उत्तर भारत में स्थान नामों के साथ कलाँ, खुर्द, खेड़ा, नांगल, नंगली, डीह, माजरा जैसे कुछ शब्द प्रत्यय के समान जुड़े हुए मिलते हैं। इनमें से कुछ तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान तक में भी प्रयुक्त हो रहे हैं जो पूरे उपमहाद्वीप क्षेत्र के एक ही सांस्कृतिक, भाषिक इकाई होने के प्रमाण भी हैं। विशेष रूप से दिल्ली, पंजाब, हरयाणा, उत्तरप्रदेश में और सामान्यतः राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार में ये पुरानी ग्रामीण बस्तियों के नामों का एक भाग हैं ।आज इनकी व्युत्पत्ति के बारे में भी कुछ बातें यहाँ की जा सकती हैं।
कलाँ : ईरानी/फ़ारसी मूल का शब्द है जिसका अर्थ है, 'बड़ा'। प्राचीन मध्य ईरान की विलुप्त पार्थिनियाई में इसके प्रमाण मिले हैं। कलां वाले नाम अफगानिस्तान, पाकिस्तान में भी मिलते हैं। स्थान नामों के अलावा विशेषण के रूप में इसके प्रयोग इस प्रकार भी मिलते हैं- "मस्जिद कलां" (बड़ी मस्जिद) "ख्वाज़ा कलां" (बड़े ख़्वाज़ा)। पंजाब में कहीं-कहीं यह कलां से काला हो गया है, जैसे एक स्थान का नाम है "काला बकरा"।
ख़ुर्द : फ़ारसी से है, कुछ लोग संस्कृत "क्षुद्र" से भी इसकी व्युत्पत्ति मानते हैं। इसका अर्थ है छोटा (micro) जैसे ख़ुर्दबीन। प्राय: कलां और ख़ुर्द जोड़ा बनाते हैं, जैसे दिल्ली के दो गाँवों के नाम टीकरी कलां और टीकरी खुर्द। ख़ुर्द नेपाल के तराई क्षेत्र और महाराष्ट्र में भी स्थान नाम के पूर्व जुड़ता है। मराठी में खुर्द के समकक्ष नागल की भाँति विलोम अर्थ में एक और शब्द जुड़ता है "बुद्रुक", जो फ़ारसी के बुज़ुर्ग (बड़ा) से निष्पन्न लगता है। निवाड़, मालवा क्षेत्र में कलां के स्थान पर 'बड़ा' ही जोड़ते हैं, खुर्द वैसा ही रहता है।
खेड़ा : खेड़ा शब्द संस्कृत के खेट ( = गाँव) से प्राप्त है। पंजाबी, गुजराती, हिन्दी, मराठी में भी इसका अर्थ गाँव या ग्रामीण बस्ती से है। पुरातत्व विज्ञान में खेड़ा शब्द उस टीले की ओर संकेत करता है जहाँ कोई प्राचीन गाँव था। राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट (मान्यक्षेत्र) आज "मान खेड़ा" के नाम से जाना जाता है।
नांगल: नांगल शब्द बहुत रोचक है। ऐतिहासिक-भाषावैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार नांगल (= हल) शब्द मुंडा परिवार की किसी भाषा से आया है। यह शब्द भारतीय आर्य भाषा एवं द्रविड़ दोनों परिवारों की भाषाओं में समान रूप से विद्यमान है।
मुंडा नंकल > संस्कृत लांगल > प्राकृत नांगल > नव भाषाएँ - नाँगल / नांगर
इसमें एक और रोचक बात यह है कि यह नाँगल / नाँगर अनेक अपभ्रंश भाषाओं में संस्कृत के नगर शब्द से सन्निपतित हो गया है जिसका फल हमें उत्तर भारत के कई स्थान नामों में नंगल, नगला, नांगल, नंगली, नगल, नगली आदि रूपों में दिखाई देता है। संस्कृत लाांगल से नांगल स्ववाभाविक है। नाङ्गलम् हलम् (अमरकोश), के अनुरूप ही यह गांाँवों के लिए उपयुक्त नाम है।
डीह: स्थान नामों के साथ जुड़ा हुआ "डीह" बहुत विस्तृत क्षेत्र में मिलता है।प्राय: समस्त उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल और नेपाल में भी। बिहार के भागलपुर ज़िले में ही कुरुडीह, कुरपटडीह, शिवायडीह, गोराडीह, स्वरूपचक डीह, सौर डीह, ब्रह्मचारी डीह, बनोखर डीह, सनोखर डीह जैसे बीसियों गांवों के नाम हैं और माना जाता है कि प्रत्येक डीह के नीचे पुरातात्विक अवशेष हैं।
डीह नाम वाले स्थान प्रायः आसपास से कुछ ऊँचाई पर, किसी टीले पर बसे हुए मिलते हैं। उजड़े-पुराने गांवों को भी डीह कहा जाता है।कुछ स्थानों में ग्रामदेवता का नाम भी डीह देवता मिल जाएगा।
डीह का संबंध संस्कृत के "देही" शब्द से है। वेदों में भी देही का उल्लेख है और मैकडोनाल्ड के अनुसार अर्थ है: ऐसा ग्राम या बस्ती जो चारों ओर मिट्टी के परकोटे से घिरे हुए हों। देही मिट्टी को भी कहा गया है। यही देही आगे चलकर डीह, डीहा, डीग, दीघ और दीघा बन गए हैं।
माजरा - माजरा नाम के अनेक गाँव हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से मिलेंगे। कुछ उदाहरण हैं: लाखण माजरा, लावा माजरा, माजरा डबास, राणा माजरा, ब्राह्मण माजरा, भोडवाल माजरा, खलीला माजरा, नैन माजरी, नूना माजरा, भैणी माजरा, मोहम्मदपुर माजरा, माजरा महताब, समसपुर माजरा, अड्डू माजरा इत्यादि। यह शब्द भी ग्राम वाचक है और मूलतः अरबी "मज़रा" से आया हुआ है। अरबी में इसके अर्थ हैं :
खेती की जगह, खेत या खेती, वह भूमि जो खेती के योग्य हो, छोटा गाँव, ग्रामीण बस्ती।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें