#बाप
पिता के लिए हिंदी/उर्दू और इस क्षेत्र की बोलियों में पापा, डैडी, डैड, बाबू जी, बाबू, बबा, दादा, बापू, बाबु ज्यू, बौज्यू, वालिद, अब्बा, अब्बू, कुछ भी चलेगा, सिर्फ़ बाप नहीं। ऐसा क्यों?
लगता है कि पिता को संबोधित करने के लिए 'बाप' न बोलने की परंपरा मध्यवर्गीय शहरी लोगों के बीच से आई है, जिसे समाज भाषा वैज्ञानिक नियमन कह सकते हैं। बाप के अतिरिक्त कुछ और भी रिश्ते-नाते के शब्द हैं जिन्हें संबोधन के लिए नहीं बोला जाता; जैसे साला, साली, ससुर आदि को सीधे इन्हीं के संबोधन शब्दों से नहीं पुकारा जाता। इसका मुख्य कारण इन शब्दों का अपमानजनक उपयोग और एक सीमा तक समाज का वर्ग भेद भी है। अपशब्दों के रूप में ही साला, साली, ससुर/ससुरा का प्रयोग होता है, सामान्य स्थितियों में नहीं।
एक मज़ेदार बात और। हम बाप शब्द को निम्नतर या असम्मानजनक भले ही मानते हों, किंतु गांधी जी को बापू कहकर सम्मान देते हैं और गणेश जी को श्रद्धा-भक्ति पूर्वक गणपति बप्पा कहते हैं। माई के साथ बाप का समस्त पद भी ग्राह्य है : "माई-बाप!!"
केवल एक स्थिति में विचलन माना जा सकता है जो संबोधन-सा लगता तो है पर है नहीं। विस्मयार्थक संरचना में भय मिश्रित आश्चर्य व्यक्त करने में कहा जाता है , "बाप रे!" अथवा "अरे बाप रे!"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें