किन्हीं सज्जन की एक फ़ेसबुक पोस्ट पर ट्विटर और फ़ेसबुक पर बड़ी रोचक चर्चा हुई जिसमें कहा गया है कि "धोबी का कुत्ता घर का न घाट का" कहावत में कुत्ता नहीं, "कुतका" का प्रयोग सही है।
यह लोकोक्ति सदियों से ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, बुंदेली, नेपाली, कुमाउँनी सहित अनेक अन्य भाषाओं में बहुत पहले से उपस्थित है। 15-वीं सदी के संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली में इसका प्रयोग मिलता है।
इसका आशय ऐसे व्यक्ति से है जो एक ठिकाने पर जमकर कोई काम नहीं करता । बेकार उधर फिरनेवाला । निकम्मा आदमी।
कहावत का कुत्ता घर का इसलिए नहीं कि आमतौर पर कुत्ते का काम होता है घर की रखवाली करना। जब घाट पर जाएगा, तो रखवाली कौन करेगा। घाट का इसलिए नहीं कि वहाँ उसके करने का कोई काम नहीं और आखिर वहाँ से भी धोबी के साथ लौट ही आएगा।
इस लोकोक्ति का एक छोटा रूप भी हिन्दी में चलता है - घर का न घाट का। अंग्रेजी में इसके समकक्ष कहावत है:
Whistling maids and crowning hen, are neither fit for gods, nor for men!
"कुतका" हिन्दी में एक बैटनुमा मोटा डंडा या सोंटा है जो कपड़े को धोने के दौरान पीटने के काम आता है। इसके और भी अर्थ हैं किंतु धोबी का खूँटा नहीं।
पंजाबी में कुतका को थापी या मोंगरी और कुमाउँनी में मुँगरा/मुङर भी कहा जाता है। सिख इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह लड़ाई के काम भी आता था और सुना है उन्हें आज भी धरोहर की भाँति सँभालकर रखा गया है।
ब्रज - बुंदेलखंडी में कुतका ठेंगे के लिए प्रयोग किया जाता है। "ये ले ठेंगा मेरा'' के लिए "कुतका लै लै मेओ" कहा जाता है।
कुमाउँनी में "कुतक्यूण" का मूल अर्थ गुदगुदी करना tickle (कुत्क्याई, कुतकुति) है। इसका संबंध भी ब्रज/बुंदेली के कुतका से लगता है, क्योंकि कुतकुती अँगूठे और अंगुलियों से कोमल अंगों में दी जाती है। लाक्षणिक प्रयोग (मुहावरा) के रूप में कुतक्यूण पिटाई करने के अर्थ में है, वैसे ही जैसे सिंकाई करना, पूजा करना। ठेंगा (अँगूठा दिखाना) के लिए कुमाउँनी में "घुत्ता" है। यह भी कुतका (ठेंगा) से हो सकता है।
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