जान-पहचान के बहाने
यों तो पहचान पत्र भी अब अनेक प्रकार के बनने लगे हैं पर आपकी पहचान आधार कार्ड या किसी पहचान पत्र तक ही सीमित नहीं है । समाज में, कार्यालय में, आप अपनी पहचान बनाते हैं। कहीं काम निकालना हो तो जान-पहचान ढूंढ़ी जाती है। और सबसे बड़ी बात यह कि आपका चेहरा हमें जाना-पहचाना लगता है।
तो क्या कभी आपने सोचा कि यह #पहचान शब्द बना कैसे?
संस्कृत में एक शब्द है प्रत्यभिज्ञान। वही प्रत्यभिज्ञान जो शकुन्तला के संकटों का कारण बना था। यह पहचान भी संस्कृत के प्रत्यभिज्ञान शब्द का ही तद्भव है और इस शब्द में भी #ज्ञान प्रधान है। उपसर्ग लगे हैं दो-दो। प्रति और अभि उपसर्गों से बनता है प्रत्यभिज्ञान > (प्रति + अभि + ज्ञा+ल्युट्) > पहचान।
पहचान के ही जोड़े का एक शब्दयुग्म है - जान-पहचान। जान की जान ज्ञान में बसी है। ज्ञान से निष्पन्न है प्रत्यभिज्ञान और इन दोनों से आज आपकी जो जान-पहचान बनी, उसे आप दृढ़ रखें।
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