शब्द विवेक: इष्ट-मित्र
इष्ट-मित्र की शब्द रचना बड़ी रोचक है। द्वंद्व समास मानें तो यह होगा इष्ट और मित्र। विशेषण मानने पर होगा इष्ट हैं जो मित्र। अब प्रश्न यही है कि इष्ट क्या है? भ्वादि गण की √इष् धातु से बनता है इष्ट अर्थात् चाहा हुआ, प्रिय, पूज्य, अनुकूल, आदरणीय, सम्मानित।
अब रहा मित्र। मित्र एक वैदिक देवता का नाम है। सूर्य को भी मित्र कहा जाता है और अनेक ऋचाओं में यह शब्द प्रयुक्त होता है।आज हिंदी में और अन्य आर्यभाषाओं में मित्र विद्यमान है। (मित्र को संस्कृत में नपुंसक लिंग कहा गया है!)
वेद सुझाते हैं कि हम सबको परस्पर "मित्र की दृष्टि" से देखना चाहिए। मित्र (सूर्य) सबको समान दृष्टि से देखता है।
मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् ।
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥
(यजुर्वेद ३६/१८)
मित्र के बारे में भर्तृहरि कहते हैं:
"तन्मित्रम् आपदि सुखे च समक्रियम्।" यत् (मित्र वह है जो आपदा और सुख के समय हमारे साथ होता है) और ऐसे मित्र सौभाग्य से प्राप्त होते हैं।
वस्तुतः मित्रता या दोस्ती दो या अधिक व्यक्तियों के बीच पारस्परिक लगाव का संबंध है। मैत्री संबंध में दो दिल एक-दूसरे के प्रति सच्ची आत्मीयता से भरे होते हैं। यह अत्यधिक सशक्त अंतर्वैयक्तिक बंधन है।
मित्रता की अवधारणा, स्वरूप और उसके सामाजिक-मनोवैज्ञानिक पक्षों पर अन्य शास्त्रों जैसे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नृतत्वशास्त्र, दर्शन आदि में भी अध्ययन किया जाता है। विश्व खुशहाली डाटाबेस के अध्ययनों में पाया गया है कि करीबी संबंध रखने वाले मित्र अधिक प्रसन्न रहते हैं।
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