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आज्ञा और आदेश

आज्ञा और आदेश

यह कल्पना ही असंभव है कि हमें किसी-न-किसी रूप में कभी किसी आज्ञा या आदेश का पालन न करना पडा हो | कभी तो इनमे अंतर करना कठिन हो जाता है कि यह जो कहा गया है, वह आदेश है या आज्ञा | और इस नासमझी का बड़ा अंतर पड़ सकता है | इन दोनों शब्दों में अंतर थोड़ा नाजुक अवश्य है पर है बड़ा रोचक | आप आज्ञाकारी हैं या नहीं यह तो आपको आज्ञा देने वाले जानें किंतु आदेश देने वाले जानते हैं कि उनके आदेशों का अनुपालन न करना सहज नहीं है | आज्ञा की अनदेखी कोई कर सकता है परन्तु आदेश की अनदेखी के लिए उसे सौ बार सोचना पड़ सकता है | आज्ञा-पालन विवशता नहीं है, यह श्रद्धा और कर्तव्य की परिधि में आता है | हमारा-आपका कर्तव्य है बड़ों की आज्ञा मानना किंतु न मानें तो यह बड़ों पर है कि वे उस अवहेलना को नैतिक मुद्दा बनाते हैं या नहीं, किंतु आदेश के साथ यह विकल्प उपलब्ध नहीं है | किसी भी आदेश के पीछे आदेश देने वाले का पद, रुतबा या अधिकार होता है और होता है उसमे निहित भय जो आपको आदेश का अनुपालन करने के लिए विवश करता है | आप आदेश से असहमत हों , तो भी | इस प्रकार आदेश में औपचारिकता भी है और बाध्यता भी | सक्षम अधिकारी का आदेश आप न मानें तो तो आपको कारण बताओ नोटिस दिया जा सकता है, आपकी पेशी हो सकती है, आप दंड के अधिकारी हो सकते हैं और संभवतः आपके रोज़गार पर भी प्रतिकूल प्रभाव  पड़ सकता है |
आज्ञा पालन में मानसिक संतोष हो सकता है, उसमें आपकी विनम्रता भी झलकती है, परंतु आदेश पालन में भी यह सब होता हो, आवश्यक नहीं | पैर पटकते, गर्दन झटकते, बुदबुदाते-भुनभुनाते हुए भी आप आदेश का पालन करते हैं | बॉस, अधिकारी, मंत्री आदेश देते हैं | राष्ट्रपति का आदेश तो ‘अध्यादेश’ हो जाता है जिसे राजा-प्रजा, कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका-- सभी मानते हैं. लोकतंत्र के नाम पर नेता लोग ‘जनादेश’ पाने गली-गली घूमते हैं. यह बात और है कि उस आदेश को पा जाने के बाद उसका पालन करना वे ज़रूरी नहीं समझते|
कहते हैं एक ज़माने में पति की बात भी ‘आदेश’ ही मानी जाती थी (!) ज्योतिष शास्त्र में ‘आदेश’ धरती छोड़कर आकाश की बात करने लगता है | वहाँ इसका अर्थ किसी आकाशीय पिंड ग्रह, नक्षत्र, राशि या इनकी परस्पर स्थिति का फल या भविष्य कथन हो जाता है | व्याकरण में ‘आदेश’ किसी एक ध्वनि या अक्षर के स्थान पर दूसरी ध्वनि या अक्षर के आ जाने की व्यवस्था है | जोगियों के कुछ सम्प्रदायों में ‘आदेश’ अभिवादन सूचक के रूप में प्रयुक्त होता है | अधिकांश शाबर मंत्रों में भी यह ‘आदेश’ पिरोया हुआ मिलता है |
यह ‘आज्ञा’ शब्द विनम्र भाव से अनुमति चाहने के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है | जैसे:
* “मुझे आज्ञा दीजिए, मैं अब घर जाना चाहता हूँ.”
* “आज्ञा हो तो निवेदन करना चाहूँगा.”
आज्ञा के लिए अरबी मूल का ‘हुक्म’ शब्द भी हिंदी प्रचलित है | यह हुक्म आज्ञा, आदेश के अतिरिक्त शासन, प्रशासन, राजकाज आदि के अर्थ में भी चलता है. जैसे :
*-सेनापति ने हमला करने का हुक्म दिया |    (आदेश)
* राजा देवजू का हुक्म चलता है यहाँ |        (शासन governance)
* मुझ पर हुकम चलाने की कोशिश मत करो |  (रॉब गांठना)
* ‘आप कर पाएंगे?’ ‘जी, हुकम कीजिए|’       (मानने की आतुरता)
* ‘बात सुनो.’ ‘जी हुकम|’                    (सम्मानभरी स्वीकृति, हुंकारा)
‘हुकम/हुकुम’ का यह आदर भरा प्रयोग राजस्थान में अधिक देखा जाता है | हुक्म से बने कुछ मुहावरे बहुत चलते हैं : कोई हुक्म बजा लाता है, कोई हुक्म की तामील करता है. कुछ लोग बैठे बैठे हुक्म चलाते रहते हैं और कुछ किसी का हुक्म न मानते हैं, न चलने देते हैं!

टिप्पणियाँ

  1. सादर प्रणाम ! बेहद सारगर्भित लेख !
    सुन्दर जानकारी ! "आज्ञा और आदेश" !

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