नेपाल, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश में ब्राह्मणों के तीन उपनाम प्रायः मिलते हैं : झा, ओझा और उपाध्याय। सामाजिक मान्यता के पैमाने में इन्हें बिस्वा या पंचगौड़ में जो भी स्थान मिला हो, पर व्युत्पत्ति की दृष्टि से ये तीनों एक ही मूल "उपाध्याय" से विकसित हुए हैं। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार नए भाषिक प्रमाण यही संकेत करते हैं।
वेद-वेदांग के अध्यापक उपाध्याय कहे जाते थे। उपाध्याय (संस्कृत) से > उवज्झा (प्राकृत) > ओझा > झा (हिंदी, मैथिली) > । झा को सीधे संस्कृत अध्यापक > शौरसेनी प्राकृत अज्झावअ से व्युत्पन्न भी माना जा सकता ता है।
ख़्वाजा •خواجَہ (तुर्की > ईरानी > उर्दू) भी इसी मूल का माना जाता है जो बौद्ध साहित्य के साथ पालि भाषा में उअज्झा के रूप में पहले मध्य एशिया पहुँचा और वहाँ से ईरान और तुर्की। मध्य काल में फ़ारसी में ख़्वाजा बना और फ़ारसी से सहज ही हिंदी, उर्दू में पहुँच गया।
ख़्वाजा का अर्थ है कोई आदरणीय व्यक्ति, फ़कीर, अमीर सौदागर। ख़्वाजा से मिलते-जुलते दो शब्द फ़ारसी के और हिंदी/उर्दू में हैं - ख़्वाजासरा और खोजा। दोनों का अर्थ लगभग समान है। ये शाही महलों में हरमों के नपुंसक कर्मचारी होते थे जिनका रनिवासों में घूमना-फिरना निरापद माना जाता था। कश्मीरी में ख़ोज्जे उन्हें कहा जाता है जो संपन्न, कुछ घमंडी और परजीवी माने जाते हैं।
मध्ययुगीन मंदारिन (चीनी) भाषा में भी पुजारी के लिए ओउज़ा शब्द भारतीय मूल उपाध्याय > ओझा से माना जाता है और इस्लामी शब्दावली का हेज़ुओ (hezhuo) ख़्वाजा से।
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