पाहुना शब्द संस्कृत के "प्राघुर्णक/प्राघुण" शब्द से बना है। जो घूमते-घूमते आपके घर आ जाए उस अतिथि को संस्कृत में ‘प्राघुण’ कहते हैं। पंचतंत्र में प्राघुर्ण तथा नैषध में प्राघुणिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। पृथ्वीराज रासो में प्राहुन्ना शब्द मिलता है जैसे:
"चितरंग राय रावर चबे प्राहुन्ना बग्गा फिरे।"
इसी शब्द से भारतीय भाषाओं के निम्नलिखित सभी शब्द निष्पन्न हुए हैं—
प्राकृत: पाहुण
हिन्दी: पाहुन
बुन्देली: पहाउना
पंजाबी: ਪਰਾਹੁਣਾ (पराहुणा)
गुजराती: પરોણો (परोणो)
राजस्थानी: पावणा/पामणा
मराठी: पाहुणा
छत्तीसगढ़ी: पहुना
हिंदी की प्रायः सभी बोलियों में पाहुन अतिथि के लिए कम, दामाद के लिए अधिक प्रयुक्त होता है। कुमाउँनी में पाहुना/पाहुनी क्रमशः पौण/पौणी (पौन,पौनी) हैं जो अतिथि के रूप में पधारे इष्ट मित्र, अभ्यागतों के लिए है। गढ़वाली में बारात में आए सभी मेहमान पौण हैं। नेपाली में पाहुना दामाद है, समस्तपद 'पाहुना-पाछी' है। नेपाली की भाँति "पौण-पाछि" कुमाउँनी में भी मिलता है, संभवतः इसलिए कि पौण के पाछे (साथ) उसके कुछ सेवक-सहायक या परिजन भी होंगे। वे सब भी पाहुन के समान सत्कार योग्य हो गए।
यह जानना रोचक होगा कि पौनी (पाहुनी) का प्रयोग कुमाउँनी में लक्षणा से ननद के लिए होता है क्योंकि वह भी विवाह के बाद पाहुनी-सी मान ली गई।
गुरु ग्रंथसाहब में भी कहा गया है :
"जिसनऊँ तूं असथिर करि मानहि ते पाहुन दो दाहा।" अर्थात जिस संतान स्त्री घर आदि को तू स्थिर समझ रहा है, वह तो मात्र दो दिन के अतिथि हैं।
तुलसीदास जी ने मानस में पाहुन शब्द का प्रयोग अनेक बार किया है।
लेहु नयन भरि रूप निहारी ।
प्रिय पाहुणे भूप सुत चारी ।।
पाहुनी शब्द ब्रज में अतिथि महिला, पड़ोसन, सखी के लिए है। सूरदास के इस रमणीय पद में पाहुनी से दही बिलोने का आग्रह किया गया है—
पाहुनी करि दै तनक मह्यौ।
हौं लागी गृह-काज-रसोई जसुमति बिनय कह्यौ॥
आरि करत मनमोहन मेरो अंचल आनि गह्यौ।
ब्याकुल मथति मथनियाँ रीती दधि भुव ढरकि रह्यौ॥
माखन जात जानि नँदरानी सखी सम्हारि कह्यौ।
सूर स्याममुख निरखि मगन भइ दुहुनि सँकोच सह्यौ॥
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