#गप: 2
पिछली गप शायद कुछ प्रेमियों को गप नहीं लगी। तो आज की गप सचमुच यानी वाकई गप होगी। मैं भाषा की ही कसम खाकर कहता हूँ कि गप ही कहूँगा, गप के सिवा कुछ भी नहीं।
उर्दू (اردو) की बात करें? उर्दू और हिंदी के संबंधों की बातें करें? कहीं से भी शुरू करें, बात एक ही बनी रहती है कि जो हिंदी है वही उर्दू और जिसे वे उर्दू कहते हैं वह हिंदी के अलावा कुछ नहीं है। भाई मेरे, जब आत्मा एक हो, शरीर भी एक-सा ही हो (जुड़वांओं का-सा समझ लीजिए), तो केवल चोला-लबादा-बुर्क़ा बदलने से, धोती कुर्ता पहनने से, या पेंट, कमीज और सूटेड - बूटेड परिधान से भाषा नहीं बदलती। किसी पढ़े-लिखे भाई ने कहा है लिपि और भाषा दोनों अलग-अलग चीजें हैं। माने लिपि भाषा नहीं है और भाषा लिपि नहीं है। देवनागरी लिपि में तो हिंदी के अलावा भारत की आधा दर्जन से अधिक भाषाएँ और बीसियों बोलियाँ लिखी जाती हैं। और भी लिखी जा सकती हैं। लेकिन वह सब हिंदी तो नहीं ना हैं!
' उर्दू' शब्द मूलतः तुर्की भाषा का है तथा इसका अर्थ है- 'शाही शिविर’ या ‘खेमा’(तम्बू)। तुर्कों के साथ यह शब्द भारत में आया और इसका यहाँ प्रारम्भिक अर्थ खेमा या सैन्य पड़ाव था। तुर्क सैनिक यहां के बाजार में आपसी लेन-देन में जिस भाषा का प्रयोग करते थे उसमें भारतीय और तुर्की, अरबी, फारसी के सहज सरल शब्दों का मेलजोल मोल-भाव, बात-बतकही के लिए जरूरी था। यह बाज़ार भाषा अपनी बुनावट का ताना-बाना, जिसे हम व्याकरण कहते हैं, ब्रज और खड़ीबोली का अपना रही थी और उसमें उन शब्दों को पिरो रही थी जो भारतीय भी थे और फ़ारसी, अरबी या तुर्की के भी। लाहौर, अमृतसर और उसके बाद दिल्ली उन्हीं के साथ यह भाषा पहुंची। शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिला बनवाया। यह भी एक प्रकार से ‘उर्दू’ (शाही और सैन्य पड़ाव) था, किन्तु बहुत बड़ा था। अतः इसे ‘उर्दू’ न कहकर ‘उर्दू ए मुअल्ला’ कहा गया तथा यहाँ बोली जाने वाली भाषा- ‘ज़बाने उर्दू ए मुअल्ला’ (श्रेष्ठ शाही पड़ाव की भाषा) कहलाई। भाषा विशेष के अर्थ में ‘उर्दू’ शब्द इस ‘ज़बान - ए - उर्दू - ए - मुअल्ला’ का संक्षेप है।
अब उर्दू के साथ हुआ यह कि फारसी लिपि अपना ली गई तो इस लिपि को ङ् जानने वाले सामान्य लोगों को लगा कि यह तो अपनी है ही नहीं।
भाषा दरअसल व्याकरण भिन्न होने पर ही भिन्न मानी जाती है, पर उर्दू और हिंदी का मूल व्याकरण तो बिल्कुल एक है। शब्दावली में अवश्य अंतर है किंतु सीमा रेखा नहीं है। न कोई परहेज है कि हिंदी के अमुक शब्द उर्दू नहीं लेगी या उर्दू फारसी के अमुक शब्द हिंदी नहीं लेगी। कोई लिखित - अलिखित समझौता नहीं है।
खानदान, परिवार, वंश की बात भी की जाती है। इस दृष्टि से भी दोनों एक ही खानदान की हैं। दोनों एक बड़े परिवार, भारत - यूरोपीय की हैं और उसके एक उप परिवार जिसे "भारत ईरानी" कहा जाता है, की बेटियाँ हैं और दोनों ही भारतीय आर्य भाषा कुल में मानी जाती हैं। तो खानदान भी एक हो गया। मुहम्मद हुसैन आज़ाद तो उर्दू की उत्पत्ति ही ब्रजभाषा से मानते हैं। 'आब - ए - हयात' में वे लिखते हैं कि 'हमारी ज़बान ब्रजभाषा से निकली है।'
दो भाषाओं को परस्पर भिन्न मानने की एक और कसौटी है। वह है दोनों में परस्पर बोधगम्यता अर्थात एक भाषा अगर बोली जा रही हो तो भिन्न मानी जाने वाली भाषा के बोलने वाले उसे कितना समझते हैं। सामान्यतः यदि लगभग 40% से कम बोधगम्यता हो तो उसे भिन्न भाषा माना जा सकता है। उर्दू - हिंदी के साथ ऐसा नहीं है , बल्कि यह कहें की मैथिली और मालवी में परस्पर बोधगम्यता संभवतः कम है, उर्दू और हिंदी में अधिक। उधर कथित उर्दू भाषी पाकिस्तान के लेखक,नेता, वक्ता, पत्रकार जब उर्दू बोलते हैं तो हम समझते हैं । हमारे नेता, वक्ता, पत्रकार बोलते हैं तो वे समझते हैं। हम परस्पर दुभाषिए नहीं रखा करते, क्योंकि बोधगम्यता है। तो इस कसौटी में भी दोनों भिन्न भाषाएं नहीं ठहरती।
अब राजनीतिक सीमा रेखा की बात। बेशक उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा है और भारत - पाकिस्तान के संबंध साँप- छछूंदर के संबंध हैं। किंतु पाकिस्तान में उर्दू ज़बान बोलने वालों की संख्या भारत की अपेक्षा 6 गुना कम है। उर्दू भारत में भी जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है । उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना तथा दिल्ली की सह राजभाषा (शासन-प्रशासन की दूसरी भाषा)। तो राज्य से संबंध भी हो गए।
एक गैर सरकारी आकलन के अनुसार मातृभाषा के स्तर पर उर्दू बोलने वालों की संख्या इस प्रकार है, किंतु यहाँ यह भी ध्यान में रखना होगा कि इनमें से अधिकांश लोग हिंदी भाषी भी होंगे जिन्हें आंकड़ों में पहचानना दूध में पानी को पहचानना है।
भारत - 6.81 करोड़
पाकिस्तान - 1.87 करोड़
बांग्लादेश - 6.5 लाख
संयुक्त अरब अमीरात - 6 लाख
ब्रिटेन - 4 लाख
सऊदी अरब - 3.82 लाख
कनाडा - 80895
क़तर - 15000
फ्रांस - 15 000
पाकिस्तान की राजभाषा उर्दू है किंतु इसके लिए भारत से विस्थापित उर्दू भाषी कारण नहीं हैं। विस्थापित तो आज भी वहाँ मुहाजिर ही हैं और नफ़रत से देखे जाते हैं। मुहाजिरों में 70 फीसदी से अधिक आबादी तो यूपी वालों की ही है। इसलिएवहाँ सभी विस्थापितों को 'यूपी वाला' भी कहा जाता है, जो पाकिस्तान में एक नस्लीय गाली है। जिन्हें गाली दी जाती हो उनकी भाषा को वे राजभाषा क्यों बनाने लगे। बात कुछ और थी। पाकिस्तान में तो आज भी उर्दू भाषी कुल आबादी के आठ प्रतिशत से भी कम हैं।
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