एक शिक्षक का प्रश्न मिला— "आज बच्चों को ऋतुएँ पढ़ाते हुए "हेमंत" पर अटक गया। अगर यह हिम का अंत है तो यह सर्दी का प्रारंभ कैसे हुआ?" हमारी समझ में यह अच्छा प्रश्न है। पहले तो यह समझना होगा कि हेमंत हिम का अंत नहीं है, प्रारंभ है। शब्द की बनावट की दृष्टि से इसे यों समझ सकते हैं– हेमंत में हन् (मारना) धातु मानी गई है। शब्दकल्पद्रुम के अनुसार। हेमन्तः – (हन्ति लोकान् शैत्येन इति) हन् + उणादि सूत्र से म आगम। इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो जाड़े-पाले के प्रकोप से लोगों को मारे, वह हेमंत। स्पष्ट है कि यह व्युत्पत्ति समाज के गरीबों, मजदूरों, किसानों के संघर्षों का प्रतिबिंब है, जिनके लिए जाड़ा काटना और मौत का सामना करना एक समान है। एक अन्य व्युत्पत्ति के अनुसार "हन्ति सन्तापम् इति", जो संताप (दुख) को मार दे (दूर करे), वह हेमंत। यह दृष्टिकोण समाज के खाते-पीते वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। उनके लिए जाड़ा आनंद मनाने का मौसम है। मेवे, मिष्ठान्न, घी आदि का सेवन स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है। अच्छा पहनने-ओढ़ने का आनंददायक मौसम। और एक संतुलित दृष्टिकोण की व्युत्पत्ति यह भ...
कुल व्यू
||वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये ||
॥स्वीकरण: आलेखों में कहीं-कहीं सोशल मीडिया पर प्राप्त सामग्री का साभार मधुसंचय॥