गिलास :
आम उपयोग का गिलास शब्द अंग्रेजी के ग्लास से विकसित हुआ है, उसका तद्भव। अंग्रेज़ी में ' ग्लास ' का मूल अर्थ तो अल्प पारदर्शी, भंगुर पदार्थ काँच है किंतु यह अन्य अर्थों में भी प्रचलित है जैसे: चश्मा, शीशा (दर्पण), काँच के बने बर्तन आदि अनेक अर्थ हैं। काँच के बने गिलास (टम्बलर) के लिए भी अंग्रेजी में ग्लास प्रयुक्त होता है। लेकिन हिन्दी में इसका अर्थविस्तार हो गया - गिलास केवल काँच से बने जलपात्र को ही नहीं कहते ; काँसा , चाँदी , पीतल, काँच, स्टेनलेस स्टील आदि विविध धातुओं, मिश्र धातुओं से बने जलपात्रों के लिए भी गिलास ही प्रयुक्त होने लगा।
लोक में परंपरागत रूप से गिलास के पूर्व लोटा, कुल्हड़, कटोरा/कटोरी ही पानी पीने के काम आते होंगे। लोटे का ही एक भेद गड़ुवा भी मिलता है, प्रायः कुछ अँचलों में। इसमें लोटे से एक टोंटी सी जुड़ी होती है और पूजा के सहायक पात्रों में गणना होती है। इस्लाम में एक धार्मिक अनुष्ठान 'वुज़ू' के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे वुज़ू का लोटा भी कहते हैं। छोटा गड़ुवा शिशुओं को दूध पिलाने के काम भी आता था।
यहाँ यह उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा कि मिट्टी के पानपात्र कुल्हड़ शब्द को द्रविड़ मूल का माना जाता है और कम से कम 5000 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता में भी इसका प्रयोग होने के प्रमाण बताए जाते हैं।
संस्कृत में जलपात्र, पानपात्र, पानभाजन, पानभाण्ड और चषक शब्द रहे होंगे पर समकालीन भाषाओं में ये सामान्य व्यवहार में नहीं रहे और लुप्त हो गए। फ़ारसी/उर्दू से प्याला शब्द आया। उसके साथ कुछ भिन्न सांस्कृतिक संकल्पना जुड़ी होने के कारण वह गिलास के समकक्ष नहीं हो सकता था, नहीं हुआ। सो गिलास व्यापक हो गया; हिंदी में ही नहीं, प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में।
तेलुगु में भी 'ग्लासु ' शब्द जलपात्र के लिए ही प्रयुक्त होता है। चाहे वह काँच का हो या अन्य किसी धातु का। जैसे -डिग्गासु (चांदी का गिलास), स्टील ग्लासु (स्टील का गिलास)। मराठी में ग्लास, बांग्ला में গ্লাস, कन्नड़ में ಗ್ಲಾಸ್, ಲೋಟ/ ಲೋಟಾ, गुजराती में ગ્લાસ, ओडिया में ଗ୍ଲାସ, मलयालम में ഗ്ലാസ്, पंजाबी में ਗਲਾਸ; इसी प्रकार बोलियों में भी। हरयाणा, राजस्थान के कुछ अंचलों में, विशेषकर पुरानी पीढ़ी के शब्द भंडार में गिलास के लिए एक देसी शब्द "बखौरा" है। इसकी व्युत्पत्ति फ़ारसी शब्द आब-ख़ोर > आबखोरा > बखौरा से है। इसका हिंदी अर्थ है: पानी पीने वाला, पानी पीने की जगह, प्याऊ, प्यासा और गिलास भी।
अब कुछ बोलियों में बचा रह गया है, गिलास ने इस शब्द को ही पी-पचा लिया समझें। आदि स्वर लोप हो जाने से बखौरा रह गया।
टोंटी सहित लोटा पूजा पाठ के काम आता था। टोंटी वाला दूध पिलाने वाले पात्र को मिथिला मे सोवरनी बोलते थे। यह सब अब चलन मे नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंजी हाँ, मेरी पीढ़ी को इसी छोटे गड़ुए से दूध पिलाया जाता था। बाद में इसकी टोंटी में रबर की निपल पहनाकर उपयोगी बना दिया गया।
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