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नाश और सत्यानाश


'सत्यानाश' यौगिक शब्द है, दीर्घ स्वरसंधि युक्त पद नहीं। इस यौगिक शब्द का विच्छेद सत्य+अनाश नहीं, सत्य+नाश होगा। उच्चारण और तदनुसार वर्तनी में अतिरिक्त //आ// आ गया है; जैसे- दीनानाथ, उत्तराखंड, दक्षिणापथ में। यह एक स्वाभाविक भाषिक प्रक्रिया है।
अब देखना है कि नाश क्या है। संस्कृत में √नश्  (अदर्शन,उजड़ना) से घञ् प्रत्यय जुड़कर नाश बना है। नाश के कोशगत अर्थ हैं - ध्वंस , बर्बादी, तबाही, उजड़ना इत्यादि।
सांख्य दर्शन के अनुसार "नाशः कारणलयः", कारण में लय होना ही नाश है क्योंकि वस्तु का अभाव नहीं होता । जब कोई कार्य कारण में इस प्रकार लीन हो जाए कि वह फिर कार्यरूप में न आ सके, तब सर्वनाश अर्थात पूर्ण विनाश (complete annihilation) होता है ।
सत्यानाश शब्द देखने-सुनने में जितना डरावना है, व्यवहार में उतना नहीं। कभी-कभी छोटे-मोटे बिगाड़ या मामूली हानि हो जाने पर भी झुँझलाहट या गुस्से में "सत्यानाश" कह दिया जाता है। तब वक्ता का आशय पूर्ण विनाश नहीं , कुछ इस प्रकार होता है-

‌नई प्लेट गिरा दी! कर दिया न सत्यानाश। (हानि कर दी)


‌कहना नहीं माना तो सत्यानाश हो गया। (परिणाम बुरा हुआ)


‌सत्यानाश हो तुम्हारा। (शाप/गाली देना)


‌व्यापार करने चले थे, सत्यानाश कर दिया। (बरबादी कर दी)


‌ विवाह के दिखावे में इतने रुपयों का सत्यानाश करने की क्या आवश्यकता थी? (अपव्यय, बर्बादी)


‌ओले गिरने से खेत में खड़ी फ़सल का सत्यानाश हो गया। (पूरी तरह नष्ट हो गई)

सत्यानाश इतना बुरा नहीं है, इसीलिए एक बहुत उपयोगी स्वर्ण वर्णा जड़ी बूटी का नाम सत्यानाशी है !

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