सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संपृक्त और परिवर्णी शब्द

एक मित्र की फेसबुक पोस्ट पर एक मजेदार शब्द मिला "काराश्रमी"। प्रयोग कुछ ऐसे अर्थ में किया है, " हमारे आश्रम पहले शिक्षा-संस्कृति का केंद्र होने के कारण आदरणीय स्थान होते थे। आश्रमवासी कुछ कथित संतो ने ऐसा कुछ किया कि न्यायालय ने उन्हें आश्रमी से काराश्रमी (कारावास + आश्रमी) बना दिया!"
इस प्रकार दो भिन्‍न शब्‍दों की ध्‍वनियों का कुछ भाग ले कर बनाया गया संपृक्त शब्‍द अंग्रेजी में portmanteau कहा जाता है- port (=ले जाना) और manteau (=वस्त्र आदि सामान) से बना मिश्र शब्द। Portmanteau शब्द का 'आविष्कार' 1882 में चार्ल्स एल डॉडसन ने ऐसे शब्दों के लिए किया था जिनमें एक ही शब्द के भीतर दो शब्द पिरोए गए हों। हिंदी में दो शब्दों से संपृक्त Portmanteau शब्द अनेक हैं। 2006 में रूस के सहयोग से भारत में निर्मित मिसाइल ब्रह्मॉस (BrahMos) नाम भारत की प्रसिद्ध नदी ब्रह्मपुत्र और रूस की नदी मॉस्क्वा के नाम को मिलाकर बना है। इसी प्रकार भारत यूरोपीय के लिए भारोपीय। यूरोप और एशिया के लिए यूरेशिया। अंग्रेजी स्मोक और फॉग से स्मॉग। फिल्म जगत के सैफ़ और कैटरीना के लिए सैफीना । गुजरात में शिक्षा के क्षेत्र में एक रोचक शब्द प्रचलित है। कुछ प्राथमिकी शालाओं का समूह (ग्रुप) बनाकर एक संयुक्त प्राचार्य (principal) नियुक्त किया जाता है , जिसे ग्रुपाचार्य कहा जाता है।
संपृक्त शब्द की ही भाँति अर्थ और प्रयुक्ति में उससे मिलता जुलता एक अन्य शब्द एक्रोनिम (Acronym) भाषा विज्ञान का पारिभाषिक शब्द है। इसके लिए हिंदी शब्द है "परिवर्णी" शब्द। किसी बड़े नाम या शब्द समूहों के आद्यक्षरों से बना रूप, जैसे इंडियन पीपल्स थियेटर असोशियेशन के लिए इप्टा (IPTA), भारतीय जनता पार्टी को भाजपा। द्रविड़ मुन्नेत्र कऴगम् के लिए द्रमुक। कुछ ही दशक पहले अंग्रेजी मीडिया ने बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के समुच्चय के लिए एक शब्द गढ़ा था बिमारू।
इन्हें "आदिवर्णिक" शब्द भी कहा जाता है।
आद्यक्षरों से बने सभी परिवर्णी शब्द एक इकाई के रूप में पुनः नई ध्वनियों से उच्चरित नहीं भी होते। ASEAN तो 'आसियान' हो जाता है, किंतु USA को 'उसा' नहीं कहा जा सकता।
कुमाऊँ के प्रसिद्ध कवि #गुमानी ने अभिनव प्रयोग किया। एक रचना में उन्होंने टिहिरी (टिहरी) को तीन पदों के अंत्यवर्णिक परिवर्णी शब्द के रूप में कहा था। उनके अनुसार इन तीन पदों के अंतिम अक्षरों को लेकर टीहरी (स्थानीय उच्चारण "टीरि") बना:
सुरगंगतटी > टी
रसखानमही > ही
धनकोषभरी > री = > टीहिरी।
 देश के चौदहवें पंत प्रधान (प्रधानमंत्री) नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी की प्रतिभा अपने पूर्ववर्ती सभी प्रधानमंत्रियों की तुलना में भिन्न है। उनमें से एक है उनका भाषाई योगदान। नए-नए नारे गढ़ना, नए परिवर्णी संयुक्ताक्षर सुझाना, पदबंधों की अपने तरीके से पुनर्व्याख्या करना, नए नामकरण आदि उनकी विशेषताएँ हैं। मैं नहीं समझता कि किसी और प्रधान मंत्री ने ऐसी प्रत्युत्पन्न मति पाई हो या ऐसा करने का विचार उन्हें कभी सूझा भी हो। उनके द्वारा संक्षिप्तीकरण से बनाए गए बने कुछ परिवर्णी शब्द ऐसे भी हैं जो मूलतः हिंदी होने का भ्रम पैदा करते हैं। जैसे:
•प्रसाद PRASAD (Pilgrimage Rejuvenation And Spirituality Augmentation Drive.)
•उदय UDAY (Ujwal DISCOM Assurance Yojana 
•उजाला UJALA ( Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All)
•अमृत AMRUT ( Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation)
•हृदय HRIDAY ( Heritage City Development and Augmentation Yojana)
मोदी जी के द्वारा हिंदी को दिए गए अनेक अन्य संपृक्त और परिवर्णी शब्द भी मीडिया में खोजे जा सकते हैं। 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्