दो जून की रोटी ...
Two square meals a day.
आज दो जून है। 'दो जून की रोटी के लिए आदमी भागा फिरता है।' यहाँ 'जून' किस भाषा से सम्बन्धित है, यह जानने का विषय है। इसका मूल कहाँ है और इसके अतिरिक्त किस रूप में इसका प्रयोग होता है?
वस्तुतः यह जून June नहीं, हिंदी का शब्द है। "शब्दसागर" संस्कृत इसे धुवन शब्द से विकसित (तद्भव) मानता है।
अन्य कोश उल्लेख नहीं करते, सो अज्ञात व्युत्पत्तिक (देशज) भी हो सकता है। कुछ अवधी का मानते हैं, पर हिंदी, उर्दू, के साथ साथ हिंदी की अन्य अनेक बोलियों में भी बहुत प्रयुक्त हुआ है। यह "जीमन/जीमना" (भोजन करना) का लाक्षणिक प्रयोग भी हो सकता है, दो वक्त ही 'जीमते' हैं।
तर्कसंगत व्युत्पत्ति यह लगती है कि हिंदी में जून प्राकृत जुण्ण, पाली जुन्न से हो, जिसका संबंध संस्कृत जूर्ण (>जून पुराना) से है।
"का छति लाभ जून धनु तोरे।
देखा राम नयन के भोरे ॥
मारवाड़ी में जून/जूण दो अर्थों में प्रयुक्त होता है-
१. दो जूण री रोटी - दो वक्त का खाना
२. मिनख जूण। चौरासी लख जूण - मनुष्य योनि/ चौरासी लाख योनियाँ (८४ लाख प्रकार के जीवों में जन्म)।
अवधी में जून बेला, समय के लिए प्रयुक्त होता है।
ई जून होइ गऽ अउर अबइ सपरे नाहीं। (इतना समय हो गया पर काम अभी निपट नहीं पाया।)
कुमाउँनी, गढ़वाली का जून, जोन इस दो जून की रोटी से भिन्न है। इसकी व्युत्पत्ति संस्कृत ज्योत्स्ना (चाँदनी)> प्राकृत जोन्हा से है। हिंदी की कुछ बोलियों में इससे जुन्हाई, जुन्हरी शब्द बने हैं और कुमाउँनी गढ़वाली में जुन्याली, जोन्याल।
संदर्भ चित्र क्रमशः
हिंदी शब्द सागर,
बृहत हिंदी शब्द कोश (कालिका प्रसाद),
शिक्षार्थी कोश (वी रा जगन्नाथन)
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