जब दो परिचित या अपरिचित व्यक्ति आपस में मिलते हैं तो कार्य व्यापार प्रारंभ होने से पहले परस्पर अभिवादन किया जाता है। यह अभिवादन उनकी उम्र, शिक्षा, सामाजिक स्तर, लिंग, जाति, परस्पर विश्वास तथा अन्य अनेक कारकों पर निर्भर होता है और इन्हीं के आधार पर अभिवादन के कुछ शब्द समाज स्वीकृत हो जाते हैं। हिंदी के संदर्भ में बात करें तो तीन बहुप्रचलित शब्द सबसे पहले याद आते हैं- नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम। तीनों का मूल एक है संस्कृत की √नम् धातु, जिसका अर्थ है झुकना, विनम्र होना।
यों भारत में अभिवादन के लिए बीसियों शब्द प्रचलित हैं। राम-राम, राधे राधे, जय श्री कृष्ण, जुले, सत श्री अकाल, जय जिनेंद्र, ढाल करूँ, पायलागी, पैरी पैणा, नमो नारायण, अलख निरंजन और भी अनेक। किंतु देश भर में सर्वाधिक प्रचलित अभिवादन है- नमस्ते।
नमन, नमस्ते, नमस्कार, प्रणाम इन सबमें झुकने का भाव प्रधान है। हम जिसे भी नमन कर रहे हों उसके सामने हमारे शरीर की मुद्रा किसी न किसी रूप में झुकने की होती है। वह चाहे थोड़ा सा सिर झुकाने की हो, चाहे सिर सहित धड़ झुकाने की हो, चाहे दंडवत अर्थात् लाठी के समान चरणों के सामने लेटने की हो, या साष्टांग प्रणाम करने की हो; इन सब में "नमन" प्रधान कर्म है,। हम नमन नहीं कर पाएँ तो मुंह से नमन के किसी पर्याय को केवल बोलकर अपनी विनम्रता और अपना अभिवादन व्यक्त करते हैं।
√नम् धातु से बने तीन शब्द मुख्य रूप से प्रचलित हैं - नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम। इनके बारे में प्रायः शंका की जाती है कि क्या इनमें कोई भेद है या तीनों में से किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है। यों तो यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपके परिवार या समाज में परंपरा से क्या प्रचलित है, फिर भी इनके अर्थ में सूक्ष्म किंतु स्पष्ट अंतर है।
नमस्ते एक पूरा वाक्य है। नमः ते अर्थात् नमस्कार करता हूँ आपको। आपके सामने जो भी वंदनीय उपस्थित हो उसे नमस्ते कहा जाता है। नमस्कार का अर्थ है नमन करने का भाव। इसका पूरा वाक्य बनेगा मैं नमस्कार करता हूँ। यह एक सामान्य उद्घोषणा जैसा है। आप व्यक्तिगत रूप से किसी एक के प्रति नमन का भाव व्यक्त नहीं कर रहे हैं। इसे एक से अधिक लोगों को सामूहिक रूप से नमस्कार कह सकते हैं। प्रणाम में 'प्र'-उपसर्ग होने से यह विशिष्ट भाव का व्यंजक है। "प्रकर्षेण नमनम्"। विशेष रूप से गुरुजनों या देवता को प्रणाम किया जाता है। इसका एक भेद साष्टांग प्रणाम है, जो अब किया कम जाता है, पत्र में लिखने की प्रथा अधिक है। साष्टांग प्रणाम आठ अंगों को झुका कर भूमि पर एक दंड की भाँति लेटकर किया जाने वाला नमन है। वे अंग हैं-
दोर्भ्यां पद्भ्याञ्च जानुभ्यामुरसा शिरसा दृशा
मनसा वचसा चेति प्रणामोऽष्टाङ्ग ईरितः ॥
(दो पैर, दो जाँघें, छाती, सिर, मन और वाणी से किया जाने वाला नमन।)
शरीर से किए जाने वाले नमस्कार के छह प्रकार माने जा सकते हैं-
* केवल सिर झुकाना।
* केवल हाथ जोड़ना।
* सिर झुकाना और हाथ जोड़ना।
* हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना।
* हाथ जोड़ना, दोनों घुटने और सिर झुकाना।
* दंडवत प्रणाम जिसे ‘साष्टांग प्रणाम’ भी कहा जाता है।
नमस्ते शब्द और उसके साथ अभिवादन का भारतीय ढंग कोरोना संत्रास के कारण विश्वव्यापी हो गया। विश्व के अधिकांश देशों में इसका अर्थ और तात्पर्य समझा जाने लगा है और प्रयोग भी करते हैं। फैशन के तौर पर भी कई जगह नमस्ते बोलने का रिवाज है। यद्यपि पश्चिम में "नमस्ते" भावमुद्रा सहित अर्थात् दोनों हथेलियाँ मिलाकर सिर को थोड़ा झुकाकर बोला जाता है, लेकिन भारत में ये माना जाता है कि भावमुद्रा का अर्थ नमस्ते ही है और इसलिए इस शब्द का बोलना इतना आवश्यक नहीं माना जाता है।
नमस्कार संज्ञा अर्थात् नमस्कार करने का भाव है। हम किसी को नमस्कार करते हैं तो नमस्कार का भाव ही प्रकट कर रहे होते हैं, इसलिए व्यवहार में दोनों समान हैं।
फिर भी सामाजिक चलन का भी महत्व होता है। कुछ लोगों में नमस्कार कह कर ही प्रणाम किया जाता है, वे नमस्ते को रूखा मानते हैं और वरीयता नहीं देते। दूसरे समाज में इसका उल्टा भी है। वे नमस्कार को अटपटा मानते हैं। इसी प्रकार कुछ राज्यों में नमस्ते या नमस्कार की अपेक्षा प्रणाम को अधिक महत्व दिया जाता है। प्रायः अपरिचितों के लिए नमस्ते का प्रयोग होता है पारिवारिक व्यवहार में और गुरुजनों के लिए प्रणाम का। चरण स्पर्श, पायलागी, पैरी पैणा जैसे कुछ अभिवादन धर्मगुरु, शिक्षक, माता - पिता के लिए हैं। चरण स्पर्श प्रायः गुरु के अतिरिक्त अपने ही परिवार के बुजुर्गों के किए जाते हैं, अन्य किसी व्यक्ति के नहीं।
केरल में यह नमस्ते ही नमस्कारम् बन जाता है तो कर्नाटक में नमस्कारा। तमिलनाडु में नमस्कारम् के अतिरिक्त एक द्रविड़ शब्द लोकप्रिय है: वणक्कम । आंध्र में नमस्कारमु कहा जाता है।
नेपाल के निवासी भी अभिवादन के लिए नमस्कार का प्रयोग करते हैं। श्रीलंका में "आयुबोवन" और थाईलैंड में "सबत्दी" अभिवादन के लिए कहा जाता है।
कुछ भाषाओं में एक ही शब्द या संकेत किसी का स्वागत करने के लिये और उस से विदा होने के लिये भी प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी में "गुड डे" (Gooday), अरबी में "अस-सलाम-आलेकुम" (السلام عليكم), इब्रानी में "शालोम" (שָׁלוֹם) और इतालवी में "च्याओ" (Ciao)। सिर-झुकाना और हाथ मिलाना भी मिलने व विदा करने दोनों के लिये प्रयुक्त होता है।
बहुत सुंदर narrative हैं ।
जवाब देंहटाएंहमारे बंगाल में सभी बड़ों को विशेष अवसर पर चरण स्पर्श का अलिखित नियम है । और यदि गुरु या माता पिता है तो उनका चरण स्पर्श तो करना अनिवार्य हो जाता । हमारे माता पिता को हिचकिचाहट होती थी पर हम बहने छू ही लेते थे ।
मनु संहिता के अनुसार बाएं हाथ से दाहिना पैर और दाहिने हाथ से बाएं पैर को छूने का रिवाज़ है ।
हम लोग ऐसा ही करते है ।
ब्लॉग पर पधारने और सराहने के लिए धन्यवाद। ब्लॉग अभी अधूरा और बेतरतीब है। कच्चे ड्राफ़्ट को ही अपलोड कर दिया था।
जवाब देंहटाएंप्रणाम वाला पक्ष रह गया है। आदाब, सलाम भी सूची में हैं।
बंगाल की और कुछ विशेषताएँ साझा कीजिए।
सादर
मै ब्लॉग savy नहीं हूं इसलिए आने की इच्छा होने पर भी आ नहीं पाती थी । कभी कभार जब खुल जाता है तो पोस्ट save करके रख देती हूं बाद में इत्मीनान से पड़ती हूं । उत्तर देने के समय फिर नहीं खोल पाती हूं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन आपकी पोस्ट बहुत सूचना प्रदान करती है इसलिए कसमसाती हूं खोलने के लिए ।
जी हां अभी अधूरा है ।
पढ़ने की उत्सुकता बनी है ।
हिंदीभाषी लोगो के अलावा बंगालियों में नमस्ते का चलन नहीं है । समान उम्र वालों को नमस्कार ही करते है । फोन में प्रणाम ही चलता है बड़ों के लिए । सामने मिलने पर चरणस्पर्श । हमारे यूपी में लड़कियां पैर नहीं छूती है पर बहुएं छूती है, पर बंगाल में लड़कियां भी समान रूप से पैर छूती है । धन्यवाद ।
आपके द्वारा दी गयी हर जानकारी अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक होती है।
जवाब देंहटाएंनमो नमः। बहुशोभनम् महाभागः।
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