कुमाउँनी में बहुत सुबह, भोर या तड़के के लिए ब्यान शब्द का प्रयोग किया जाता है। प्रायः इसे हिंदी क्रिया ब्याना (जनना) से व्युत्पन्न मान लिया जाता है। रातिब्यान अर्थात् रात के द्वारा भोर को जनने का समय, मुँह अँधेरे। यों "ब्यान" को हिंदी ब्याना का लाक्षणिक अर्थ माना जा सकता है, इसमें काव्यात्मकता भी है, "रात्रि मानो संतान को जन्म दे रही है और उसके गर्भ से भोर का जन्म हो गया।"
किंतु यह भी एक मत हो सकता है कि जब मूल रूप ही अन्य से विकसित हो तो लाक्षणिक प्रयोग सिद्ध करने के लिए अन्यत्र जाना व्यर्थ होगा।
ब्यान शब्द हिंदी बिहान से बना हुआ भी हो सकता है जो संस्कृत विहान/विभान से है। √भा धातु से अन्य अनेक शब्द हैं, जैसे - प्रभात, विभा, प्रभा इत्यादि। वि + √भा (चमकना, प्रकाशित होना) + ल्युट् = विभान ➡️ बिहान ➡️ ब्यान।
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2. गंगा और गङ् - गाड़
कुमाईं में "गङ्" का अर्थ केवल गंगा नदी नहीं है, यह नदी - सामान्य का पर्याय है! जैसे कालीगङ्, गोरीगङ्, रामगङ्, सरयू गङ्। किसी भी नदी नाम के साथ गङ् जोड़ा जाता है। छोटी और कम पानी वाली नदी को गाड़ कहा जाता है जैसे ठूली गाड़, बिशाडै गाड़, पनार गाड़, स्वालगाड़ आदि।इसके विपरीत गङ् प्रायः हिमालय से निकलने वाली और सदानीरा हैं।
यही "गङ्" शब्द म्यांमार, वियतनाम, चीन में "काङ्", "क्याङ्" या "कङ्" हो जाता है जैसे मीकाङ्, सीक्यांङ्, यांग्त्सीक्यांङ्...! श्रीलंका की सिंहली भाषा में भी गंगा शब्द नदी सामान्य के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे त्रिंकोमाली के निकट महावेलि गंगा। इसके अतिरिक्त कालूगंगा और केलानीगंगा भी श्रीलंका की नदियाँ हैं जो पश्चिम में क्रमश: कालुबारा और कोलंबो के पास समुद्र में मिलती हैं।
तो क्या कोई एक भाषा-भाषी मानव समुदाय पश्चिम से चलकर हिमालय से होकर पूर्व की ओर और फिर दक्षिण की ओर गया था?
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3. शहीद और शहादत
#शहीद
शब्दों के रूप और अर्थ की यात्रा रोचक होती है।आवश्यक नहीं कि मूल स्वरूप या UWअर्थ बना रहे। अर्थविस्तार, अर्थसंकोच हो सकता है। अरबी भाषा का "शहाद" ( شَهَادَة šahāda) , शाहिद (shaahid شاہِد ) शब्द संभवतः इस्लाम से भी पुराना है। शहाद से फ़ारसी, हिंदी/उर्दू में शहीद, शहादत बने। इनका अर्थ प्रमाण, गवाह के साथ पवित्र उद्देश्य के लिए प्राणोत्सर्ग भी था और यह पवित्र उद्देश्य धर्म रक्षा ही नहीं, देश या मातृभूमि की रक्षा भी हो सकता था।
कानूनी भाषा में शहादत का मूल अर्थ (प्रमाण) सुरक्षित है। न्यायालय में पक्ष-विपक्ष शहादत (गवाह) प्रस्तुत करते हैं जिनके आधार पर मुकदमों का फैसला होता है। शहाद से बने शहीद, शहादत, शहीद-ए-आजम जैसे शब्द अन्य अनेक आगत शब्दों की भाँति हिंदी में घुल-मिल गए हैं। आज इन्हें बदलने का कोई औचित्य नहीं है।
यहाँ कुछ हिंगलिश के समर्थक कहते हैं कि जब अरबी-फ़ारसी के शब्दों के लिए आपत्ति नहीं तो अंग्रेजी के लिए क्यों। सीधी-सी बात है कि अरबी फारसी मूल के हों या अंग्रेजी; आगत शब्द वे ही स्वीकार्य हैं जो सहज प्रयोग में हों और घुलमिल गए हों। ऐसे घुले-मिले अंग्रेजी शब्द भी हिंदी में बहुत हैं किंतु आपत्ति वहाँ है जहाँ वे ठूँसे जा रहे हों, हिंदी में उपलब्ध सरल शब्दों को भी निकालकर अंग्रेजी को वरीयता दी जा रही हो।
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