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शब्द स्तर पर निषेध और अभाव

निषेध के लिए न या न ध्वनि वाले शब्द विश्व की अनेक भाषाओं में हैं और यह शायद मानव की सहज प्रतिक्रिया का प्रतिबिंब है।
वह या तो शरीर भाषा से असहमति निषेध व्यक्त करता है या न ध्वनि वाले किसी शब्द से।
शब्द स्तर पर निषेध या अभाव जताने के लिए हिंदी में अपनी व्यवस्थाएँ हैं जो प्रायः कुछ उपसर्गों से व्यक्त की जाती हैं। कुछ उपसर्ग हिंदी के अपने हैं, कुछ संस्कृत परंपरा से प्राप्त हैं और कुछ अरबी या फ़ारसी के।
i) व्यंजन से प्रारंभ होने वाले शब्दों से पूर्व 'अ-' उपसर्ग; जैसे : अन्याय, असुरक्षा, अभाव, असीम, अगाध, अखंड, अकाट्य। अपढ़, अबूझ, अमोल।
ii) स्वरों से प्रारंभ होने वाले शब्दों से पूर्व 'अन्-' जैसे: अनधिकार, अनर्थ, अनुपम, अनावश्यक, अनंत, अनादि।
iii) कभी- कभी निषेधार्थक अव्यय 'न' ही बना रहता है, जैसे: नगण्य, नचिर, नपुंसक।
iv) हिंदी का 'अन' उपसर्ग संस्कृत से आए अन् से भिन्न है। यह तत्सम शब्दों से इतर तद्भव या देशज शब्दों से जुड़ता है। जैसे: अनबन, अनपढ़, अनजान, अनहोनी, अनमोल, अनचाहा, अनमना, अनदेखा, अनसुना, अनकहा।
v) अभाव या रहितता के लिए नि:, (जो संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार चार रूपों में दिखाई पड़ता है- निर्/निश्/निष्/नी)। यह केवल तत्सम शब्दों के साथ जुड़ता है; जैसे: निर्विरोध, निरापद, निरादर, निराधार। 
निश्शुल्क, निश्चेतन, निश्चल, निश्चिंत, निश्छल।
निष्पक्ष, निष्कंटक, निष्कंप, निष्कपट, निष्पक्ष, निष्काम।
नीरोग, नीरव, नीरस
vi) अरबी/ फ़ारसी से आगत शब्दों से पूर्व 
~'ना-' नालायक, नासाज़, नाफ़रमानी, नाकाबिल।
~'बे-' बेखौफ, बेअक्ल, बेवजह, बेकार, बेनाम, बेलाग, बेदाग 
~तद्भव या देशज शब्दों के साथ भी 'बे-' जुड़ता है, जैसे: बेजोड़, बेकाम, बेढब, बेबस, बेखटक, बेसिरपैर।

आदर के दो विपरीतार्थक प्रचलित हैं- 
निरादर और अनादर, किंतु दोनों के प्रयोग में थोड़ा-सा अंतर भी है। अनादर (अन्+आदर) में अन् उपसर्ग आदर का सर्वथा अभाव सूचित करता है। इतना ही नहीं, इसमें असम्मानित करने, बेइज़्ज़त करने का भाव भी निहित है।
निरादर (निर्+आदर) का अर्थ होगा आदर के बिना, आदर रहित। किसी का निरादर करने का अर्थ उसे असम्मानित करना नहीं है। निरादर करते हुए आप आदर तो नहीं कर रहे हैं लेकिन अपमान भी नहीं कर रहे हैं।

आवश्यक नहीं कि अनादर/निरादर का प्रयोग करने में हम इतने सावधान रहते हों।

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