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जी की बात है जी



जब मुग़ल वंश ही उजड़ने के कगार पर हो तब बहादुर शाह ज़फ़र का "जी" उजड़े दयार में क्या लगता। ईमानदारी से क़बूल कर दिया, लेकिन कुछ का तो लहलहाते चमन या भरी पूरी बस्ती में भी नहीं लगता। कुछ हैं कि हर गली मोहल्ले में अपना दिल ही बाँटते फिरते हैं। कहीं टूटा तो कहीं और जोड़ लेते हैं।
आज यही "जी" मेरे जी का भी जंजाल बना हुआ है। 

सुना तो यह था कि यह "जी" बड़ों और सम्माननीयों के साथ लगाया जाता है पर उस दिन भ्रमित हो गए जब देखा कोई माँ अपने बेटे को बुलाती हुई कह रही थी, "बेटा जी, मास्टर आ गया है। खेलना छोड़ो, घर आओ।" बेटा जी अच्छा कहकर लौट तो आया पर उसका जी खेल में ही रहा और मास्टर जी कहते रहे, "जी लगाकर पढ़ा करो।"

बहरहाल परंपरा है कि कुछ बड़े नामों, रिश्तों या पदवियों के साथ जी लगाना शिष्टता की माँग है। जैसे राम जी, दादी जी, मंत्री जी ... इसी क्रम में गांधी, नेहरू के साथ लगाने में चूक भी जाएँ पर किसी नेता के साथ लगाना आपकी विवशता है। लगाएँगे कैसे नहीं जी! ज़रूरी नहीं कि हर बड़े के साथ जी लगाया जाए, जी लगाने लायक होगा तभी तो। एकबार एक बड़े नेता जी ने दाऊद को दाऊद जी कह दिया था (शायद उसकी उम्र का खयाल किया हो) तो लोग भड़क गए थे। कभी कभी यों भी होता है कि "जी" किसी के नाम का अभिन्न हिस्सा ही होता है। तब आदर वाला जी लगाएं या नहीं। श्री जी के साथ एक जी और जोड़ दें तो उन्हें लोग श्री जीजी न समझने लगें। जीजी के साथ एक जी और लग सकता है जीजीजी! इसे कोई जी का अपव्यय नहीं कहेगा। हाँ, जीजी जी का जी जिन महाशय पर टिका होता है उसके लिए जीजी जी के खाते से एक जी काम कर दिया जाता है...... जीजा जी।

लगे हाथ देख लिया जाए कि "जी" के लिए भाषा/व्याकरण व्यवस्था क्या कहती है। जी को √जिव्, √जित् या  या श्री से व्युत्पन्न माना जाता है। कििंिंतु√यूज् + क्त = युक्त> युत से जुत > जू अधिक सटीक लगता है क्योंकि आज भी राजस्थानी, ब्रज कुमाउँनी आदि में ज्यू, जू का प्रयोग होता है। जी का प्रयोग प्रायः अव्यय के रूप में होता है। अव्यय यानी ऐसा पद जिसमें लिंग-वचन से कोई अंतर नहीं पड़ता। अव्यय के रूप में इसकी विविध भूमिका पर एक नज़र डालें।
* नाम या पद के साथ आदर सूचक... गोपाल जी, भाभी जी, लाला जी, चौधरी जी, राष्ट्र्पति जी
* प्रश्न सूचक ... जी? मैं  समझा नहीं!
* आश्वस्ति सूचक ... काम हो जाएगा जी!
*सहमति सूचक ... आ सकता हूँ? जी, आइए!
* पूरक (संबोध्य व्यक्ति का स्थानापन्न) ... जी आप आएंगे क्या?
* आपूरक (प्रायः कोई बात प्रारंभ करने से पहले सोचने की सुविधा) ... जी असल में बात क्या है कि....
* दूसरे की बात में केवल हुंकारा भरने के लिए कि आप उसे सुन रहे हैं...   जी ... जी .. जी...
* स्वीकार या अस्वीकार भाव को अधिक दृढ़ करने के लिए हाँ या नहीं के जोड़े के साथ ... जी हाँ, जी नहीं 
* "गुरु" के साथ शिक्षक के अर्थ में आवश्यक गुरु जी! किंतु दादागिरी वाले गुरु के लिए वर्जित
* महोदय जी, माननीय जी भी ठीक प्रयोग नहीं हैं।

संज्ञा के रूप में भी जी के पाँच प्रकार के प्रयोग मिलते हैं:
* जीवन, जीव
* मन, चित्त, विशेष मनस्थिति (माइंड)
* हृदय, दिल (हार्ट)
* प्राण, जीवनी शक्ति
* तबीयत, स्वभाव, मिजाज़, प्रकृति (डिस्पोज़िशन)
कविताओं, फ़िल्मी गीतों में जी को जिया, जियरा बना दिया जाता है और शिकायत भी रहती है , "जियरा धक धक करे!" अरे भाई, ज़िंदा है तो धक धक तो करेगा ही।


एक क्रिया रूप भी मिलता है, अनादर वाले आदेशमें केवल तू के साथ , तू जी (जीवित रह)

भला कौन नहीं जानता कि जी-हजूरी करने का अपना महत्व है। जो जी-जी नहीं कर पाते वेअपने काम में जी जान लगा देने पर भी जी चाहा फल नहीं पाते और अपना जी छोटा कर बैठते हैं। उनके लिए मेरा परामर्श यही है कि जी न जलाएँ, जी कड़ा करके फिर से जी जी करने में जुट जाएं। जी खोलकर अगले का जी खुश करें। आपको जी भर मिलेगा। किसी का जी जले तो जले, आपका जी न टले। जी भटके, भरमाए तो भी आप जी थामकर बैठिए। तभी अपने जी के प्यारे के जी में जगह बना पाएँगे। हिसाब-किताब वाली दुनिया में जी कहीं लगाना ही पड़ता है! यों ही जी ललचाने से नहीं चलता। जी करे तो ये बातें जी में बिठाएँ, वरना जो जी में आए, सो करें। पड़ोस में पुराना गाना बज रहा है .. जियरा मचल-मचल जाए। मचले चाहे घबराए, अपना जी संभालिए। बहरहाल हमारे जी का बोझ कुछ तो हलका हुआ।


#जनसत्ता में प्रकाशित

टिप्पणियाँ

  1. "पड़ोस में पुराना गाना बज रहा है .. जियरा मचल-मचल जाए। मचले चाहे घबराए, अपना जी संभालिए। बहरहाल हमारे जी का बोझ कुछ तो हलका हुआ"। यहाँ तो मज़ा आ गया सर 😂😂

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  2. समृद्ध करने वाला लेख, अभिनंदन आदरणीय पंत जी

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