शब्द प्रायः उलझन में भी डाल देते हैं; जैसे जब आप आराम फ़रमा रहे हों या आराम कर रहे हों तो यह आराम शब्द फ़ारसी से है या संस्कृत से? एक श्लोक याद आता है राम के बारे में कि राम कल्पवृक्षों के आराम हैं , सारी आपत्तियों के विराम हैं, तीनों लोकों में अभिराम हैं आदि आदि। अब यदि आराम राम से जुड़ा हुआ है तो यह भला फ़ारसी से कैसे हो सकता है!
संस्कृत में एक धातु है √रम्, जिसका अर्थ है रमण करना, अच्छा समय बिताना, सुख उपभोग करना, इसी रम् से भगवान राम का नाम बना है और रम्य, रमणीय, रमण, आराम, विराम, अभिराम, अविराम जैसे शब्द बने हैं। संस्कृत के आराम का अर्थ है उपवन, उद्यान, बगीचा। अमरकोश आराम को कृत्रिम वन मानता है।
जब हम आराम कर रहे होते हैं तो इस आराम का संबंध संस्कृत रम् धातु के आराम से नहीं है, चाहे हम रमण ही कर रहे हों । यह आराम फ़ारसी से आया है। यह बात दूसरी है कि दोनों आराम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भाषाविदों का मानना है कि आराम का मूल प्राचीन भारत ईरानी या भारोपीय भाषा परिवार में है। शब्द यात्रा के साथ अर्थ यात्रा बदल गई। उसमें कुछ नया अर्थ आ जुड़ा जिसे हम अर्थ विस्तार कहते हैं। फ़ारसी में वह आराम चैन लेना, विश्राम करना, दम लेना तक रह गया जबकि संस्कृत में आराम जुटाने वाले तमाम प्राकृतिक, मानव कृत उपकरणों सहित होने का अर्थ समेटे हुए है, चाहे हम आराम घर की बगिया में कर रहे हों या किसी दूर -दराज के उपवन में।
आज जो आराम शब्द अखिल भारतीय हो गया है, प्रायः प्रत्येक भारतीय भाषा में विद्यमान है, वह अर्थ की दृष्टि से फ़ारसी के निकट है । उपवन अर्थ वाला आराम केवल संस्कृत साहित्य में रह गया है ।
शब्द यात्रा में ऐसी व्यथा- कथाएँ कोई अनहोनी नहीं हैं, होती ही रहती हैं।
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