कपूर के उपयोग के प्राचीनतम प्रमाण इंडोनेशिया से जुड़ते हैं। बाली की भाषा में भी इसे कपूर ही कहा जाता है। भारत में इसका उपयोग पौराणिक काल से हो रहा है। इस शब्द को भाषावैज्ञानिक ऑस्ट्रो-एशियाई (मलय) मूल का मानते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार मानी जा सकती है- संस्कृत में कर्पूर; प्राकृत, पालि में कप्पूर; हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में कपूर । कर्पूर ही अरबी में काफ़ूर, लैटिन में camfora और अंग्रेजी में camphor बनकर पहुँचा।
कपूर ऊर्ध्वपातीय पदार्थ है, यानी ठोस अवस्था से द्रव में बदले बिना सीधा गैस बनकर उड़ जाता है, अर्थात् काफ़ूर हो जाता है। उर्दू और हिंदी में काफ़ूर का दूसरा लाक्षणिक अर्थ (गायब होना/लुप्त होना) इसी उड़नशील गुण-धर्म के कारण बना है!
प्राकृतिक कपूर इसी नाम के पेड़ों से प्राप्त होता है। इंडोनेशिया, जापान, चीन इसके पुराने उत्पादक रहे हैं। भारत में शुद्ध कपूर को भीमसेनी कपूर भी कहा जाता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में कपूर के अनेक औषधीय प्रयोग बताए गए हैं। सुगंधित द्रव्य होने के कारण देव पूजा आदि में धार्मिक कर्मकांडों में भी काम आता है। पूजा में काम आने वाला कपूर प्रायः सिंथेटिक होता है।
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