प्यारा सा पिल्ला किसका मन नहीं मोह लेता! नरम, गुदगुदा, भोली- भाली आँखों वाला, चंचल- चपल कि उससे प्यार किए बिना नहीं रह सकते।
कभी सोचा यह पिल्ला शब्द कहाँ से आया है? संस्कृत से नहीं, अरबी- फ़ारसी से भी नहीं। यह मूलतः प्राचीन द्रविड़ से आया हुआ शब्द है जिसका अर्थ है छोटा, नन्हा और यह भारत की अनेक भाषाओं में विद्यमान है।
तमिल, तेलुगु, कन्नड में तो एक जाति का नाम ही पिल्लई है। ये प्रतिष्ठित भूमिधर होते हैं और भारत के दक्षिणी राज्यों के अतिरिक्त श्रीलंका, सिंगापुर, फ़िजी आदि में भी फैले हैं।
उत्तर की ओर चलें तो हिंदी- उर्दू "पिल्ला", अवधी "पिलवा", उड़िया "पीला", गुजराती "पीलो", बांग्ला "पील" ये सब शब्द द्रविड़ "पिल्ला" के ही पिल्ले हैं। कुछ भाषाविज्ञानी तो चप्पल को भी पिल्ला से विकसित मानते हैं, पर यह अभी अपुष्ट है!
सच तो यह है कि शब्दों के स्वरूप विकास और अर्थ विकास की यात्रा की दिशा जानना बड़ा दुष्कर कार्य है। उनमें उत्तर- दक्षिण का, किसी जाति- बिरादरी का या गोरे-काले का भेद भाव भी नहीं होता।
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