आजकल किसान शब्द राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बना हुआ है। हमें उस चर्चा से अधिक इस शब्द की व्युत्पत्ति और चलन पर सोचने का मन हुआ है कि यह बना कैसे और इसकी व्याप्ति क्या है। किसान शब्द का मूल खोजते हुए संस्कृत के √कृष् धातु की ओर ध्यान जाता है। कृष् का अर्थ है खींचना, चीरना, हल चलाना, खेती करना आदि। कर्षण, आकर्षण में भी यही कृष् है और इस आकर्षण के कारण ही कृष्ण कृष्ण कहलाते हैं। कृष् से अनेक अन्य शब्द बने हैं जिनमें एक है कृषक। कृषक अर्थात् हलवाहा, किसान, हल की फाल। किसान सीधे भी इसी कृष् धातु से जुड़ा है। कृष् से प्राकृत में एक शब्द बना है कृषाण और कृषाण से ही हिंदी में बन गया किसान। कृषक, कृषिकर्मी, कृषीबल किसान के अन्य नाम हैं। कृषाण, किसान दोनों का एक अन्य अर्थ आग भी है। तुलसी ने लंकादहन में कृसानु का प्रयोग किया है। पृथ्वीरासौ में "भूपति के सुनिकै वचन उर में उठी किसान।"
तो क्या आजकल इन किसानों के उर में भी उस अग्निवाची किसान की ज्वाला उठी है?
जंगली जीवन से सभ्यता की ओर बढ़ते हुए मनुष्य का शायद पहला व्यवसाय किसानी ही रहा हो। भारत में कृषि के भाषिक और पुरातात्विक प्रमाण कम से कम 9000 ई. पू. के हैं।सिंधु घाटी सभ्यता के मोअनजोदड़ो, लोथल आदि में कृषि और कृषि उत्पादों के प्रमाण मिले हैं। मेहरगढ़ के अवशेषों में बड़े-बड़े अन्न भंडार मिले हैं जो पुष्टि करते हैं कि उपमहाद्वीप के इस अंचल में किसानी खेती का काम बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है। ऋग्वेद में कहा गया है- "अक्षैर्मा दीव्य: कृषिमित्कृषस्व।" "शुनं सुफाला विकृषन्तु भूमिं शुनं #कीनाशा अभियन्तु वाहै:" (शुक्लयजुर्वेद १२.६९) यहाँ किसान को #कीनाश कहा गया है। "अन्नानांपतये नमः। क्षेत्राणां पतये नमः॥" ~यजुर्वेद।
अथर्ववेद आदि में अनेक मंत्र कृषि कर्म के बारे में मिलते हैं। कृषि से संबंधित उपकरणों उत्पादों का भी उल्लेख मिलता है।
आगे चलकर स्मृतियों में, पुराणों में कृषि के अनेक और विस्तृत उल्लेख हैं। श्रीकृष्ण के भाई तो हलधर किसान हैं। अनेक राजाओं को भी खेती-किसानी करते बताया गया है।वेन के पुत्र महाराज पृथु ने, जिसके नाम पर "पृथ्वी" है, धरती पर हल चलाकर उसे समतल किया था। राजा जनक को हल चलाते हुए सीता प्राप्त हुई थी। भोज के बारे में भी कहा जाता है कि वह वेश बदलकर हल चलाता था। लोक कथाओं में तो हल चलाने वाले राजाओं की अनेक कथाएँ अंचलों में प्रसिद्ध हैं। गुप्तकाल, चोल-काल में कृषि कर्म के अनेक उदाहरण मिलते हैं। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कृषि अधिकारियों के अधिकार, सिंचाई की व्यवस्था, विपणन के नियम आदि की चर्चा की है, पाराशर ने वर्षा मापने की विधि बताई है। वराहमिहिर ने उपरोपण अर्थात कलम लगाने की विधि का उल्लेख किया है।
दक्षिण में तमिल के संगम कालीन उल्लेखों में कृषि और कृषि उत्पादों की चर्चा है। तोलकाप्पियम् के अनुसार पाँच प्रकार के भौगोलिक विभाजन ( कुरुंजि, मुल्लै, मरुदम्, नेइदल, पालै) वस्तुतः पाँच प्रकार की भूमि और उसकी कृषि उत्पादकता के आधार पर किए गए हैं। पुरनानूर, अकनानूर, तिरुक्कुरल आदि में किसानों और किसानी पर बहुत सी बातें कही गई हैं। तात्पर्य यह है कि संपूर्ण भारतवर्ष में किसान का काम बहुत प्राचीन व्यवसाय रहा है।
अब चलें आंदोलन की ओर अर्थात् आंदोलन शब्द की ओर। संस्कृत में एक धातु है √दुल् जिसका अर्थ है हिलना-डुलना। इसी से हिंदी में दोलन, दोला, डोला बने हैं और शायद अंग्रेजी का पेंडुलम शब्द भी बना हो। दुल् धातु में आ उपसर्ग लगने से आंदोलन बनता है जिसका अर्थ है बड़ी हलचल, अशांति, उथल-पुथल और संगठित तथा नियोजित सामूहिक संघर्ष भी। यों संघर्ष और आंदोलन में बहुत अंतर है। हम दैनिक जीवन में, व्यवसाय मेभी अनेक संघर्ष करते हैं किंतु उन्हें आंदोलन नहीं कह सकते। आंदोलन वह है जो किसी विशेष उद्देश्य से, प्रायः स्वत:स्फूर्त हो जैसे स्वतंत्रता आंदोलन, चिपको आंदोलन, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन इत्यादि। आंदोलन असंतोष व्यक्त करने के लिए, परिवर्तन या बदलाव के लिए, व्यवस्था में सुधार के लिए, किसी बात के सामूहिक विरोध के लिए हो सकता है किंतु आवश्यक नहीं है कि वह विद्रोह लिए हुए हो। किसी विशेष लक्ष्य के लिए किए जा रहे कार्यों की पूरी शृंखला आंदोलन के अंतर्गत आ सकती है।
किसान आंदोलन के संदर्भ में एक और शब्द प्रासंगिक है खेती। यह आंदोलन भी इसी खेती को लेकर है, इसलिए इसकी चर्चा भी लगे हाथ कर ली जाए। खेती शब्द का सीधा जुड़ाव खेत से है जो संस्कृत के क्षेत्र शब्द का तद्भव है। क्षेत्र शब्द के अनेक अर्थ है- मिट्टी, अधिकार क्षेत्र, इलाका, फार्म लैंड इत्यादि। इससे बने खेत शब्द के चार प्रमुख अर्थ हैं- कृषि कर्म के काम में लाई जाने वाली भूमि मुख्य रूप से खेत कही जाती है। खेतों में फसल बोई-बटोरी जाती है। खेत का दूसरा अर्थ फसल भी है जैसे: हमें खेत काटने हैं। आवारा पशु खेत खा गए। चिड़िया चुग गई खेत। कहीं-कहीं नस्ल या वंश के लिए भी खेत शब्द का प्रयोग होता है। जैसे: अच्छे खेत का घोड़ा, अच्छे खेत का साँड।
खेत शब्द का संबंध युद्ध भूमि या रणभूमि से भी है। जैसे जब हम कहते हैं: वीर सैनिक बहादुरी से लड़े और कुछ घायल हो गए तथा कुछ "खेत रहे"। हम "खेत रहे" सैनिकों को शहीद भी कहते हैं।
खेत से ही बना है खेती जो कृषि का पर्याय है। खेत में पैदा की जाने वाली सभी वस्तुओं के लिए खेती शब्द प्रयुक्त होता है। खेत में अनाज, दलहन, तिलहन, गन्ना, फल, फूल, सब्जियाँ यहाँ तक कि पेड़, घास, ओषधियाँ आदि यत्नपूर्वक उगाई जाने वाली सभी वस्तुएँ खेती के अंतर्गत आ सकती हैं किंतु मुख्यतः अनाज सब्जियाँ आदि प्रमुख उत्पादों को ही गिना जाता है।
खेत शब्द का संबंध युद्ध भूमि या रणभूमि से भी है। जैसे जब हम कहते हैं: वीर सैनिक बहादुरी से लड़े और कुछ घायल हो गए तथा कुछ "खेत रहे"। हम "खेत रहे" सैनिकों को शहीद भी कहते हैं।
खेत से ही बना है खेती जो कृषि का पर्याय है। खेत में पैदा की जाने वाली सभी वस्तुओं के लिए खेती शब्द प्रयुक्त होता है। खेत में अनाज, दलहन, तिलहन, गन्ना, फल, फूल, सब्जियाँ यहाँ तक कि पेड़, घास, ओषधियाँ आदि यत्नपूर्वक उगाई जाने वाली सभी वस्तुएँ खेती के अंतर्गत आ सकती हैं किंतु मुख्यतः अनाज सब्जियाँ आदि प्रमुख उत्पादों को ही गिना जाता है।
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