अब से अभी तक ...
पहले अब
“अब तेरा क्या होगा कालिया?”.. यह संवाद अब भी बहुत लोकप्रिय है! लेकिन समस्या भी इसी ‘अब’ से जुड़ी हुई है कि यहाँ ‘अब’ का तात्पर्य इसी क्षण से है या इसके आगे भी इसकी व्याप्ति है? ‘अब के बरस भेज भैया को बाबुल ...” इस लोकगीत में तो यह ‘अब’ साल में कभी भी हो सकता है. बाबुल जब भी भैया को बहना की ससुराल भेज दें, तभी ‘अब’ है!
वस्तुतः यह ‘अब’ नाम का क्रियाविशेषण क्रिया के वर्तमान काल में होने का संकेतक तो है, किन्तु प्रयोग और प्रयोक्ता के मंतव्य के अनुसार ‘इसी क्षण’ से लेकर ‘आगे’, ‘इससे आगे’, फिलहाल’, ‘आधुनिक काल में’ आदि अनेक अर्थ दे सकता है, अर्थात अनिश्चित वर्त्तमान या निकट भविष्य में कहीं भी संकेत कर सकता है. जैसे :
- इसी क्षण : अब आशीर्वाद दीजिए, मैं चल रहा हूँ.
- आगे : सुनिश्चित कीजिए कि अब आप ऐसा नहीं करेंगे.
- फिलहाल : अब कोई संभावना तो नहीं है, फिर भी ...
- आजकल : अब यह चलन नहीं रहा.
- इसके बाद : अब तुम जानो,तुम्हारा काम जाने.
- कोई विशेष स्थिति होने पर : अब मैं क्या कहूँ, स्वयं निर्णय करो.
- निकट भविष्य में : अब रोज़गार के लिए कहाँ जाएं
कुछ परसर्गों, प्रत्ययों, शब्दों के जुड़ने पर तो इसके अर्थ में और भी अनेक छबियाँ आ जाती हैं :
- अब से (इस क्षण के बाद, आइंदा, आनेवाले समय में) : अबसे सुबह उठूँगा. अबसे मांसाहार बंद.
- अब का/अब की (ताज़ा, हाल का, आधुनिक) : अब की सिंकी रोटी हो तो तभी देना. अब की फसल बच जाए,बस.
- अब के (इस बार, इस फेरे) : ‘अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई’/नीरज, अब के सूखा पड गया है. अबके खीर खिलाओगे या हलवा?
- अब जाकर (इतनी देर बाद) : दस साल में अब जाकर फैसला आया. अब जाकर आँख खुली.
- अब तक (पिछले कुछ समय से इस घड़ी तक) : ‘अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया’ /मुक्तिबोध. अब तक तो चुप थी, अब नहीं रह पाऊँगी.
- अब भी (आज भी, इतने पर भी) : ‘शहर अब भी संभावना है’/अशोक वाजपेयी, इतना समझाया, अब भी नहीं मानता.
कभी-कभी यह ‘अब’ अपने सजातीय शब्दों के साथ संबंध भी जोड़ता है और उन्हें अपने वाक्य में ले आता है. उन संबंधियों में प्रमुख हैं ‘जब’ और ‘तब’/’तो’/’तभी.’ जैसे :
- जो अब अपना नहीं है, वह तब क्या होगा जब उसे मालूम पड़ेगा कि वह तुम्हारा बेटा नहीं है.
- अब जब आप आ ही गए हैं, तो स्वयं देख लीजिए.
- अब पूछ रहे हैं, जब जग जाहिर हो गई बात!
- अब महँगा है, तब सस्ता था.
- अब आप तभी सच्चाई जान पाएंगे जब मत गणना पूरी हो जाएगी.
अब से बने मुहावरे भी मजेदार हैं. आपका कोई मसला किसी के पास पड़ा हो और वह टालता जा रहा हो तो आप कहते हैं, “मानता ही नहीं, अब-तब करता जाता है.” आप बेसब्री से उसे निबटाने को कहते हैं तो वह पलटकर कह सकता है, “तुम्हे अपनी ही अब-तब पड़ी है, अब मेरे पास और भी तो काम हैं.” किसी मरणासन्न का हाल बताने वाला कहता है, “क्या बताएं, बस अब-तब लगी है, थोड़े समय का मेहमान है.”
अब से अभी
‘अभी-अभी मेरे दिल में ख़याल आया है’ कि इस ‘अभी’ की भी अजीब दास्तान है. अब का ही एक सगोत्री भाई है ‘अभी’. इसकी बड़ी सीधी सी व्युत्पत्ति है. अब (क्रियाविशेषण) के साथ ही (बल देने वाला निपात) जोडने पर ‘अभी’ बनता है. कुछ लोग इसे अब + भी मानते हैं, जो ठीक नहीं लगता क्योंकि अब और भी दोनों स्वतंत्र शब्द हैं और दोनों का स्वतंत्र प्रयोग होता है. व्युत्पत्ति में ही नहीं, व्यवहार में भी इस ‘अभी’ के समान उदारवादी मिलना अभी तो कठिन है. इसे संदर्भ के यथासंभव निकटस्थ क्षणों का समय संकेतक माना जा सकता है. जैसे :
- तत्काल : अभी निकल जाओ यहाँ से. अभी टाइप करके ले आइए.
- निकट के कुछ समय तक : अभी आप केवल फल ही लें. अभी कुछ दिन आराम कीजिए.
- कुछ समय पूर्व : अभी तो फोन आया था उनका. अभी आए हो, कुछ सुस्ता लो.
- कुछ समय पूर्व से वर्तमान में भी : संभालिए अपने लाडले को, अभी से बिगड़ गया है.
- आगे कुछ समय तक, कुछ देर : अभी सोच लीजिए, बाद में बताइएगा हमें.
- दुहरा दिए जाने पर ‘अभी-अभी’ सन्दर्भ के क्षण के अधिक निकट होता है. जैसे ; अभी-अभी तो छूटी है ‘प्रयागराज एक्सप्रेस’. अभी-अभी तो नौकरी लगी है.
- मीडिया में ‘अभी-अभी’ ब्रेकिंग न्यूज़ या ताज़ा खबर के लिए भी प्रयुक्त हो रहा है.
- अभी के साथ एक ‘भी’ और जोड़ दिए जाने पर यह ‘इसके बावजूद’, ‘ऐसा होते हुए भी’ का अर्थ देता है : इतना समझाया, तुम अभी भी नहीं सुधरे. अभी भी मान जाओ, कुछ नहीं बिगड़ेगा.
- यह ‘अभी’ समय के प्रति हम भारतीयों के दृष्टिकोण को, हमारे स्वभाव को भी आईना दिखाता है. जैसे इन स्थितियों पर ध्यान दीजिए :
- आप बिल भुगतान के लिए ‘क्यू’ में खड़े थे. शायद कार्यालय से छुट्टी ली हो, शायद बिल भुगतान की अंतिम तिथि हो. जब आपकी बारी आती है तो खिडकी पर बैठा कर्मचारी यह कहकर उठ जाता है, “अभी आया ..” आप प्रतीक्षा करने को बाध्य हैं, अभी आएगा. जब आप अपना पसीना पोंछ रहे हों, तब तक भी वह नहीं लौटता. आप समझ रहे थे दो-चार मिनट में आ जाएगा, किंतु यह आपका भाग्य है कि उसकी यह ‘अभी’ कितनी देर में समाप्त हो! वहाँ ‘ही’ निपात की तात्कालिकता अनिश्चितकालिकता में भी बदल सकती है, ‘आए-न-आए’ की स्थिति तक फ़ैल सकती है. आपकी छुट्टी बर्बाद चली जाए या बिल भुगतान न होनेसे बिजली कट जाए, इसके लिए आप ‘अभी’ शब्द को दोषी नहीं ठहरा सकते. हाँ, समय के प्रति भारतीय अभिवृत्ति को कोस ज़रूर सकते हैं.
- ‘अभी’ के शिथिल समय बोध की एक और स्थिति हो सकती है. आपने अपने स्नेह पात्र युवा की रुचियों और कुशलताओं को देखकर उसे समझाया, “तुम विधिवत संगीत का अभ्यास शुरू करो, तुममें इसके संस्कार हैं, लक्षण हैं.” या ऐसा ही कोई सुझाव दिया तो उत्तर मिलता है, “ जी, मैं भी यही सोचता हूँ. अभी करता हूँ, बस अमुक काम से निबट जाऊं.” फिर अगली बार..., अगले वर्ष ... जब भी आप मिलते हैं, वही उत्तर.. “जी, अभी करता हूँ बस...” अंततः आप ही बस कर देते हैं और मान लेते हैं कि यह ‘अभी’ कभी नहीं आने वाला!
- यह ‘अभी’ ऐसी अनिश्चित दीर्घ अवधि का भी हो सकता है जिसकी समाप्ति तो होगी, किंतु कब होगी, यह नहीं कहा जा सकता. जैसे किसी को आप समझाएं : “अभी पढ़-लिख लो, तो बाद में बड़े आदमी बनोगे.” किसी के लिए विवाह का कोई प्रस्ताव आए और माता-पिता कहें, “निरुपमा तो अभी पढ़ रही है, बाद में सोचेंगे.”
यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि कुछ लोग ‘अभी’ के साथ फिर से ‘ही’ निपात जोड़कर वाक्य में प्रयोग करते हैं. व्याकरण की दृष्टि से यह ठीक नहीं लगता क्योंकि ‘अभी’ शब्द में ‘ही’ पहले से ही उपस्थित है. इसलिए उसके साथ एक बार फिर ‘ही’ को बुलाकर बिठाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है. इसी प्रकार ‘तभी ही’, ‘कभी ही’ जैसे प्रयोग भी अशुद्ध हैं. ‘इसी’, ‘उसी’, ‘किसी’ के साथ ‘ही’ लगाना भी अशुद्ध प्रयोग है. किंतु जैसा कि बताया गया, ‘अभी’, ‘कभी’, ‘तभी’ के बाद आवश्यकता होने पर एक और ‘भी’ को जोड़ा जा सकता है. जैसे :
- मैं अभी भी आपकी बात से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ.
- आप कभी भी आइए, द्वार सदा खुले मिलेंगे.
- इतना समझाया, तभी भी (तब भी) तेवर वैसे ही हैं.
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