दूध और दुहिता Daughter
महर्षि दयानन्द ने यास्क के निरुक्त को आधार मान कर दुहिता शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है: " दूरे हिता इति दुहिता अर्थात् दूर देश (पतिगृह) में ही जिसका हित सम्भव है!
इस व्युत्पत्ति का कोई भाषिक आधार नहीं है। यह आनुमानिक व्युत्पत्ति है और इसके मूल में तत्कालीन समाज की पुत्रियों के प्रति भावना ध्वनित होती है ।
एक अन्य व्युत्पत्ति प्राप्त होती है:
या दोग्धि, विवाहादिकाले धनादिकमाकृष्य गृह्णातीति ।
आर्षकाले कन्यासु एव गोदोहनभारस्थितेस्तथात्वम् ।
दुह + तृच् - दुहितृ। तृच् उणादि प्रत्ययः।
अर्थात् जो पिता के धन आदि को दुहकर ले जाती है।
यह भी आनुमानिक है और उस युग परंपरा की सूचक है जब कृषक, आभीर आर्य गोपालक थे, गोधन संपन्नता का द्योतक था और लड़कियाँ गोदोहन करती थीं। अकारण नहीं है कि वैदिक संस्कृत में दुहितृ शब्द का अर्थ दुहनेवाली है। प्रतीकार्थ बन गया जो पिता के धन का दोहन करके ले जाती है वह दुहिता।
उपर्युक्त व्युत्पत्तियों के अतिरिक्त दुहिता शब्द की विकास यात्रा के सूत्रों को ढूँढ़ा जाए तो वे सम्पूर्ण भारोपीय क्षेत्र में बिखरे हुए मिलते हैं हैं और सहज उपलब्ध है। वस्तुतः माता, पिता, भ्राता, बहन, पुत्र (सूनु), दुहिता आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जो इस बृहत्तम भाषा परिवार में पुरा-प्राचीनकाल से आज तक अविच्छिन्न रूप से चले आए हैं। इस जैसे अनेक शब्दों की व्यापक रोचक उपस्थिति सिद्ध करती है कि भाषाएँ परस्पर कितनी मिली हुई हैं।
पुरा-भारोपीय - PIE *dʰugh₂tḗr दुख़्तर, (संस्कृत दुहितृ से)
अवेस्ता में दुगदार ( dugadār),
प्राचीन ग्रीक में दुगतेर (thugátēr),
प्राचीन आर्मीनियाई में दुस्त्र,
प्राचीन अंग्रेजी: दोहतर,
गौथिक: डॉह्टर,
अंग्रेजी: डॉटर।
पुरा भारत आर्य PIA *dʰúźʰitā दुझिता, संस्कृत- दुहितृ से प्राकृतों में:
दरद प्राकृत - दुहिता,
गांधार प्राकृत - धीडा,
महाराष्ट्री प्राकृत- धुआ,
मागधी प्राकृत - धुइया,
पैशाची प्राकृत - धीआ,
शौरसेनी प्राकृत - धीडा,
पाली - धीतार।
प्राकृतों से व्युत्पन्न होकर आधुनिक भारतीय भाषाओं (MIL) में:
बांग्ला - जी,
असमी - ज़ीया,
हिंदी - धीया, धीय,
पंजाबी - धी,
ओडिया - जीया,
कुमाउँनी - धी, धीय्,
कोंकणी - धूव,
कच्छी - धी।
हरयाणवी, कौरवी, खड़ीबोली- धी, धीय्, धीया, धींगड़ी, जींगड़ी, झींगड़ी, छींगड़ी, दींगड़ी, डींगरी।
संस्कृत में अन्य कुछ शब्द भी दुह्/ दुहितृ से बने हैं।
दौहित्री (नतिनी),
दौहित्रायण (नाती का बेटा),
दौहित्रायणी (नाती की पुत्री) आदि।
हिंदी में दुहना क्रिया इसी दुह् से व्युत्पन्न है। कुछ अन्य शब्द हैं - दोहन, दुग्ध > दूध, दोग्धा (दुहने वाला)। पंजाबी और हिंदी में धी शब्द भी दुहितृ से बना है। इसी से निष्पन्न होते हैं धेवता, धेवती।
दोग्धा के प्रसंग में याद आया कि गीता की महिमा में कहा गया है:
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
“समस्त उपनिषद गायों के समान हैं, उन्हें दुहने वाला ग्वाला श्रीकृष्ण है। उस दुग्ध का प्रथम आस्वादन करने वाला बछड़ा अर्जुन है और बछड़े से बचे गीतामृत का पान करने वाले शुद्ध बुद्धि वाले जन हैं।”
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