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निराघाती (बरौनी) ऱ-कार

 

निराघाती  (unstressed) रेफ: बरौनी ऱ-कार (eyelash ra ऱ < r̆>)


हिंदी में रेफ के लिए व्यवस्था है कि वह स्वर और व्यंजन के बीच आने पर शिरोरेखा पर लगता है और उसकी अक्षर सीमा पहले अक्षर के साथ होती है। जैसे गर्व  (गऱ् व) कार्य (काऱ य)। दूसरा स्वर सहित र किसी शुद्ध (हलंत) व्यंजन के साथ जुड़ता है, इसलिए वह उस व्यंजन की खड़ी पाई के साथ लगता है और जिन व्यंजन आकृतियों में खड़ी पाई नहीं होती वहाँ उनके पेंदे पर गोलाई के साथ। जैसे क्रम, ग्रीवा, राष्ट्र आदि। ध्यान रहे कि यह पदांत र स्वर सहित र है जो किसी स्वर रहित व्यंजन से जुड़ता है और उसके चरण-शरण गह लेता है। किंतु यहाँ चर्चित रेफ का ऱ्, आकार और उच्चारण दोनों में शिरोरेखा वाले रेफ से भिन्न है।

इस ऱ् का उच्चारण आघात रहित और कुछ निरंतर कंपन trill से होता है, इसलिए इसे निराघाती या प्रवाही कहना उचित जान पड़ता है। IPA के अनुसार < r̆ > । नागरी लिपि की वर्णमाला आकृति में यह कुछ टेढ़े डैश की भाँति होता है और अक्षर के मध्य लगाया जाता है। मानव बरौनियों से समानता के कारण हम "बरौनी रकार" कह रहे हैं! 

यह बरौनी रकार नागरी लिपि का ऐसा संकेत है जिसे हिंदी ने नहीं अपनाया किंतु मराठी, नेपाली में प्रयुक्त होता है। उच्चारण स्तर पर यह हिंदी की कुछ बोलियों में विद्यमान है। V + र् + C को सर्वत्र शिरोरेखा रेफ बनाने पर अक्षर सीमा कुछ शब्दों में ठीक नहीं बैठती और नया सीखने वाला अशुद्ध उच्चारण कर सकता है।

जैसे: कर्/म = कर्म अक्षर सीमा के अनुसार ही बोला जाता है।

कर्यो = कर्/यो बोला जाएगा जब कि र् को य के साथ बोला जाना चाहिए।

इसका हल होता शिरोरेखा रेफ के स्थान पर निराघाती प्रवाही (बरौनी आकार का) रकार: क/ऱ्यो ->

हिंदी की कुछ पड़ोसी भाषाओं, सहभाषाओं और बोलियों में इस "बरौनी रकार" के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:

नेपाली:  ऱ्याखऱ्याख, ऱ्याल, कऱ्याङ्कुरुङ, पुऱ्याउने, गऱ्यो, सऱ्यो।

कुमाउँनी:  कऱ्याठ, कऱ्याल, चऱ्यो, छऱ्योल, छोऱ्यौल, जऱ्यूड़, पुऱ्यूण, पथऱ्यूण, बऱ्यात, ऱ्यालण, सोऱ्याल, ऱ्याख, दुसऱ्याँ, सुऱ्वाल, ऱ्वट।

ब्रजभाषा, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी: कऱ्यो, सऱ्यो, बिगऱ्यो, टऱ्यो, टाऱ्यो, ताऱ्यो (केवल उच्चारण में; लेखन में कर्यो, सर्यो आदि ही लिखा जा रहा है जो हिंदी के बारे में इस कथन को झुठलाता है कि हिंदी जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है।)

मराठी: तऱ्हेचा, येणाऱ्या, दुसऱ्यांचा

भाषा चूँकि एक अभ्यास भी है इसलिए हम हिंदी भाषी इस सूक्ष्म अंतर का अनुभव नहीं करते और ऐसे शब्दों का उच्चारण यथोचित ही करते हैं, किंतु अहिंदी भाषी इसे देर से समझ पाता है।


टिप्पणियाँ

  1. ऱ् का उपयोग कब करा जाए, तथा उच्चारण में शिरोरेखा वाले र् से क्या अन्तर है। थोड़ी सरल भाषा में समझाईए

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  2. क्षमा करें आपकी टिप्पणी आज दिखाई पड़ी। इस बरौनी ऱकार का प्रयोग उन सभी जगहों पर किया जा सकता है जहाँ रेफ को पहले वर्ण के साथ नहीं बल्कि अगले वर्ण के साथ बोला जाता है । हिंदी और हिंदी क्षेत्र की उपभाषाओं, बोलियों में यह उच्चारण स्तर पर विद्यमान है । लिखते हुए इसे हम अगले वर्ण की शिरोरेखा पर लगा देते हैं किंतु पढ़ते पहले वर्ण के साथ हैं। यह ऱ अधिकतर य के साथ जुड़ता है।
    कऱ्यो, बिगऱ्यो, कऱ्या था।

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