"जै हुँ रीस भई, वीक सिद्द खुट ले बाँङ् देखिनी बल।"
यह एक कुमाउँनी कहावत है जिसका अर्थ है- "जिससे मन न मिले उसकी सीधी टाँगें भी टेढ़ी दिखाई देती हैं।"
(If you dislike someone with perfect legs, you find him bandy.)
इस शब्द की व्युत्पत्ति है:
वङ्क (सं) > बाँक (हि) > बाँङ्/बाङ्गो (कुमाउँनी)
पूर्वी कुमाउँनी (सोऱ्याली), नेपाली में भी बाङ्गो ही है।
बांग्ला में বাঁকা ,বাঁকানো और पंजाबी में “बिंगा”। प्रसिद्ध बांग्ला लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के नाम का पहला शब्द इसी बाँके का संस्कृत रूप है।
बाँकपन किसी अंग, वस्तु, नदी, स्वभाव आदि का हो सकता है। हिंदी में बाँका मस्त स्वभाव वाले व्यक्ति के लिए विशेषण तो है ही, बाँके बिहारी की बाँकी चितवन, बाँकी छटा, बाँके नैनों की अद्भुत छटा का बखान करते भक्त अघाते नहीं। कहा यह भी जाता है कि राधा जी की बाँकी भौहें बाँके बिहारी को बाँधे रहती हैं।
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