अज्ञों के सम्मान में विशेषज्ञ
ज् और ञ के संयोग से बना हुआ संयुक्त अक्षर है ज्ञ । यह एकाक्षरी स्वतंत्र शब्द भी है जिसका अर्थ है ज्ञानी, ज्ञानवाला, जानकार। ज्ञ का स्वतंत्र प्रयोग कम होता है और किसी शब्द के साथ प्रत्यय के रूप में ज्ञ जोड़कर इससे समस्त पद बनाए जाते हैं; जैसे शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, निमित्तज्ञ, विधिज्ञ, कार्यज्ञ, दैवज्ञ, शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, अज्ञ, विशेषज्ञ ।
अमरकोश के अनुसार --
विद्वान्विपश्चिद्दोषज्ञः सन्सुधीः कोविदो बुधः।
धीरो मनीषी ज्ञः प्राज्ञः संख्यावान्पण्डितः कविः॥
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आजकल टीवी चैनलों, विद्वानों की गोष्ठियों में कभी-कभी ऐसे विशेषज्ञ आ जाते हैं जिन्हें "विशेष अज्ञ" कहने का मन करता है किंतु व्याकरण इस स्थापना को स्वीकार नहीं करेगा। संस्कृत के संधि नियमों के अनुसार यहाँ दीर्घ स्वर संधि होगी और विशेष +अज्ञ मिलकर पद बनेगा 'विशेषाज्ञ'।
अनेक बार गोष्ठियों में मैंने विद्वानों के समक्ष यह प्रश्न उठाया जिसे हँसी- मजाक में टाल दिया गया और यही हो भी सकता था। schwa लोप के तर्क एक बार ट्विटर में संस्कृत के एक प्रकांड विद्वान मित्र रामानुज देवनाथन (असमय ही निधन हो गया) ने इसका समाधान करते हुए लिखा, "हाँ, संस्कृत व्याकरण में भी यह संभव है । एक वार्तिक 'शकन्ध्वादिषु पररूपं वाच्यम्' के अनुसार विशेष अज्ञ को भी विशेषज्ञ माना जा सकता है।"
मुझे जैसे सहारा मिल गया क्योंकि हिंदी में, कम से कम बोलचाल की हिंदी में, यह रूप बन सकता है। आइए देखें भाषा- व्याकरण में यह ऐसे संभव है!
हिंदी में उच्चारण नियमों के अनुसार 'विशेष' में अन्त्य स्वर 'अ' नहीं है, इसे पदांत अकार (schwa) का लोप कहा जाता है। सामान्यतः व्यंजन वर्णों में अ स्वर अंतर्निहित होता है किंतु हिंदी की एक विशेषता यह है कि कुछ स्थितियों में उच्चारण में अ लुप्त हो जाता है। इसका प्रभाव अक्षर विभाजन में भी पड़ता है। जैसे
रात > रात्
आम > आम्
कमल > क/मल्
फूलना > फूल्/ना
अराजकता>अ/रा/जक्/ता
लाजपतराय > लाज् / पत् / राय्
विशेष > वि/शेष्
अतः विशेष् में पदांत अकार (schwa) लोप से शेष रहा विशेष्। विशेष् के बाद अज्ञ होने से अ सहज ही पूर्व व्यंजन ष् से जुड़ जाएगा और शब्द बनेगा विशेषज्ञ अर्थात् विशेष रूप से अज्ञ!
सही कहा दादा , हो सकता है पर प्रचलित प्रयोग का क्या होगा ? लाक्षणिक अर्थ में क्या व्याख्या दी जा सकती है ? पता नही , आपका कथन विद्वतापूर्ण एवं चिंतनीय अवश्य है । धन्यवाद दादा । प्रणाम
जवाब देंहटाएंअर्थ तो प्रचलित प्रयोग वाला ही रहेगा । यह मात्र एक दिशा थी - एक व्यंग्य कि कभी-कभी विशेषज्ञ ऐसे होते हैं जो इस शब्द के अर्थ पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं । रहेंगे आगे अज्ञ भी, विशेषज्ञ भी।
जवाब देंहटाएंब्लॉक पर पधारने के लिए आभार।