आज सुबह फगुनहट मिल गई अचानक कनखियों से मुस्काई और बोली – 'ए – ए - ए-- कुछ ठहरो तब बढ़ो आगे अभी -अभी ताल में नहाई है किशोरी धरती और- बेपरदा बैठी है धूप में सुखा रही है लक-दक पीली ओढनी सरसों के खेत में ... '...उधर बौराने लगे हैं आम चम्पा का बरन और गोरा हो आया है गदरा गया है अंग-अंग कलियों का कल तक खिल जाएंगी टेसू की कलियाँ बरस पडेगा दहकता रंग क्षितिज के आर-पार भोर से ही घूमने लगेंगी फगुआ गाती टोलियाँ ... '... पर कोयल का कहीं अता-पता नहीं है न सेमल के गाछ में है, न आम की डाल में न टेसू के वन में है, न महुए के पेड़ में न जाने कहाँ चली गई पगली चलती हूँ, ढूँढ लाती हूँ उसे ...’ बेचारी फगुनहट आगे निकल गई ! मैं कैसे कहता—वह नहीं मिलेगी तुम्हें | उसे अब क्या पता कि कब गंधाती है मंजरी कब बौराते हैं आम कब कोसाता है महुआ कब घूमते हैं मदमाते-फगवाते होरिहार... कोयल तो अब शहर में बस गई है ! मैं कैसे कहता मैं किसे कहता ? भोली फगुनहट अब भी ढूँढती फिर रही है कोयल को, उसकी बोली को ... ... |
आज सुबह फगुनहट मिल गई अचानक कनखियों से मुस्काई और बोली – 'ए – ए - ए-- कुछ ठहरो तब बढ़ो आगे अभी -अभी ताल में नहाई है किशोरी धरती और- बेपरदा बैठी है धूप में सुखा रही है लक-दक पीली ओढनी सरसों के खेत में ... '...उधर बौराने लगे हैं आम चम्पा का बरन और गोरा हो आया है गदरा गया है अंग-अंग कलियों का कल तक खिल जाएंगी टेसू की कलियाँ बरस पडेगा दहकता रंग क्षितिज के आर-पार भोर से ही घूमने लगेंगी फगुआ गाती टोलियाँ ... '... पर कोयल का कहीं अता-पता नहीं है न सेमल के गाछ में है, न आम की डाल में न टेसू के वन में है, न महुए के पेड़ में न जाने कहाँ चली गई पगली चलती हूँ, ढूँढ लाती हूँ उसे ...’ बेचारी फगुनहट आगे निकल गई ! मैं कैसे कहता—वह नहीं मिलेगी तुम्हें | उसे अब क्या पता कि कब गंधाती है मंजरी कब बौराते हैं आम कब कोसाता है महुआ कब घूमते हैं मदमाते-फगवाते होरिहार... कोयल तो अब शहर में बस गई है ! मैं कैसे कहता मैं किसे कहता ? भोली फगुनहट अब भी ढूँढती फिर रही है कोयल को, उसकी बोली को ... ... |
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