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सृजन और सर्जन

शब्द विवेक:  सृजन और सर्जन


यदि प्रत्येक हिंदी शब्द के लिए संस्कृत की ओर मुड़ना आवश्यक हो तो सृजन चाहे तत्सम प्रतीत होता हो, है नहीं। इस प्रकार कह सकते हैं कि भ्रामक व्युत्पत्ति का उदाहरण है! संस्कृत में √सृज् से सर्जन बनता है, सृजन नहीं। शतृ प्रत्यय जोड़ने पर कृदंत अव्यय 'सृजन्' बनता है, संज्ञा 'सृजन' नहीं। सर्जन (सृष्टि), विसर्जन ( मुक्ति, त्याग, छोड़ना), उत्सर्जन  (अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया)-- आदि शब्द इसी "शुद्ध" संस्कृत शब्द सर्जन से व्युत्पन्न हुए हैं।

हिंदी में सृजन भी सर्जन के समानांतर ही प्रयुक्त होता आ रहा है, इसकी आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) सर्जन से अधिक है और इसे अशुद्ध नहीं मान सकते। निस्संदेह इसे पाणिनीय व्याकरण से सिद्ध नहीं किया जा सकता किंतु यह प्रयोग से सिद्ध और स्वीकृत है। हिंदी में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के बंधनों से मुक्त हैं और यह स्वाभाविक है। भाषा का प्रवाह अग्रगामी होता है, उसे पीछे की ओर मोड़ना संभव नहीं।

सृजन से हिंदी में अनेक शब्द व्युत्पन्न हुए हैं। सृजनात्मक, सृजनात्मकता, सृजनशील, सृजनकर्म, सृजनकारी आदि आदि।
सृजन (creation) एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है। सृजन का भाव ही सृजनात्मकता (creativity) है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन के प्रतिफल में मौलिकता एवं सम्यकता दोनों विद्यमान होते हैं। निर्माण सृजन का ही समतुल्य शब्द है, किन्तु इसमें मौलिकता का बोध नहीं है। किसी जानकारी के आधार पर कोई भी निर्माण कर सकता है, पर सृजन भी कर सके यह आवश्यक नहीं। कवि, चित्रकार, कलाकार, वास्तुकार मूलतः सृजनकर्ता हैं, निर्माता नहीं।
सृष्टि भी सृजन ही कही जाएगी। सभी धर्म मांगते हैं कि ईश्वर या उसके समतुल्य कोई शक्ति है जिसके द्वारा समस्त ब्रह्मांड की सृष्टि की गई है। ईश्वर ने सारी सृष्टि का निर्माण किया है वह समस्त प्राणियों के 'सिरजनहार' हैं
(सृजन तत्सम >सिरजन तद्भव)।

प्रसंगवश यहाँ यह उल्लेख किया जा सकता है कि "सर्जन" (surgeon)
अंग्रेजी में हिंदी के सर्जन का समध्वनिक शब्द (homophoneme)  है। हिंदी के सृजन या सर्जन से उसका कोई संबंध नहीं।

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