आटा āṭā (सं) आर्द (जोर से दाबना) > (प्रा) अट्ट से व्युत्पन्न हुआ है। अर्थ है किसी अन्न का पिसा चूरा, पिसान (पिसा अन्न), बुकनी, पाउडर। इसके लिए दूसरा संस्कृत शब्द है चूर्ण जिससे हिंदी में चून बना। अनेक प्रकार का चून (चूर्ण) बेचने वाले कहलाए परचूनिये ।
'आटा' के लिए फ़ारसी शब्द है आर्द, जो संस्कृत आद का ही प्रतिरूप प्रतीत होता है। कुछ प्रमुख भारतीय भाषाओं में आटो (गुजराती), ओटू (कश्मीरी), पीठ (मराठी), पीठो (नेपाली), अट्टसु (कन्नड़), आटा (पंजाबी, बांग्ला, ओड़िया)। तमिल और मलयालम में आटा से भिन्न "मावु" है।
अब हिंदी क्षेत्र में आटा शब्द गेहूँ के आटे के लिए रूढ़ हो गया है। अन्य अनाजों के आटे के लिए आपको अन्न का नाम भी साथ लगाना पड़ता है; जैसे चावल का आटा, जौ का आटा, बाजरे का, चने का, सिंघाड़े का, कुट्टू का आदि। धुले गेहूँ के बहुत महीन आटे को मैदा और चने के ऐसे ही विशेष आटे को बेसन (वेशन सं > वेषण प्रा) कहा जाता है।
कुमाउँनी में आटा केवल जौ का आटा ही है। उसके साथ जौ कहने की आवश्यकता नहीं। गेहूँ के आटे के लिए अवश्य कहा जाता है ग्यूँक् पिस्यूँ (पिस्यूँ =पिसान से प्राप्त, पिसा हुआ) कुमााउँनी और नेपाली में आटे के लिए एक शब्द "धुलो" भी है जो धूल से व्युत्पन्न है। किसी क्षेत्र में आटा का अर्थ चावल का आटा ही है।
मराठी में आटे के लिए आट के अतिरिक्त पीठ शब्द भी है जो पिष्ट ( √पिष् + क्त) से बना है, अर्थ वही पीसना, चूरा बनाना। पिष्ट से बनने वाला व्यंजन पिष्टक जिसे लोक में पिठौरी कहा जाता है। यह पीठ, पिठो कुमाउँनी में आटे के साथ साथ कुटे हुए चावल से लगी हुई आटेनुमा पिट्ठी/पीठी के लिए भी है। हिंदी में पिट्ठी/पीठी उड़द या मूँग की दाल के गीले पेस्ट का नाम है। बना यह भी पेषण (पीसना) से है। इसी से मुहावरा बना, "पिष्ट पेषण करना" पिसे हुए को और पीसना, अर्थात् बीच में जबर्दस्ती ऐसी बात कहना जो कही जा चुकी हो।
हिंदी में आटा से बने कुछ रोचक मुहावरे प्रचलित हैं। कंगाली या गरीबी में आटा गीला होना = धन की कमी, संकट के समय पास से कुछ और जाता रहना । आटा दाल का भाव मालूम होना = संसार के व्यवहार का ज्ञान होना । आटा दाल की फ़िक्र = जीविका की चिंता । आटा-माटी होना = नष्ट-भ्रष्ट होना ।
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