गणमान्य या गण्य-मान्य
"गण्यमान्य" और "गणमान्य" शब्दों के प्रयोग पर कभी चर्चा चलती है, तो कोई एक को तो कोई दूसरे को अशुद्ध ठहरा देता है। इसलिए इन पर अशुद्ध होने का आरोप लगने से पहले ही इन पर चर्चा करना ज़रूरी लगता है। इसे सफाई देना न समझा जाए।
शुद्धिवादी तो "गणमान्य" को शुद्ध मानते हैं क्योंकि संस्कृत में यही प्रचलित है। हमारी हिंदी तो स्वतंत्रऔर संपन्न भाषा होते हुए भी आत्मविश्वास के अभाव में संस्कृत का मुँह जोहती रहती है। सो "गणमान्य" जनसामान्य को चाहे मान्य हो, शुद्धिवादियों को मान्य नहीँ। फिर भी सच यह है कि गणमान्य अशुद्ध नहीं है। हिंदी में गण्यमान्य की अपेक्षा अधिक प्रचलित है और भाषा में अपना स्थान बना चुका है।
इस गणमान्य की व्युत्पत्ति भी सरल है। गण अर्थात लोक; वही लोक जो लोकतंत्र बनाता है, लोकरीति में है और लोकप्रिय में भी। तो जो गण में मान्य हो, जो लोकमान्य हो, वह होगा गणमान्य अर्थात् लोक में मान्य।
गण्य विशेषण गण् धातु से है, अर्थ है गणना करने के योग्य। बड़े लोगों में, विद्वानों में गणना के योग्य जो हो वह गण्य तथा जो माना जाने, मान्यता पाने योग्य हो वह मान्य। दोनों स्वतंत्र विशेषणों से मिलकर एक शब्द युग्म बनता है "गण्यमान्य"।
अब अगर दुहरे विशेषणों के भार से किसी को लादना हो तो गण्यमान्य कहें और एक सरल-सहज विशेषण पर्याप्त लगे तो गणमान्य! इच्छा आपकी।
हाँ, इतना निवेदन अवश्य है कि यह "गण्यमान्य" हिंदी के स्वभाव के अनुसार अशुद्ध न सही, अशुद्ध-सा लगता है क्योंकि हिंदी में द्वंद्व समास वाले शब्द युग्मों के बीच योजक (हाइफ़न) लगाने की रीति है। सो लिखने में गण्य-मान्य संगत है, गण्यमान्य असंगत!
जैसे रात-दिन, खेत-खलिहान, जाना-माना आदि हैं, वैसे ही गण्य-मान्य! # # #
हिंदी व्याकरण के अनुसार परीक्षा की दृष्टि से कौन-सा शुद्ध मानें?
जवाब देंहटाएंगणमान्य या गण्यमान्य।
दोनों ही ठीक हैं, अर्थ में थोड़ा अंतर है। गण्य-मान्य अधिक प्रचलित है।
हटाएंKuch samaj me nhi aaya
जवाब देंहटाएंसमझाने का प्रयास तो किया गया है, फिर भी कठिनाई का बिंदु बता सकें तो चर्चा की जा सकती है।
जवाब देंहटाएंआज तक गण्यमान्य का प्रयोग देखा नहीं कहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत बार हुआ है. आप देख नहीं पायीं।
हटाएंसार्थक चर्चा! भाषा से सम्बंधित ऐसी चर्चाएँ जरूर होनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंप्रणाम,गुरुदेव । इससे पहले मैं हम भी गणमान्य ही प्रयोग करते थे, अब हमेशा गण्य-मान्य ही लिखेंगे। धन्यवाद!😊
जवाब देंहटाएंआप बिल्कुल सटीक कह रहे हैं। गण्य - मान्य का मुख सुख के कारण ही गणमान्य हुआ होगा। पर इसका अर्थ यह नहीं कि वैसा ही चलता रहें। आपको साधुवाद महोदय।
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