हिंदी में एक मुहावरा है "अपना उल्लू सीधा करना।" यहाँ उल्लू शब्द की संगति अस्पष्ट है, इसलिए मुहावरे की लाक्षणिकता का आधार भी नहीं बनता। लक्षणा का लक्षण है, "मुख्यार्थबाधे तद्योगे" अर्थात् जहाँ मुख्य अर्थ में बाधा उपस्थित हो तो उसके आधार पर मुख्य अर्थ से संबंधित अन्य अर्थ को लक्ष्य किया जाता है , वहाँ लक्षणा शब्द शक्ति होती है | अब यहाँ उल्लू का कोशीय अर्थ उस उल्लू नामक विशेष रात्रिचर से लें तो यह मुख्यार्थ में बाधक तो है, किंतु उसके आधार पर, उससे संकेतित अर्थ क्या होगा। क्या मुहावरे का यह यह "उल्लू" उल्लू नामक जीव ही है? ध्यान में रखना होगा कि उल्लू का लक्ष्यार्थ सामान्यतः बुद्धू या मूर्ख से लिया जाता है जबकि इस मुहावरे में अपना स्वार्थ सिद्ध करने की चालाकी छिपी हुई है।
किसी ने बताया कि खेत तक पहुँचने वाली छोटी नहर (नाली) को जहाँ से दूसरे खेत की ओर मोड़ा जाना है उस विभाजक पर एक काठ का उपकरण लगा दिया जाता है जिसे उल्लू कहते हैं। जब पानी को अपने खेत ओर मोड़ना हो तो उस काठ के उल्लू को दूसरी ओर सीधा कर देते हैं कि उधर उसका बहाव रुक जाए और पानी अपने खेत की ओर लौट आए। (इसे अब कहीं कोलाबा भी कहा जाता है।)
अब कोई दूसरे खेत में सिंचाई पूरी होने से पहले ही चुपके से उल्लू को अपनी ओर मोड़ ले तो कहा गया, उसने अपना उल्लू सीधा कर लिया। यदि यह सच है तो दो मुहावरे स्पष्ट हो जाते हैं - काठ का उल्लू (मूर्ख) और अपना उल्लू सीधा करना (स्वार्थ सिद्ध करना)।
शब्दकोशों में या अन्यत्र कहीं इसका विवेचन नहीं मिलता।
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