गूदड़ शब्द संस्कृत √गुध् (वेष्टन, ढकना, लपेटना) धातु से है। गूदड़ का अर्थ है बहुत फटे-पुराने कपड़े जो किसी काम के न रह गए हों। गूदड़ों में से कुछ काम के टुकड़े निकाल कर उन्हें थेगली (टल्ली) के रूप में आपस में जोड़कर सिलाई करके जो चादरनुमा कपड़ा बनाया जाता है उसे गुदड़ी या गूदड़ी कहते हैं। गुदड़ी गरीबों के ओढ़ने-बिछाने के काम आती है। कुछ साधु सन्यासी केवल गुदड़ी ही लपेटते थे इसलिए उन्हें गुदड़ी साईं या गुदड़ी बाबा, गुदड़ी शाह कहा जाता था।
आज फ़ैशन की दुनिया में भी गुदड़ी चलती है, नाम बदलकर।रंग-बिरंगे पैबंदों से बने अनेक प्रकार के वस्त्र, चादरें, रजाइयाँ जिन्हें पैच वर्क कहा जाता है! बहुत महंगे बिकते हैं पैचवर्क यानी गुदड़ी के वस्त्र।
पुराने शहरों, कस्बों में गुदड़ी बाज़ार या गुदड़िया बाज़ार नाम के मोहल्ले मिल जाएँगे जिनमें फटे-पुराने वस्त्र बेचे-खरीदे जा सकते थे। गुदड़ी बाज़ार से आशय है टूटी-फूटी तथा फटी-पुरानी वस्तुओं का संग्रह, पुरानी चीज़ों का बाज़ार, विभिन्न बेमेल चीजों का संग्रह, इधर-उधर से जुटाई हुई चीजों का बाज़ार जिसे कहीं कबाड़ी बाज़ार भी कहा जाता है।
गरीब, साधनहीन घर में जन्म लेने वाले प्रतिभाशाली बच्चों को 'गुदड़ी का लाल' कहा जाता है। बहुत साधारण वेशभूषा में असाधारण व्यक्तित्व का धनी भी 'गुदड़ी का लाल' कहलाता है।
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