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देसी शब्दों को लीलती अंग्रेजी

अंग्रेजी में एक कहावत है: born with a silver spoon in his mouth, जिसका आशय है मुँह में चाँदी की चम्मच लेकर जन्म लेना। इसका प्रयोग उनके लिए किया जाता है जो जन्म से ही रईस हों जैसे जवाहरलाल नेहरू, मुकेश-अनिल अम्बानी...। 
इसके लिए आधे भारत में हिंदी, उर्दू और अनेक उपभाषाओं, बोलियों में सदियों से प्रचलित एकदम शुद्ध  एकदम देसी कहावत जानते हैं? 
वह कहावत है पोतड़े का रईस अर्थात तब से सम्पन्न जब वह पोतड़े में लिपटा होता था।
शिशु परिचर्या में किसी भी शिशु के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण, सबसे उपयोगी वस्त्रों में है पोतड़ा और यह हिमाचल, उत्तराखंड , पंजाब, गुजरात से लेकर मालवी, मारवाड़ी, बुंदेली, राजस्थानी ब्रज, अवधी, भोजपुरी मैथिली, छत्तीसगढ़ी और ऐसी अनेक भाषाओं बोलियों में जाने कब से प्रचलित रहा है। बच्चा चाहे अमीर का हो या गरीब का, महलों में पले या झोपड़ियों में, उसके लिए जन्म के बाद पहला निर्धारित वस्त्र हुआ करता था पोतड़ा।
समय की करवट, नई शिक्षा-दीक्षा और अंग्रेजी भाषा की चकाचौंध में इस पोतड़े को अपवित्र मानकर सामान्य व्यवहार से भुला दिया गया है। अब दूर-दराज के गाँवों में भी नई माताएँ पोतड़ा के स्थान पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने लगी हैं । 
पश्चिमी देशों में पोतड़े के लिए "डायपर" शब्द अधिक प्रचलित रहा है। भारत में प्रारंभ में डायपर के साथ "हैम्पर" शब्द फैशनेबल घरों में चला। तीसरा शब्द आया "नैपकिन" जिसे नैपीज़ कर लिया गया।
अब पिछले कुछ दशकों से इन सब को पीछे छोड़कर एक नया शब्द प्रचलन में आया है। जिसके नाम को सुनकर पुरानी सोच वालों को थोड़ा सा अटपटा लगता है। परंपरा से मल विसर्जन क्रिया से संबंधित इस शब्द को ग्रामीण माना जाता रहा है। इसलिए सामान्य शिष्ट प्रयोग से यह बहिष्कृत रहा है। गाँव देहात में अब भी उस परमावश्यक मूल क्रिया के लिए शौच जाना, दिशा जंगल, बाहर जाना, झाड़ा जैसे सांकेतिक पदों का प्रयोग किया जाता है। किंतु अब नई लहर में, चूँकि यह अंग्रेजी से आया है, इसलिए एक ओर प्यार में गले मिलने, अंतरंग आलिंगन के लिए इस क्रिया का प्रयोग होने लगा और दूसरी ओर इससे बनी संज्ञा शिशुओं के मूल अंतर्वस्त्र के लिए "हगीज़" नाम से वरेण्य हो गई। यों हगीज़ शब्द डायपर के लिए ही एक अमेरिकी व्यावसायिक कंपनी "किम्बर्ली क्लार्क" का ब्रांड नाम था और सर्वप्रथम 1968 में बाज़ार में आया।
आज यह नाम अपने देश में उतना ही लाड़ला हो चुका है जितना नवजात शिशु। दादियाँ-नानियाँ भी निस्संकोच प्रयोग करने लगी हैं। मानना पड़ता है कि अंग्रेजी की चकाचौंध कितनी आकर्षक होती है।

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