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मई, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चिड़िया का बहुवचन

जानकारी न होने के कारण स्त्रीलिंग बहुवचन शब्दों में अशुद्धियाँ मिलती हैं। जैसे चिड़िया के तीन रूप-  1. चिड़ियें (क्योंकि गाय > गायें, बहन >बहनें) 2. चिडियाएँ (क्योंकि कथा > कथाएँ, सेना > सेनाएँ) 3. चिड़ियाँ (क्योंकि??) नियम यह है। जिन स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के अंत में या/इया आ रहा हो उनके साथ स्त्रीलिंग के लिए आँ प्रत्यय जुड़ता है। मूल शब्द के अंत में भी आ होने से दीर्घ संधि हो जाती है और स्वर की अनुनासिकता बनी रहती है। जैसे  बुढ़िया >बुढ़ियाँ चिड़िया> चिड़ियाँ गुड़िया> गुड़ियाँ बचपन में दूरदर्शन से सुना हुआ वह गीत याद रखिए— "एक चिड़िया, अनेक चिड़ियाँ.." अप्रत्यक्ष/तिर्यक (oblique) बहुवचन के लिए सभी प्रकार की संज्ञओं के साथ सर्वत्र ओं जुड़ता है। लताओं, बेलों, कुर्सियों, नदियों , चप्पलों इत्यादि। दुनिया आकारांत है, कन्याओं, भार्याओं की तरह दुनियाओं होगा । व्यवहार में 'दुनियाओं' का उपयोग कम ही होता है।  चिड़िया, गुड़िया आदि में ओं प्रत्यय आ के स्थान पर आता है। इसलिए  चिड़ियों को दाना डालें। प्रबंधन गुड़ियों का खेल नहीं है। बूढ़ियों, बुढ़ियाओं दोन...

हिंदियाँ ...!

कहते हैं किसी के संस्कार या उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि देखनी हो तो यह देखिए की वह तू और आप सर्वनामों का प्रयोग कैसे करता है। भाषा के मृदु या कठोर होने का पैमाना भी इन्हीं दो सर्वनामों को मानते हैं। यह बात और है कि कुछ भाषाओं में आप का अभाव है। वे आप के बदले तुम से काम चला लेते हैं। पंजाबी में आदरार्थक 'आप' सर्वनाम चाहे न हो, लेकिन परंपरा से पंजाबी को मीठी ही माना गया है। विभाजन से पूर्व पंजाब की भाषा के लिए चंद्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी 'उसने कहा था' को याद कर सकते हैं। कहानी की शुरूआत में ही अमृतसर के इक्केवालों की ज़ुबान सुनाई पड़ती है—-"हट जा जीणे जोगिए; हट जा करमाँ वालिए; हट जा पुत्ताँ प्यारिए; बच जा लंबी वालिए।" समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्यों वाली है, पुत्रों को प्यारी है, लंबी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिए के नीचे आना चाहती है? कितनी मिठास! तहज़ीब-ओ-नज़ाकत वाले शहर लखनऊ के बारे में सुना जाता है कि गुस्से में भी वे तहज़ीब नहीं भूलते। आप सर्वनाम और -इए प्रत्यय वाली क्रियाएँ उन्हें बहुत प्रिय हैं। थप्पड़ मारने से पह...

कट्टी-बट्टी और सल्ला

"कट्टी तो कट्टी  बारह बजे बट्टी  मैं खाऊँ आइस्क्रीम  तू खाए मिट्टी ...... हा-हा , हा-हा-हा !!!" आजकल बुढ़ा रही पीढ़ी जब बिला जाएगी तो कट्टी-बट्टी का नाम भी इतिहास हो जाएगा। अब कट्टी-बट्टी का समय नहीं रहा। देसी खेल खेल नहीं रहे। अब कट्टी नहीं होती, 'ब्रेकअप' हो जाता है। कौन समझाए कि ब्रेकअप बहुत डरावना हुआ करता है। उन्हें कौन बताए कि बच्चो! तुम्हारी उम्र ब्रेकअप की नहीं, कट्टी की है। ईश्वर न करे बड़े होकर भी किसी को ब्रेकअप का सामना करना पड़े। संबंधों में ब्रेकअप से नरक हो जाती है ज़िंदगी। और बच्चों को ब्रेकअप से क्या ही लेना-देना। ब्रेकअप टूटने के लिए होता है, और कट्टी थोड़ी देर रूठ कर फिर से जुड़ने के लिए। रूठने और मानने-मनाने का खेल ’कट्टी’ और ‘बट्टी' (अब्बा) छोटी उम्र के बच्चों में लगभग रोज़ाना होता रहता है। असल में तो यह खेल भी नहीं है। खेल-खेल में रूठने का और फिर जब चाहो तब वापस दोस्तों के पाले में आ जाने का खेल है। न किसी के मन में क्लेश, न किसी से दुश्मनी। इस पल कट्टी, तो अगले पल बट्टी। मामला थोड़ा-सा उलझा हुआ हो तो घूसखोरी भी चलती है— दो-तीन खट्टी गोलियाँ, ...