किसी कवि ने रोटी को चंद्रमा माना था, ऐसा चंद्रमा जो बादलों के पार रहता है और यहाँ भूखे उसका इन्तज़ार कर रहे होते हैं पर वह उनके हाथ लगता नहीं है। यूं रोटियों की गिनती किसी न किसी संख्या में ही होती है किंतु कभी-कभी लाक्षणिकता में कह दिया जाता है- "एक-आध रोटी मिल जाती है"। एक-आध रोटी मिलना मुहावरा है जिसका तात्पर्य एक रोटी, आधी रोटी या एक और आधी अर्थात् डेढ़ रोटी से नहीं होता, 'कुछ' रोटियों से होता है।
रोटी से जुड़े दो संख्यावाचक विशेषण बड़े लोकप्रिय हैं और जितने लोकप्रिय हैं उतने ही उलझाने वाले भी। वे हैं- "पाव" (1/4) और "डबल" (1+1)। रोटी, बड़ी छोटी जैसी भी हो, सिंकेगी तो पूरी ही। वह पाव या डबल कैसे हो सकती है!
यह तो हम जानते हैं कि पाव रोटी या डबल रोटी तवे या तंदूर में सिँकी भारतीय रोटियाँ नहीं हैं। ये रोटियाँ ख़मीर से फुलाए गए आटे से बनती हैं और 'लोफ़' या 'ब्रेड' नाम के साथ यूरोप से यहाँ पहुँची हैं। हाँ, इनके साथ पाव या डबल विशेषण जोड़कर इन्हें संकर शब्द बनाने का श्रेय भारत को ही जाएगा।
अब पहले पावरोटी। ईसाई धर्म में ब्रेड का धार्मिक महत्त्व भी है। कहा जाता है कि ईसा मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने की पहली रात को दिए गए भोज (लास्ट सपर) के बाद ईसा मसीह के द्वारा अपने शिष्यों को अनलीवेंड ब्रेड और वाइन प्रसाद के रूप में बाँटा गया था और आज भी यह प्रथा है। कैथोलिक चर्च से विशेष जुड़ाव के कारण पुर्तगालियों में यह आयोजन बहुत लोकप्रिय था। सोलहवीं शताब्दी में जब पुर्तगालियों ने गोवा को उपनिवेश बनाया तो उन्हें खमीरी रोटी (लीवेंड ब्रेड) की कमी महसूस होने लगी; खाने के लिए ही नहीं, धार्मिक महत्त्व के कारण भी। ख़मीर (यीस्ट) की अनुपलब्धता के कारण पुर्तगाली रसोइये यहाँ खमीरी रोटी बनाने में असमर्थ थे। एक दिन एक पुर्तगाली रसोइये ने इसका हल खोज लिया। उसने आटे में ख़मीर के स्थान पर ताड़ी मिलाई। ताड़ी ने वही काम किया जो ख़मीर करता और इस तरह ख़मीरी रोटी तैयार हो गई। यह ठीक ही कहा जाता है कि भारत में ब्रेड सबसे पहले पुर्तगाली ही लेकर आए।
अब नामकरण। पुर्तगाली में रोटी को पाव कहा जाता है। Pão de Mafra और Pão Alentejano पुर्तगाल की प्रसिद्ध खमीरी ब्रेड थीं। भारत में ब्रेड रोटी ही थी। इसलिए इस विशेष रोटी को "पाव रोटी" कहा गया। प्रारंभ में पाव रोटी के बारे में यह विश्वास भी था कि इसे बनाने के लिए आटे को पाँव से माँड़ा जाता है, इसलिए इसे "पांव रोटी" कहकर इसे खाने से परहेज़ किया गया। कुछ लोग यह भी समझते हैं कि पाव भर वजन होने के कारण इसे पावरोटी कहा जाता है! सच यह है कि पाव रोटी ही है। मुंबई के प्रसिद्ध व्यंजन पाव भाजी में पाव रोटी का ही नाम है।
"डबल" रोटी के बारे में भी दो प्रकार की सोच रही। कुछ लोगों ने माना कि सैंडविच बनाने के लिए डबल रोटी के दो (डबल) स्लाइस काम में लाए जाते हैं, इसलिए यह डबल रोटी है। कुछ समझते हैं आकार में बड़ी होने के कारण इसे डबल रोटी कहा गया। डबल रोटी कहे जाने का कारण संभवतः यह है कि ख़मीर मिलाकर गुँथा हुआ आटा (मैदा) बहुत फूल जाता है, उसका आकार बढ़कर डबल हो जाता है, इसलिए उससे बनी हुई रोटी डबल रोटी।
बकौल अकबर 'इलाहाबादी'-
"छोड़ लिटरेचर को अपनी हिस्ट्री को भूल जा
शैख़-ओ-मस्जिद से तअ’ल्लुक़ तर्क कर स्कूल जा
चार-दिन की ज़िंदगी है कोफ़्त से क्या फ़ाएदा
खा डबल रोटी, क्लर्की कर, ख़ुशी से फूल जा।"
डबल रोटी/पाव रोटी के बाद सैंडविच
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तुरंता भोजन में सैंडविच विश्व भर में बड़ा लोकप्रिय है। अपने देश में भी नाश्ता हो चाहे स्नैक्स, या बहुत ज़रूरी हुआ तो लंच और डिनर में भी सैंडविच पसंद किए जाते हैं। सैंडविच है क्या? इसमें न सैंड (बालू) है न इसे कोई विच बनाती है। जैसा कि हम जानते हैं, डबल रोटी/लोफ़ के दो टुकडों (स्लाइसों) के बीच मक्खन, पनीर अथवा शाकाहारी, मांसाहारी किसी भी खाद्य का मिश्रण भरकर सैंडविच तैयार हो जाते हैं।
सैंडविच के नामकरण का बड़ा रोचक किस्सा है। दक्षिण पूर्वी इंग्लैंड में केंट काउंटी के डोवर जिले में एक छोटा, ख़ूबसूरत- सा शहर है सैंडविच, जो कभी बंदरगाह हुआ करता था। सैंडविच शहर का नाम पड़ने का कारण उसका रेतीली ज़मीन पर बसा होना है। सैंडविच का शाब्दिक अर्थ है रेत पर बसा बाज़ार।
शाही खानदान के किसी ख्यात व्यक्ति जॉन मोंटेग्यू को यहाँ का चौथा "अर्ल ऑफ सैंडविच" बनाया गया (अर्ल एक प्रतिष्ठित पद)। जॉन को जुआ खेलने की लत थी और वह खाना खाने के लिए भी जुए की मेज़ को छोड़ना नहीं चाहता था। एक बार जब उसके सामने भोजन लाया गया तो उसके हाथ में ताश के पत्ते थे। उसने सेवक को आदेश दिया कि वह दो स्लाइस ले और उनके अंदर बीफ़ के दो टुकड़े भरकर उसे दे दे। इससे उसने भोजन भी कर लिया, उसके खेल में बाधा नहीं पड़ी और हाथों में चिकनाई भी नहीं लगी जिससे कार्ड गंदे हों।
तब से उसके साथी भी खाना परोसने वाले को सैंडविच कहने लगे। आशय था वही लाओ जो अर्ल ऑफ सैंडविच खाता है। और इस प्रकार एक नए व्यंजन का आविष्कार और नामकरण हो गया जो आज सारे संसार में जाना जाता है।
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार। कृपया निरर्हित की उत्त्पत्ति पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें।
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