तरबूज़ विश्व में सबसे अधिक उगाया जाने वाला फल है और इसकी 1000 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।भारत में तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। ये बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल। पानी से भरपूर और मीठे होते हैं।
तरबूज़ के लिए संस्कृत में एक शब्द कालिन्द है। इसकी व्युत्पत्ति दो प्रकार से की गई है। कलिंद पर्वत या कालिंदी (यमुना) नदी से प्राप्त। कलिंद पर्वत से तो इसका संबंध नहीं बैठ पाता क्योंकि इतने शीत में यह उगता नहीं। हाँ, यमुना-गंगा के तटीय क्षेत्रों में यह बहुत उगाया जाता है। कालिन्द को वाचस्पत्यम् में इस प्रकार समझाया गया है - कालिं जलराशिं ददाति अर्थात् जो फल बहुत पानी देता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड, मध्यप्रदेश का कलिंदा, कलिंदर नाम इसी कालिंद से माना जा सकता है।
संस्कृत में एक अन्य नाम कालिङ्ग भी प्राप्त होता है जिसका अर्थ है - कलिंग का, कलिंग क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला। मराठी, कोंकणी आदि में कलिंगड़ नाम इसी कालिङ्ग से विकसित लगता है।
पंजाबी में तरबूज़ को हदवाणा और हरयाणवी में हदवाना भी कहा जाता है। बहुत संभव है यह फ़ारसी के हेंदवाने ( هندوانه "hendevâne" ) से संबंधित हो जो पुनः आधुनिक फ़ारसी में हिंदुवाना ("hinduwānā") हो गया है। इसका संबंध जम्मू क्षेत्र में प्रचलित दुआना नाम से भी लगता है। कश्मीरी में 'हेन्दवेन्द' भी फ़ारसी हिंदुवाना से संबंधित है।
पानी से भरा फल होने के कारण बिहार के गया, आरा, छपरा, रोहतास आदि के निकट इसे पनुवाँ कहा जाता है। चंपारण और उसके आसपास इसे लालमी कहा जाता है जो तरबूज़ के गूदे के लाल रंग का संकेत करता है।
तरबूज़ के कुछ अन्य स्थानीय नाम हैं मतीरा (राजस्थान), लोहड़ा (हिमाचल प्रदेश), चीमरी (बुंदेलखंड)। इन्हें आंचलिक या अज्ञात व्युत्पत्तिक कहा जा सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें