लोक में चाय ठंडी नहीं होती, सिराती या सेराती है। सेराना के लिए कहीं-कहीं सियराना/सियरा जाना भी है। सेराना शब्द शीतल से व्युत्पन्न है इसलिए ठंडा होने का भाव इसमें है। किसी अत्यधिक गर्म वस्तु को ठंडा करके अर्थात "सेरा" कर सेवन करते हैं। गुनगुना या कुनकुना आधा या थोड़ा गर्म हो सकता है जबकि सेराई हुई वस्तु पूर्णतः ठंडी भी हो सकती है।
कहीं जूड़ (जूड़ी, कँपकँपी) से जुड़ाना/जुड़वाना क्रियाएँ हैं। जुड़ाइ गऽ (बा)। ठण्डा हो गया है।
कहीं 'सिराना' खाली होना, काम को निपटा लेना भी है। अइसन सिराइके बइठा हयऽ जइसे कवनो कामइ नाइँ बा।
पूजा सामग्री को विसर्जित करने के लिए भी सिराना क्रिया है। पूजा के बाद सामग्री एकत्र कर नदी, बावड़ी, पीपल तले या तुलसी के वृंदावन में सिराया जाता है। भाव है जल में डुबाकर शीतल करना, या शीतल और शांत स्थान पर पधराना, जैसे मौर सिराना।
कुमाउँनी में सेलाण/सेलै जाण रूप हैं। सेराना, सेलूणो, सेलाण, सेलै जाण आदि की व्युत्पत्ति टर्नर और दास के अनुसार शीतल / शैतल्य से मानी गई है। यह सही भी लगता है।
"नैन सेराने, भूखि गइ, देखे दरस तुम्हार" —जायसी
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