सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उछल-कूद की बातें

 

उछलना (उछालना, उछाल)

सामान्यतः एक धरातल से वेगपूर्वक उठना ही उछलना है| संस्कृत में उद्+शल् (दौड़ना) से ल्युट् प्रत्यय जोडकर उच्छलन बनता है| हमारे राष्ट्रगीत के ‘उच्छल-जलधि-तरंग’ में यही ‘उच्छल’ है| इसका सामान्य अर्थों में प्रयोग है: गेंद उछलती है, बच्चे भी उछलते हैं किन्तु लाक्षणिक प्रयोग अधिक रोचक और विविध हैं| जैसे:

  • अरहर के दाम उछलते हैं|

  • सोने में उछाल आता है|

  • आजकल शेयरों में उछाल दिखाई पड़ता है|

  • मेरे सामने में उछलो मत, मैं तुम्हारी असलियत जानता हूँ|    घमंड करना

  • शुरूआती दौर का रुझान देखकर नेताजी उचल पड़े|            इतराना

  • सफलता का समाचार सुनकर विद्यार्थी उछल पड़ते हैं|

  • भ्रष्टाचार की बात उछाली जाती है|

  • किसी की प्रसिद्धि में भी उछाल आता है|

  • लोग एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं|

  • समुद्री तूफ़ान से लहरों में उछाल आता है|

अर्थ में उछलना के निकटस्थ मित्रों में हैं, कूदना, फाँदना, छलांगना और लाँघना| कूदना तो संस्कृत का कूर्दन ही है| कूदना में किसी सतह से उछलकर उसी धरातल पर वापिस आने की क्रिया है| यह क्रिया के साथ जोड़ीदार बनकर भी आता है और स्वतंत्र भी|

  • वह तालाब से कूदा|

  • बंदर पेड़ से कूद पड़ा|

  • उछलना-कूदना बच्चों का स्वभाव है|

  • लोग किसी की बातों के बीच कूद पड़ते हैं|            (दखल देना)

  • अनेक लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े|             (अचानक शामिल होना)

  • अब कूदना-फाँदना व्यर्थ है|

  • कूदने की प्रतियोगिताएँ कल होंगी|

  • रस्सी कूदना अच्छा व्यायाम है|

फाँदना/फलाँगना-

फाँगना भी एक प्रकार से लाँघना ही है| इसमें उछलना पहली क्रिया है और फाँदना दूसरी| अर्थात फाँदने के लिए हम पहले हवा में उछलते हैं, फिर किसी दूरी या रोक को लाँघते/फाँदते हुए कूदकर नीचे आते हैं| लाँघना में दूरी कम होती है, बिना उछले ही कदम को लम्बा करके भी पार की जा सकती है-

  • बकरी भेड़ को लाँघकर आगे निकल गई|

  • सड़क में गड्ढा है, फाँदकर आ जाइए|

  • चोर दीवार फाँदकर आया|

कभी-कभी यह फाँदना एक उछाल में नहीं भी संपन्न होता, जैसे:

पर्वतारोही अनेक पर्वतों को फाँदकर अंतिम शिखर पर पहुँचे|

छलांगना में अंतर यह है कि छलांग उछलकर दूर तक कूदने की क्रिया है| इसका गंतव्य होता है, कूदना में नहीं होता| जैसे मेंढक छलांग लगाते हैं|

‘फुदकना’ में गति तो छलांग वाली है, पर गंतव्य आगे बदलता बढ़ता रहता है, जैसे-

  • तितलियाँ एक फूल से दूसरे फूल पर फुदकती हैं|

  • मेंढक फुदक-फुदककर चला गया|

  • टिड्डियाँ उड़ती हैं और फुदकती भी हैं|

  • गौरैया आँगन में आई और फुदक-फुदक कर दाना चुगने लगीं|

लगे हाथ उछलकूद के प्रसंग में ‘रणबीच चौकड़ी’ भरने वाले राणा प्रताप के घोड़े की चाल भी याद कर लें| आखिर चेतक का यह चौकड़ी भरना क्या है? सामान्यतः पशु चलते-फिरते, उछलते-कूदते हैं| इस क्रिया में चारों पैर बारी-बारी से गति करते हैं| यह भी हो सकता है कि पशु कूदे तो पहले पिछले पैरों पर खड़ा होकर अगले पैर उठाए और अगले पैर टिकाने पर ही पिछले पैर आगे ले आए| किंतु चौकड़ी भरते हुए वह अपने चारों पैर हवा में उछालकर आगे रखता है और फिर इसी तरह से तीव्र गति से कूदता हुआ आगे बढ़ता है| यही चौकड़ी भरना है| हिरन, घोड़े, चीते चौकड़ी भरते हुए दौड़ते हैं|  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्