वहाँ क्यों खड़े हो भाई
शब्दों के अर्थ,
वाक्यों के आशय
वहाँ कहाँ तलाश रहे हो ?
ये बड़बोले शब्द
तो बड़े आबदार,
बड़े लुभावने लगते हैं
बिछ जाते हैं रास्ते में फूलों-से
बिखर जाते हैं चारों ओर गंध-से
और अगले ही क्षण चुभने लगते हैं ये फूल
फैलने लगती है इनकी दुर्गंध
उतर जाता है इनका पानी |
ये शब्द
कभी फ़िकरों में बदल जाते हैं
कभी फ़िरकों में
कभी जाति-धर्म या भाषा की झोली में बटोरकर
ये शब्द
कभी फ़िकरों में बदल जाते हैं
कभी फ़िरकों में
कभी जाति-धर्म या भाषा की झोली में बटोरकर
उछाले जाते हैं गुलेल से
तीखे पत्थर की तरह
लहूलुहान कर देते हैं दिलों को
ठुक जाते हैं मेखों की तरह सलीब पर
ये नुकीले शब्द
तार-तार कर देते हैं तन-वसन |
कोई बताए
इनसे कैसे रचेंगे शील के वाक्य
कैसे लिखी जा सकेगी
निर्माण की इबारत
सृजन के स्वप्न की सिहरन
प्रलय के मेघ की गरज...!
ओस की चमक हो
या कली की लाज
कैसे बचा पाएँगे ये शब्द !
वहाँ क्यों खड़े हो भाई ? बटोर लो
इन्हें वापिस दो इनके अर्थ !
लौटा दो इनकी शक्ति
बचालो इन्हें ‘अनर्थक’ होने से
क्षमताओं के वेद,
उपलब्धियों के पुराण
इन्हीं से लिखे जाने हैं
इतने पराये तो नहीं हैं ये शब्द !
.
.
#सुरेश पंत
तीखे पत्थर की तरह
लहूलुहान कर देते हैं दिलों को
ठुक जाते हैं मेखों की तरह सलीब पर
ये नुकीले शब्द
तार-तार कर देते हैं तन-वसन |
कोई बताए
इनसे कैसे रचेंगे शील के वाक्य
कैसे लिखी जा सकेगी
निर्माण की इबारत
सृजन के स्वप्न की सिहरन
प्रलय के मेघ की गरज...!
ओस की चमक हो
या कली की लाज
कैसे बचा पाएँगे ये शब्द !
वहाँ क्यों खड़े हो भाई ? बटोर लो
इन्हें वापिस दो इनके अर्थ !
लौटा दो इनकी शक्ति
बचालो इन्हें ‘अनर्थक’ होने से
क्षमताओं के वेद,
उपलब्धियों के पुराण
इन्हीं से लिखे जाने हैं
इतने पराये तो नहीं हैं ये शब्द !
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#सुरेश पंत
सुन्दर !!शब्द को मनाना भी पड़ता है |
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम ! बहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंवहाँ क्यों खड़े हो भाई ? बटोर लो
इन्हें वापिस दो इनके अर्थ !
लौटा दो इनकी शक्ति
बचालो इन्हें ‘अनर्थक’ होने से
क्षमताओं के वेद,
उपलब्धियों के पुराण
इन्हीं से लिखे जाने हैं
इतने पराये तो नहीं हैं ये शब्द !
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