कहा जाता रहा है, और सच भी है कि हिंदी में लिंग निर्धारण कठिन है। नियम अनेक हैं और उप नियम, विकल्प या अपवाद भी। फिर भी कुछ बातें स्थिर हो रही हैं।
नियम है कि पदवाची विशेषण सर्वत्र पुल्लिंग होते हैं। जैसे राष्ट्रपति, मंत्री, विधायक, अध्यक्ष, सभापति, प्रधान, सरपंच, सेक्रेटरी आदि।
अपवाद यहांँ भी दिखाई देते हैं। अध्यापिका, डाक्टरनी, प्रधानाचार्या आदि का प्रयोग धड़ल्ले से होता है। बालकों से इस प्रकार के अभ्यास भी कराए जाते हैं।
मुझे लगता है इसके दो कारण हैं। कुछ तत्सम (जैसे-के-तैसे) ले लिए गए हैं- आचार्य/आचार्या, अध्यापक/अध्यापिका। इसलिए ऐसे कुछ शब्दों के दोनों रूप चल रहे हैं।
डॉक्टरनी की स्थिति भिन्न है। आगत शब्दों में व्याकरणिक नियम हिंदी के ही लागू होंगे। सो स्त्री प्रत्यय '-नी' जुड़ने से थानेदार > थानेदारनी, डाक्टर > डाक्टरनी।
यहांँ भी ध्यान रखना होगा कि ये पत्नी भाव से स्त्रीलिंग हैं, पद के नहीं। पद पर तो महिला भी थानेदार या डॉक्टर ही कहलाएगी।
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