फँसना (क्रि.अक) से फाँसना (क्रि.सक) नहीं, फाँसना से फँसना बनी है। क्योंकि मूल शब्द है फाँस [सं. पाश, प्रा. फाँस], अर्थ है बंधन, फंदा। नाग पाश या वरुण पाश को कहानियों में नाग फाँस, वरुण फाँस ही कहा जाता है।
इसी फाँस से बना है फाँसी, जान से मारने के लिए बनाया गया फंदा।
फँसना रस्सी के फंदे में फँसना ही नहीं है, किसी की चाल में आ जाना, धोखा खा जाना भी इसका लाक्षणिक अर्थ है। हम ट्रैफिक में फँसते हैं, बातों में फस जाते हैं और आजकल तो कदम-कदम पर अपराधियों की चालबाज़ियों में फँसने का खतरा भी रहता है।
दूसरी चुभने वाली फाँस (काँटा, नुकीली चीज) संस्कृत पनस से है। पनस कटहल को भी कहा जाता है। कटहल बना है कंटकफल से! कंटकफल> काँटाहल > काँटाल> कटहल।
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