदनीय नहीं कहा जा सकता। सबको अपनी-अपनी पसंद का भोजन करने की स्वतंत्रता है। विशिष्ट शाकाहार कहने में भी यही श्रेष्ठता बोध है कि हम अपने आहार को तो विशेष मान रहे हैं किंतु दूसरे के आहार को साधारण, सामान्य। इसलिए सर्वत्र स्वीकृत वीगन शब्द को हिंदी में भी मान लिया जाना चाहिए।
वीगन अंग्रेजी का शब्द है जो धीरे-धीरे सभी भाषाओं में प्रचलित हो रहा है। शब्द के निर्माण की कथा भी रोचक है। यह अंग्रेजी वेजीटेरियन (शाकाहारी) का परिशोधित रूप है। नवंबर 1944 में " दि वीगन न्यूज़" के नाम से जो पत्र प्रकाशित हुआ उसके पहले अंक में जेम्स वाट्सन ने कहा, "शाकाहार और फलाहार शब्द ऐसे समाजों से संबद्ध हैं जो गाय या पक्षियों के 'फल' (दूध, अंडे) का सेवन करते हैं। हमें एक नया और उपयुक्त शब्द बनाना चाहिए। इसीलिए मैंने वीगन शब्द का इस्तेमाल किया है। हमें इसे अपनाना चाहिए और प्रचारित करना चाहिए।"
वीगन जीवन शैली अब केवल आहार तक ही सीमित नहीं है। वीगन लोग पशु-उत्पादों से बनी वस्तुओं का भी उपयोग नहीं करते हैं, जैसे कि चमड़ा, ऊन और रेशम। वे पशु अधिकारों का समर्थन करते हैं और पशुओं के प्रति क्रूरता के विरुद्ध लड़ते हैं। वीगन जीवन शैली एक स्वस्थ, पर्यावरण अनुकूल, और पशु-मित्र जीवन शैली हो सकती है, लेकिन इसके लिए सावधानी से योजना बनाना और आवश्यक पोषक तत्वों का विकल्प ढूँढ़ना आवश्यक है क्योंकि दूध और उससे बने हुए पदार्थो का सेवन न करने से कुछ पोषक तत्वों के भरण में कमी हो सकती है।
(२४ नवंबर, २०२४)
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