हम "शुद्ध हिंदी" का तर्क देते हुए अपने यहाँ सैकड़ों-हजारों वर्षों से आम व्यवहार में आ रहे फ़ारसी, अरबी, तुर्की शब्दों को विदेशी बताकर उनका बहिष्कार करने की बात करते हैं। यह बात और है कि अंग्रेजी शब्दों को ठूँस कर हिंदी को हिंग्लिश बनाए जाने पर विशेष ध्यान नहीं देते।
अंग्रेजी के विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय शब्दकोश Oxford English Dictionary (OED) प्रत्येक वर्ष चार बार अपने शब्दसागर में उन नए शब्दों को जोड़ती है जो दुनिया की किसी भाषा के हों किंतु अंग्रेजी में प्रयुक्त होने लगे हों। OED में जुड़े कुछ नए हिंदी/उर्दू शब्दों में हैं -- योग, योगासन, सूर्यनमस्कार, दीदी, आधार, डब्बा, शादी, अण्णा, दादागिरी, हड़ताल, अच्छा, चटनी, मसाला, पूरी, पक्का, यार, बदमाश, गंजा आदि। अन्य भारतीय भाषाओं से भी सैकड़ों शब्द खुले दिल से OED में अपनाए गए हैं। उनमें एक है पूरे दक्षिण भारत और श्रीलंका में सबसे लोकप्रिय द्रविड़ मूल का शब्द "अइयो!"
यों तो अइयो! आश्चर्य बोधक है, पर व्यवहार में यह बहुत ही व्यापक है और आश्चर्य ही नहीं, सभी प्रकार के भावनात्मक उद्वेगों में समान रूप में कहा जाने वाला तात्कालिक उद्गार है। यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि इस अइयो में नाट्यशास्त्र के सभी नवरसों की अभिव्यक्ति हो सकती है। रसाचार्य उत्तररामचरित में शृंगार और करुण के मेल को बेमेल बताते रहे, परस्पर विरोधी रसों की बात करते रहे, कहीं कहीं रसपरिपाक न होने पर रसाभास बताते रहे, किंतु अकेला 'अइयो' सामने उपस्थित किसी भी स्थायीभाव की स्थिति के अनुकूल विविध भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भावों की सृष्टि करता हुआ नवरसों की सिद्धि करता रहा है।
किसी बच्चे को उसकी प्रिय चॉकलेट मिलने पर, किसी प्रियजन के बीमार होने या निधन हो जाने पर, सड़क पर कीचड़, गड्ढे या किसी दुर्घटना को देखने पर, घर में कोई छुटपुट कलह-क्लेश, आरोप-प्रत्यारोप पर, किसी भी प्रकार के भय की आशंका पर, गर्भवती की बेचैनी पर, प्याले में मक्खी गिर जाने पर, लाखों की लॉटरी लग जाने पर और ऐसी ही अनंत स्थितियों में मुँह से स्वतः फूटने वाला पहला शब्द होता है "अइयो!"
• अइयो, पापा क्या कहेंगे!
• अइयो, कितना सुंदर बेबी!
• अइयो, हिम्मत तो देखो इसकी!
• अइयो, मेरी अंगुली कट गई!
• अइयो, हाऊ क्यूट!
कुल मिलाकर अनंत संभावनाएँ।
अइयो को OED के अनुसार चीनी/मंदारिन मूल का बताया गया है किंतु है यह द्रविड़ मूल का। दक्षिण भारत की सभी प्रमुख भाषाओं तमिळ, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तुळु आदि भाषाओं में सदियों से व्यवहार में है किंतु लिखित रूप में इसका पहला प्रयोग नवीं सदी के "जीवक चिंतामणि" में प्राप्त बताया जाता है। भक्त कवि आळ्वार संतों ने भी इसका प्रयोग किया है।
भारत और भारतीयों की मूल प्रवृत्ति के अनुकूल 'अइयो' में धार्मिक सहिष्णुता, समभाव जैसे गुण विद्यमान हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि "अइयो" यमराज की पत्नी थी, इसलिए वे इसे अशुभ मानकर कम से सुबह-सवेरे इसके प्रयोग से बचते हैं लेकिन जब उठते-उठते रसोई से कुछ गिरने की आवाज़ आती है तो तुरंत मुँह से निकलता है, "अइयो! पूनै (बिल्ली)" और हड़बड़ाकर रसोई की ओर भागते हैं। कुछ लोग इसे सदाशिव और मोहिनी रूप विष्णु की संतान हरिहरपुत्र स्वामी अय्यप्पा का शुभ नाम मानते हैं पर प्रयोग केवल आस्तिक हिंदुओं तक ही नहीं; हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, आस्तिक, नास्तिक सब में समान रूप से पाया जाता है।
अजब गजब किस्से होते हैं शब्दों के। वे अंतरमहाद्वीपीय यात्राएँ करते हैं, स्वरूप बदलते हैं, पुरानी केंचुल छोड़कर नए अर्थ ग्रहण करते हैं, नए समाज के अनुकूल ढलते-बनते हैं और हम अपने पूर्वग्रहों के कारण उनसे बचते हैं, उनका तिरस्कार करते हैं और पवित्रता का आडंबर करते कुँए के मेंढक बने रहते हैं।
अइयो, रामा!
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