बड़े-बूढ़ों को कहते सुनते थे कि जब दिन फिरते हैं
तो दासी को पटरानी बनते देर नहीं लगती और पटरानी ऐसी पदच्युत होती है कि कोई उधर
देखता भी नहीं. यह कहावत किसी भाषा और उसके शब्दों पर भी सटीक बैठती है. कभी
सामान्य अर्थ देने वाले शब्द विशिष्ट अर्थ देने लगते हैं और कभी विशिष्ट शब्द
सामान्य अर्थ. हिंदी में ही नहीं, सभी जीवंत
भाषाओं में अर्थ में उतार-चढ़ाव का यह कार्यव्यापार निरंतर किंतु चुपचाप चलता ही रहता
है.
इन दिनों चौकीदार शब्द बहुत लोकप्रिय हो चला है
अपने देश में.
चौकीदार शब्द से एक कर्तव्य परायण किंतु साधारण-सा माना जाने वाले
पद, मामूली और अपर्याप्त वेतन पाने वाले असहज ज़िम्मेदारी उठाने वाले आदमी की छबि
बनती है. कठिन बेरोज़गारी के दौर में भी गरीब से गरीब माता-पिता भी यह कभी नहीं
सोचते कि उनका लड़का चौकीदार बने. पर इधर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि बड़े-बड़े देशभक्त
मंत्री,
अधिकारी,
कार्यकर्ता, सेवक,
समर्थक, हितैषी आदि पलक झपकते अपने नाम के आगे चौकीदार विशेषण जोड़कर विशिष्ट बन
गए. शब्दार्थ की दृष्टि से देखें तो किसी
शब्द के सम्मान में अप्रत्याशित रूप से ऐसी वृद्धि पहले कभी शायद ही देखी गई हो.
गली-मोहल्ले के चौकीदार के वेतन, सम्मान, सुविधाओं में
चाहे कोई गुणात्मक अंतर न आया हो किंतु उसका पदनाम अचानक इतना सम्मानित हो जाएगा, यह कल्पना तो
उसने कभी सपने में भी न की होगी.
व्युत्पत्ति करते हुए स्पष्ट होता है कि चौकीदार
दो शब्दों में समास करने से बना शब्द है – चौकी और दार. पहले चौकी की चर्चा करें.
चौकी का संबंध संस्कृत ‘चतुष्क’ से है जिसका अर्थ है चार का समूह,
जैसे चौराहा, चौकोर
आँगन, चार
खम्भों पर टिका महल. इसी से बना है ‘चतुष्की’ जिससे चौकी का प्रत्यक्ष संबंध है.
चार पायों पर टिका लकड़ी या पत्थर का छोटा आसन, पटरा, छोटा मंच आदि
चौकी कहलाते हैं. चौकी पर कोई बड़ा आदमी, अधिकारी, शक्तिमान, नेता
विराजता है या उन्हें पधराया जाता है. सभी आस्तिक परिवारों में पूजागृह में एक
चौकी अवश्य होती है जिसमें किसी देवी देवता का विग्रह विराजता है. अधिक सम्मान भाव
से हम उस चौकी को सिंहासन भी कहते हैं, क्योंकि सिंहासन भी मूलतः तो चौकी
ही है.
आगे चलकर गाँव, समाज या
सार्वजनिक महत्व के स्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर प्रतिष्ठित, प्रतिष्ठापित
या प्रतिनियुक्त व्यक्ति का कार्यस्थल भी चौकी कहा जाने लगा. जैसे ज़मीदार साहब की
चौकी, पुलिस
चौकी, चुंगी
चौकी,
प्रधान जी की चौकी आदि. इस प्रकार चौकी का अर्थ विस्तार हुआ - पड़ाव, ठिकाना, रखवाली या
निगरानी करने का स्थान, चुंगी वसूलने की जगह, पहरेदार का
ठिकाना आदि. सैनिक भी चूँकि रखवाली, पहरेदारी के काम से जुड़े हैं इसलिए
उनकी छोटी-छोटी टुकडियों के पड़ाव या कार्यस्थल को भी चौकी ही कहा जाता है.
इससे पहले कि हम चौकीदार शब्द की व्युत्पत्ति
जानने के लिए और चीर-फाड़ या पड़ताल करें, एक भाषाई, या कहिए भाषा पर आधारित मैत्री
संबंध की ओर ध्यान जाता है. क्या आप विश्वास करेंगे कि एक ओर गंगाधर, मुरलीधर,
मणिधर, विषधर
जैसे शब्द और दूसरी ओर नामदार, कामदार, चौकीदार, कर्जदार
जैसे शब्द एक ही कुनबे के हैं! सचाई यही है. आप चाहें तो इन्हें परस्पर चचेरे भाई
कह सकते हैं. बात यों है कि संस्कृत में ‘धृ’ धातु धारण करने, सँभालने,
दबाने आदि के अर्थ में है. इसी से विशेषण बनता है ‘धर’ अर्थात धरने
वाला, दबाने वाला, उठाने
वाला, मालिक.
फ़ारसी में यही धर शब्द ‘दार’ बन गया है. दार
शब्द क्रियामूल (धातु) भी है और समास से जुड़ने वाला भी. फारस का प्रसिद्ध बादशाह
दारा (डेरियस) के नाम में यही दार है जिसका अर्थ किया जाता है (सद्गुणों का-)
धारक. धर और दार दोनों विशेषण हैं, दोनों का अर्थ एक सा है और किसी प्रत्यय की
भांति शब्द के साथ जुडकर समस्तपद का निर्माण करते हैं. कश्मीर में प्रायः प्रयुक्त
उपनाम धर, दर/दार
में यही शब्द हैं. चूँकि दोंनों का प्रयोग होता है इसलिए संस्कृत-फ़ारसी का झंझट ही
नहीं, किंतु यह अलिखित समझौता अवश्य पाया जाता है कि प्रायः हिंदू अपने नाम के साथ
धर लगाते हैं और मुसलमान दार.
इन दोनों विशेषण-प्रत्ययों की सहायता से निर्मित
सैकड़ों शब्द हिंदी में और अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रयुक्त हो रहे हैं. चौकीदार
शब्द के निर्माण में समन्वय और समाहार का भाव भी है क्योंकि इसका पूर्वार्ध
संस्कृत के चतुष्क से निष्पन्न है और उत्तरार्ध में "दार" शब्द फ़ारसी से आया है. ऐसे शब्दों को संकर (हाइब्रिड) शब्द कहा
जाता है जो दो भिन्न भाषाओं से आकर भी एक होकर रहते हैं.
कामदार और
नामदार
चौकीदार शब्द के समानांतर दार प्रत्यय से बने कुछ
और शब्द आजकल चर्चा का विषय बने हुए हैं और प्रायः एक साथ ही उछाले जाते हैं. जैसे
नामदार,
कामदार और ईमानदार. नामदार तो वस्तुतः नामवाला ही है जिसके लिए एक फिल्मी गीत में
कहा गया है, “जो
है नामवाला वही तो बदनाम है...”. यों नामदार भी संकर शब्द है और इसका अर्थ है
प्रतिष्ठित,
सम्मानित,
यशस्वी,
इज्ज़तदार. इसके अन्य पर्याय नामधारी और नामवर हैं पर इनका बाज़ार भाव भी आजकल गिरा
हुआ है.
कामदार को प्रायः काम करनेवाला समझा जाने लगा है, कितु इसका
वास्तविक अर्थ यह नहीं है. इस अर्थ में तो कामगार शब्द है, कामदार नहीं.
कामदार का वास्तविक अर्थ है - जरदोजी या कलाबत्तू के काम वाला, जैसे कामदार जूती, कामदार टोपी, कुरती,
साडी, शौल
आदि. हाँ, ईमानदार शब्द की अपने आप में ख्याति है. चौकीदार के लिए यह आवश्यक गुण
है और नामदार में यह गुण न हो तो बदनाम होने का पूरा खतरा. ईमानदार की ही तर्ज पर
थोडा सा वर्ण विपर्यय करके एक शब्द मिलता है "इनामदार", जो अरबी से आया है और
कामदार-नामदार की बहस में मिसफिट है. इसका प्रयोग भी प्रायः गलत सन्दर्भों में
किया जा रहा है. किसी भी प्रकार के पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति के लिए इस विशेषण का
प्रयोग करना ठीक नहीं क्योंकि मूलतः यह राजा-रजवाड़ों से बख्शीश में ज़मीन आदि पाने
वालों के लिए प्रयुक्त होता था जो माफीदार भी कहलाते थे. ऐसे अपराधी जिनको पकड़ने
पर किसी प्रकार का इनाम देने की घोषणा की जाती है, उनके लिए
कभी-कभी इनामदार अपराधी कहते सुना गया है, पर यह प्रयोग भी उपयुक्त नहीं लगता.
किसी चौकीदारको उसकी चौकीदारी पर प्रसन्न होकर या किसी अन्य सेवक को उसकी किसी और
सेवा पर रीझकर आप इनाम में कुछ भी दे दें, पर इस बात पर उसे "इनामदार" विशेषण न
दें तो ही अच्छा है.
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