ब्याह बरातों में दूल्हे की खास पहचान हुआ करती थी दुशाला। विवाह संबंधी अनेक लोकगीतों में दूल्हे और उसके पिता की पहचान "दुशाला ओढ़े" के रूप में बताई गई है। उधर दुल्हन का भी शृंगार शॉल के बिना अधूरा रहता है।
इस दुशाला शब्द की यात्रा बड़ी रोचक है। आज हिंदी और बहुत सी प्रांतीय भाषाओं में यह शॉल, साल, हाल बनकर रह गया है जिसे अंग्रेजी से आगत माना जाता है और अपने देसी सांस्कृतिक प्रतीक दुशाला की ओर लोग ध्यान नहीं देते। अब दूल्हे राजा को बहुमूल्य सूट के बाहर भी कुछ देर के लिए ही सही, शॉल अवश्य ओढ़ाया जाता है। दुशाला को लोग भूलने लगे हैं।
दुशाला के लिए संस्कृत में शब्द है द्विशाटक अर्थात शाटक का जोड़ा। शाटक अर्थात् पशमीना, शाटक से द्विशाटक, द्विशाटक से द्विशाट, दुशाला। शाटक ही फारसी में यह बन गया शाल और फारसी से फिर अपने देश में आकर उर्दू - हिंदी में चल पड़ा शाल। कहते हैं अकबर दो शालों को जोड़कर पहनता था जिससे उनका उल्टा भाग दिखाई न दे। उसे दुशाला कहा गया।
उधर यह लोकप्रिय वस्त्र पश्चिम की ओर यात्रा पर निकला तो अधिकांश देशों में शॉल, चॉल, सॉल, साल, शाल बनकर जा बिराजा। हिंदी-अंग्रेजी में ही नहीं फारसी, स्पेनी, पुर्तगाली, इटालियन, जर्मन, डच, स्वीडिश, आईसलैंडिक, रशियन, डैनिश आदि अनेक भाषाओं में शॉल सुशोभित है।
भारतीय ही नहीं अन्यत्र भी महिलाओं के साज - सिंगार के साथ शॉल अपरिहार्य है। इसके असंख्य डिजाइन आपको मिल जाएंगे। संपन्न महिलाओं के वॉर्डरोब में बीसियों शॉल शोभा बढ़ाते हैं। सामान्य महिला भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ जुटा ही लेती है।
अपने देश में इसे देसी नाम न मानकर अंग्रेजी नाम मानते हैं। कारण स्पष्ट है। अपने देश में लोग इसी भ्रम में जी रहे हैं कि अंग्रेजी संभ्रांत लोगों की भाषा है। सो, शॉल भी संभ्रांतता का प्रतीक हो गया है। बेचारा गरीब तो दुसूती या खेस से ही काम चला लेता है।
किसी ने कहा भी तो है - नाम में क्या रखा है? ओढ़िये। सर्दी से बचाव होगा, शोभा बढ़ेगी और रुतबा भी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें